
-सर्वदलीय बैठक में तमिलनाडु के राजनीतिक दलों की मांग
-भाजपा का हस्ताक्षर अभियान
-विष्णुदेव मंडल-

चेन्नई। तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन 1971 की जनगणना के अनुसार आगामी 30 वर्षों तक समय सीमा तय करने की मांग की है।
बता दें कि 2026 में सविंधान के 84 संशोधन के अनुसार लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन होना है। मौजूदा तमिलनाडु सरकार को अंदेशा है कि अगर लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन राज्यों के मौजूदा जनसंख्या के आधार पर किया जाएगा तो तमिलनाडु की वर्तमान 39 लोकसभा सीटों में से घटकर 31 रह जाएंगी। तमिलनाडु को केंद्र सरकार में प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा। जिससे बहुत बड़ी आबादी को नुकसान पहुंचेगा।
तमिलनाडु विधानसभा में बुधवार को आयोजित सर्वदलीय बैठक में तमिलनाडु के 59 राजनीतिक दलों ने भाग लिया। जबकि भाजपा, एनटीके एवं तमिल मानिला कांग्रेस ने इस सर्व दलीय बैठक में हिस्सा नहीं लिए।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने सर्वदलीय बैठक के दौरान तमिलनाडु की सभी पार्टियों के समक्ष एक प्रस्ताव रखा जिसमें आगामी 2026 में लोकसभा क्षेत्र के लिए होने वाले परिसीमन पर चिंता व्यक्त की और कहा कि यदि सांख्यिकी आधार पर लोकसभा सीटों का परिसीमन किया जाएगा तो तमिलनाडु को 8 से 12 सीटों का घाटे हो सकता है। यह किसी भी सूरत में तमिलनाडु के हित में नहीं है। इसलिए यह सभी दलों की जिम्मेदारी बनती है कि इस मुद्दे पर एकजुट होकर केंद्र सरकार से मांग की जाए कि आगामी 30 सालों तक 1971 की जनगणना को आधार पर ही लोकसभा सीटों की परिसीमन किया जाए।
पीएमके नेता अंबुमनी रामदास ने कहा की इस विषय पर दक्षिण के सभी राज्यों के साथ बैठक हो और चर्चा के बाद केंद्र सरकार से परिसीमन के लिए बातचीत की जाए।
वहीं बीसीके नेता तोल तिरूमावलवन ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा हम किसी भी आधार पर सीटों को खोना नहीं चाहते।
वही एम एन एम प्रमुख फिल्म अभिनेता कमल हसन ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहां कि मौजूदा भारतीय जनता पार्टी सरकार इंडिया को हिंदिया बनाना चाहती है, जिसे तमिलनाडु किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगा।
वही एआईएडीएमके महासचिव एडापाडि पलनीस्वामी ने कहा कि परिसीमन पर दक्षिणी राज्यों से भी बातचीत करने से माकूल परिणाम आएगा।
उनहोंने डीएमके को सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए कहा कि अगले 2026 में अपनी विदाई देखकर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन हर दिन नए-नए नाटक कर रहे हैं जबकि भारतीय जनता पार्टी के नेता तमिलनाडु के अध्यक्ष के अन्नामलाई सीटों के परिसीमन पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान का उल्लेख कर रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था किसी भी राज्य की कोई भी सीट नहीं घटेगी। प्रो रेटा बेसिस पर सीटों का परिसीमन किया जाएगा।
सर्व दलीय बैठक में सर्वाधिक उत्तेजित डीएमके नेता एमके स्टालिन एवं उनके विधायक रहे। वे हिंदी के खिलाफ सबसे ज्यादा एग्रेसिव नजर आए। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का आरोप था कि मौजूदा केंद्र सरकार नान हिंदी स्पीकिंग क्षेत्र में उनके हक की धनराशि आवंटित नहीं कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया की तमिलनाडु के हिस्से में भेदभाव बरता जा रहा है। उनका आरोप था कि 2014 से 2023 के दरमियान भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार ने संस्कृत भाषा के लिए 2345 करोड आवंटित किया वहीं तमिल भाषा के लिए सिर्फ 167 करोड आवंटित किया गया है। जबकि हिंदुस्तान में महज 7% लोग संस्कृत जानते हैं और समझते हैं। जिस भाषा का बोलने वाला लिखने वाला महज सब 7% है उस भाषा को प्रमोट करने के लिए 2345 करोड़ का आवंटन केंद्र सरकार के कथनी और करनी को दर्शाता है।
वहीं भारतीय जनता पार्टी के तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष अन्नामलाई का आरोप था की सर्वदलीय बैठक बुलाने की जरूरत ही क्यों पड़ी। फोन पर ही राहुल गांधी से यह पूछा जाना चाहिए कि वह लोकसभा क्षेत्र का परिसीमन किस प्रकार करना चाहते हैं। जनसंख्या के आधार पर या फिर उनके पास कोई और मेथड है? भारतीय जनता पार्टी प्रमुख अन्नामलै का आरोप था की तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन राज्य की जनता को गुमराह कर रहे हैं। वह हिंदी भाषा का डर दिखाकर तमिलनाडु के लोगों को अंधेरे में रखना चाहते हैं। इसलिए हमने हस्ताक्षर अभियान चलाया है। हम आगामी मई महिना तक करोड़ों परिवारों तक पहुंचेंगे और उनकी राय जानने की कोशिश करेंगे। आखिर तमिलनाडु के लोग त्रिभाषी फॉर्मूला की समर्थन करते हैं या विरोध।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)