कनाडा को दो टूक कहे भारत —

-अलगाववादी तत्वों पर कार्रवाई करे अन्यथा रिश्तों में आएगी दरार

-द ओपीनियन-

कनाडा में खालिस्तानी विचारधारा के लोग खुलकर भारत की संप्रभुता के खिलाफ आग उगल रहे हैं। भारत सरकार ने लगातार राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो से खालिस्तानी समर्थकों पर कार्रवाई करने की मांग की है। हालांकि, इन लोगों पर कार्रवाई करने की जगह ट्रूडो उल्टा भारत सरकार को ही गलत साबित कर दिया।

हाल के दिनों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया , कनाडा व ब्रिटेन में भारत विरोधी गतिविधियां बढी हैं। इनमें खासकर कनाडा भारत विरोधी गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। भारत के बार बार के आग्रह के बावजूद कनाडा का रुख इन भारत विरोधी तत्वों के प्रति नरम बना हुआ है। जिस प्रकार के हाल के दिनों में इन देशों में भारतीय उच्चायोगों व अन्य राजनयिक मिशनों पर हमले के प्रयास किए गए और वहां से जिस तरह से धमकियां दी जा रही हैं, वह चिंता का विषय है। कुछ तत्व खालिस्तान समर्थक तत्वों को प्रोत्साहन दे रहे हैं। इन देशों में से खासकर कनाडा का रुख भारत के लिए चिंता का विषय है। वहां सिखों के अच्छी खासी आबादी है और उनकी जड़े भारत में हैं। ऐसे में ये अलगाववादी तत्व भारत में भी माहौल खराब करने का प्रयास करते हैं। इन तत्वों के तार कहां से जुड़े हैं और किससे जुड़े हैं इससे भारत भी अनभिज्ञ नहीं है। इसलिए गत दिनों एससीओ की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद पर प्रहार करते हुए कहा था कि इसे किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसे में भारतीय विदेश मंत्रालय का यह कहना एकदम सही है कि संबंधित देशों की सरकारों को भारतीय राजनयिक मिशनों की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठाने चाहिएं। भारत ने साफ कर दिया है कि कनाडा, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देशों में हाल में हुई हिंसा की घटनाएं अस्वीकार्य हैं।
भारत ने यह उम्मीद भी जताई है कि वियना संधि के मुताबिक संबंधित देश भारतीय मिशनों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देंगे। लेकिन लगता है कि कनाडा के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो को यह बात समझ में नहीं आई है। तभी तो वह कह रहे हैं कि कनाडा में लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी हासिल है। लेकिन भारत ने दो टूक कह दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खालिस्तान समर्थक आतंक नहीं फैला सकते हैं। गत दिनों भारत ने नई दिल्ली स्थित कनाडा के उच्चायुक्त को विदेश मंत्रालय में तलब किया था कनाडा में खालिस्तान समर्थकों की बढ़ती गतिविधियों पर नाराजगी जताई थी और एक आपत्ति पत्र भी जारी किया था। भारत ने गत दिनों अमेरीका के सैन फ्रांसिस्कों में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हमले के प्रयास को भी अमेरिकी प्रशासन के समक्ष उठाया था और अमेरिका ने भी इन अलगाववादी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन भी दिया था। लेकिन इस मामले में कनाडा का रवैया अलगाववादी तत्वों के प्रति नरम ही बना हुआ है। यदि कनाडा इन तत्वों पर लगाम नहीं लगाता है तो फिर भारत को भी उसके खिलाफ अपना रवैया सख्त करना चाहिए। अपने राष्ट्रीय हितों की अनदेखी भारत भी नहीं कर सकता।. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने एक बयान में कनाडा के इसी रुख पर आश्चर्य जताते हुए कहा था हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि वोट बैंक की राजनीति के अलावा कोई ऐसा क्यों करेगा। लेकिन कनाडा अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस तरह का कोई कदम कैसे उठा सकता है जो दूसरे देशों के हितों की अनदेखी करता है। भारत को इन अलगाववादी तत्वों पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिएं। भारत को कनाडा को यह साफ कर देना चाहिए कि इसकी आंच आगे चलकर खुद कनाडा के हितों पर भी आ सकती है। इससे दोनों देशों के रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं। अभिव्यक्ति की स्वमंत्रता के नाम पर आप किसी देश की एकता व अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों की इजाजत नहीं दे सकते हैं। कनाडा में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिख फॅार जस्टिस सक्रिय है। वह भारत विरोधी गतिविधियां चलाता है जिसमें जनमत संग्रह आयोजित करने जैसी गतिविधियां शामिल है। भारत को कनाडा पर सरकारी स्तर पर दबाव बढाकर कनाडा को भारत विरोधी गतिविधियों पर रोकथाम के लिए जोर देना चाहिए। भारत को यह साफ करना देना चाहिए कि अलगाववादी तत्वों पर अंकुश लगाने पर ही कनाडा कें साथ रिश्तों में मिठास आ सकती है।

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