
-द ओपिनियन-
हरियाण और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में बुरी पराजय के बाद कांग्रेस की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के हाल अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं। जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गठबंधन के नेतृत्व की इच्छा जाहिर कर कांग्रेस की अगुवाई के अधिकार को चुनौती दी है वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी से गठबंधन की घोषणा कर इंडिया गठबंधन में और दरार खेंच दी है।
इंडिया गठबंधन का सबसे बड़ा दल और देश भर में उपस्थिति के कारण कांग्रेस विपक्ष के नेतृत्व का सहज अधिकारी बन गया था। इंडिया गठबंधन ने लोकसभा चुनाव में यूपी और महाराष्ट्र में शानदार सफलता से इस गठबंधन की उपयोगिता भी प्रदर्शित कर दी थी। इसका असर लोकसभा की कार्यवाही में भी विपक्ष के दबदबे के साथ नजर आने लगा था। लेकिन पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन ने गठबंधन पर सवालिया निशान लगाने शुरू कर दिए।
हरियाणा में कांग्रेस अपने दम पर चुनाव हार गई, वहीं महाराष्ट्र में कांग्रेस, शरद पवार की अगुआई वाली एनसीपी और उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली शिवसेना से बना एमवीए गठबंधन बुरी तरह से पराजित हुआ। तत्काल प्रतिक्रिया गठबंधन के कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल उठाने की थी। तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि वह गठबंधन का नेतृत्व करने को तैयार हैं और उन्हें गठबंधन के भीतर समर्थन मिला है। एनसीपी और समाजवादी पार्टी दोनों ने उनका समर्थन किया है। आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव ने भी कहा है कि उन्हें गठबंधन का नेतृत्व करना चाहिए। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेता और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि कांग्रेस को अपने नेतृत्व को सही ठहराना होगा और उसे इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। ये सभी इंडिया गठबंधन के महत्वपूर्ण घटक हैं और उनके विचार कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर गुट के भीतर असहजता को दर्शाते हैं।
इंडिया गठबंधन के शुरुआती दिनों में ही कांग्रेस के नेतृत्व के दावे पर सवाल उठाए गए थे। अब ये सवाल और भी तीखे हो गए हैं। भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन उसके सहयोगियों से भी खराब है।
कई लोगों का मानना है कि ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे या राहुल गांधी से ज्यादा प्रभावी नेता हो सकती हैं। यह भावना अब कुछ गठबंधन सहयोगियों द्वारा खुले तौर पर व्यक्त की जा रही है। ममता बनर्जी ने उन नेताओं का आभार व्यक्त किया है जिन्होंने उन्हें अपना समर्थन व्यक्त किया है। ऐसे में इंडिया गठबंधन के नेतृत्व का मुद्दा अब चर्चा का प्रमुख बिंदू हो जाएगा। लेकिन नेतृत्व को लेकर भ्रम और असहमति का प्रदर्शन गठबंधन को कमज़ोर कर सकता है।
गठबंधन के भीतर इस बात को लेकर मतभेद हैं कि उसे किन मुद्दों को उठाना चाहिए और किन नीतियों पर काम करना चाहिए। संसद के चालू सत्र में कांग्रेस ने अडानी मुद्दे पर सरकार पर हमला करने की उत्सुकता दिखाई है, लेकिन अन्य दलों, जिनमें तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी समेत कई पार्टियों ने इस मुद्दे पर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया है। शिवसेना द्वारा बाबरी मस्जिद के विध्वंस की प्रशंसा करने पर समाजवादी पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विपक्षी गठबंधन में तनाव को और बढ़ाने वाले एक कदम के तहत आगामी दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी (आप) को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा की। यह घोषणा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सपा के रुख में स्पष्ट बदलाव को दर्शाता है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ अपने ऐतिहासिक गठबंधन के बावजूद सपा ने आप का समर्थन किया है। हालाँकि, अखिलेश की टिप्पणी से कांग्रेस खेमे में खलबली मचने की संभावना है, क्योंकि हाल के महीनों में दोनों दलों के बीच तनाव बढ़ गया है।
दिल्ली में कांग्रेस के बजाय आप का समर्थन करने के सपा के फैसले को पार्टी के भीतर कुछ लोगों द्वारा कांग्रेस के अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैये के रूप में देखा जा रहा है। सपा नेतृत्व का मानना है कि भाजपा के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस अपने सहयोगियों के योगदान को स्वीकार करने में विफल रही है। विपक्षी दल के चेहरे के तौर पर राहुल गांधी को आगे बढ़ाने की कांग्रेस की कोशिशों को लेकर सपा का कांग्रेस के प्रति असंतोष चरम पर पहुंच गया है।