
द ओपिनियन डेस्क
नई दिल्ली। आज यानी 6 अगस्त 2022 को देश के उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहा है। मतदान जारी है और देर रात तक चुनाव नतीजे आ जाएंगे। संसदीय गणित के अनुसार राजग प्रत्याशी जगदीप धनखड का पलड़ा विपक्ष की प्रत्याशी मार्गरेट अल्वा की तुलना में भारी लगता है। उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा व राज्यसभा के सदस्य मतदान करते हैं। इस समय दोनों सदनों में 788 सदस्य हैं। बहुमत का आंकड़ा 395 है। भाजपा के दोनों सदनों में अपने 394 सांसद हैं। यानी उसके अपने ही वोट 50 फीसदी हैं। राजग को मिलाकर यह आंकड़ा 445 सांसदों का हो जाता है।
इस हिसाब से अकेले भाजपा के पास इतने सदस्य हैं कि वह अपने प्रत्याशी को चुनाव जीता सकती है। फिर राजग को मिलाकर तो आंकडा और बढ़ जाता है। बसपा, वाईएसआरसीपी, बीजद, तेलुगुदेशम जैसे दल धनखड़ के समर्थन की घोषणा कर चुके हैं। साफ है अल्वा के साथ पूरा विपक्ष नहीं है। तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव से दूरी बना ली है। हां, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) जरूर अल्वा के समर्थन में आ गई है। उसने शुक्रवार को ही यह घोषणा की थी। तृणमूल कांग्रेस के उपराष्ट्रपति चुनाव से दूर रहने के फैसले से खुद अल्वा भी अचंभित हैं। उन्होंने उम्मीद भी जताई थी कि तृणमूल संभवत: अपने रुरख पर पुनर्विचार कर ले। लेकिन अब स्थिति साफ है कि तृणमूल कांग्रेस इस चुनाव से दूर रहेगी। तृणमूल का कहना है कि प्रत्याशी के चयन से पहले उससे सलाह मशविरा नहीं किया गया। राष्ट्रपति चुनाव के बाद उपराष्ट्रपति चुनाव में बने राजनीतिक समीकरणों से यह तो लगभग साफ है कि समग्र विपक्ष एक साथ नहीं आया हैं। कई पार्टियों हैं जिन्होंने विपक्ष मेंं होने के बावजूद राजग के साथ करीबी रिश्ते रखे हुए हैं। इससे देश के शीर्ष संवैधानिक पदों के लिए हुए दोनों ही चुनावों में राजग प्रत्याशियों को ताकत मिली। विपक्षी एकता के तार मजबूती से नहीं जुड़ पाए। 2024 के आम चुनावों से पहले के इन दो अहम चुनावों में विपक्षी एकता एकजुटता की परीक्षा पास नहीं कर पाई है। भाजपा की रणनीति उस पर भारी पड़ रही है। रविवार को जब नीति आयोग की बैठक में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली में जुटेंगे तो गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और भाजपा के खिलाफ मजबूत विपक्षी एकता के हिमायती दलों के पास यह मौका होगा कि वे बैठक से इतर समय निकालकर विपक्षी एकता में दरार पर भी मंत्रणा कर सकें। भाजपा ने राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव में अपने सियासी समीकरण बखूबी साधे हैं। गैर भाजपाई दल इसका तोड नहीं निकाल सके। इससे लगता है कि विपक्ष की एकता की जाजम में फिलहाल कई छेद हैं। उनका एकसाथ आना सरल व सहज नहीं है।

















