क्या यह कांग्रेस संगठन में आमूलचूल बदलवाव के हैं संकेत!

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राहुल गांधी

-देवेंद्र यादव-

devendra yadav
-देवेंद्र यादव-

लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा था कि घोड़े दो तरह के होते हैं एक शादी का और दूसरा रेस का। क्या राहुल गांधी ने लंबा मंथन कर कांग्रेस संगठन में रेस के घोड़े उतारने शुरू कर दिए हैं। इसकी पहली झलक महाराष्ट्र में दिखाई दी जब उन्होंने नाना पटोले को किनारे कर हर्षवर्धन को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया। महाराष्ट्र में कांग्रेस के पास बड़े-बड़े नेता मौजूद हैं लेकिन राहुल गांधी ने एक ऐसे नेता पर दाव खेला है जिसका राजनीति में बड़ा नाम नहीं है। लेकिन यह राहुल गांधी का अच्छा और बड़ा निर्णय है क्योंकि इससे कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा। कांग्रेस के प्रति जिन लोगों की यह धारणा बनी हुई है कि कांग्रेस के पास संगठन के बड़े पदों पर नियुक्त करने के लिए नेता ही नहीं है और कांग्रेस खत्म हो गई है। लोगों में इस धारणा का जन्म और कार्यकर्ताओं का मनोबल इसलिए कमजोर है क्योंकि कांग्रेस के बड़े पदों पर लंबे समय से चुनिंदा नेता ही बने हुए हैं। कांग्रेस के भीतर बड़े और अहम पदों पर ऐसे नेता बैठे हुए हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं। कांग्रेस जब सत्ता में होती है तो कमोबेश यही नेता सत्ता में होते हैं और यदि चुनाव हार जाते हैं तो संगठन में यही नेता नजर आते हैं। क्या यही शादी वाले घोड़े हैं जिन्हें बदलकर अब राहुल गांधी रेस के घोड़े उतारना चाहते हैं जिसकी शुरुआत उन्होंने महाराष्ट्र से कर दी है। लेकिन यह अन्य राज्यों में भी हो क्योंकि एक घोड़े को बदलने से रेस नहीं जीती जाएगी। कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर पर बदलाव की शुरुआत की है उनमें से एक नेता ऐसे हैं जिन्हें पहले भी कांग्रेस ने राज्य का प्रभार दिया था लेकिन कांग्रेस उनके प्रभाव वाले क्षेत्र में जीती हुई बाजी को हारी है। वह स्वयं भी अपने राज्य में चुनाव नहीं जीत पाए। यही तो राहुल गांधी की असल परीक्षा है। उन्हें यह भी देखना है कि जिन नेताओं को राज्य का प्रभार दिया जा रहा है उनकी पहले प्रभार वाले राज्यों में परफॉर्मेंस कैसी रही थी। क्योंकि यह राज्य ऐसे थे जहां कांग्रेस की सरकार थी लेकिन प्रभारियों के रहते हुए सत्ता चली गई। कांग्रेस कमजोर क्यों है और क्यों कमजोर होती चली गई इसकी वजह कांग्रेस के भीतर ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर संगठन के गठन में उन लोगों को अधिक महत्व दिया जाता है जो लोकसभा और विधानसभा का चुनाव या तो हार कर बैठे हैं या जीतने के बाद भी संगठन के गठन में उनकी सिफारिश को महत्व दिया जाता है। इस कारण भी कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है और कार्यकर्ता कुंठित होकर अपने घरों में जाकर बैठ जाता है। कांग्रेस का टिकट पाने से लेकर संगठन के निर्माण में वही नेता सबसे आगे रहते हैं इसलिए जब समय आता है तब कांग्रेस का कार्यकर्ता उन नेताओं को सबक सिखाता है और कांग्रेस का प्रत्याशी चुनाव हार जाता है। कांग्रेस के राष्ट्रीय और प्रदेश सदस्यों की सूची पर नजर डालें तो ज्यादातर सदस्य वह हैं जो विधानसभा और लोकसभा का चुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस के प्रदेश और राष्ट्रीय सदस्य हैं। उन्हीं में से प्रदेश के पदाधिकारी भी बने हुए हैं। कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटने का असल कारण भी यही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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