कांग्रेस कार्यसमितिः पार्टी ने राजस्थान में साधे कई समीकरण

सबसे अहम है पायलट को पद मिलना। अब जब वे कार्यसमिति में हैं तो समिति के सबसे ताकतवर सदस्यों यानी सोनिया गांधी,राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के साथ उन्हें काम करने का अवसर मिलेगा। यानी उनके साथ कुछ प्लस हुआ है। उनके लिए आगे का रास्ता खुल गया है। चूंकि इस बार कांग्रेस ने अपने किसी मुख्यमंत्री को कार्यसमिति में शामिल नहीं किया है, इसलिए सीएम अशोक गहलोत समिति में नहीं है। इसलिए लगता है कांग्रेस ने बहुत ही रणनीतिक तरीके से मुख्यमंत्रियों को कार्यसमिति से बाहर रखा है।

-द ओपिनियन-

रविवार को कांग्रेस ने अपनी कार्यसमिति की घोषणा की तो उसकी नजर कई राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी टिकी थी। खरगे और गांधी परिवार ने मिलकर बहुत ही सूझबूझ से सामाजिक समीकरण साधाने के साथ ही सियासी संतुलन बनाने की भी कोशिश की है ताकि चुनाव वाले राज्यों में पार्टी को किसी मुसीबत का सामना न करना पड़े । अब राजस्थान को ही लें सचिन पायलट को कार्यसमिति में शामिल किया गया है और राजनीतिक हलकों में चर्चा यही है कि उन्हें पार्टी कोई बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है। यानी फिलहाल उनकी राजनीति का शक्ति केंद्र राजस्थान से बाहर रहेगा। सचिन के पीछे एक बड़ा जातीय वोट बैंक भी है और गुर्जर समाज के नेता दोनों ही पार्टियों में है। इसलिए पार्टी ने सचिन को राजस्थान के चुनावों से भी जोड़ कर रखा है। कांग्रेस की फिलहाल रणनीति यही नजर आ रही है कि गहलोत और सचिन पायलट विधानसभा व लोकसभा चुनावों तक साथ मिलकर काम करते रहे। कांग्रेस ने कार्यसमिति में राजस्थान से सात नेताओं को शामिल किया है। इसमें जातीय समीकरणों को भी साधने का काम किया है। राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी कांग्रेस में थिंक टैंक की तरह हैं, इसलिए उनका कार्यसमिति में शामिल होना स्वाभाविक है। इसके अलावा भंवर जितेंद्र सिंह गांधी परिवार के करीबी तो है ही, वे प्रदेश के राजपूत समाज से हैं, वहीं हरीश चौधरी , महेंद्रजीत सिंह मालवीया, पवन खेडा, मोहन प्रकाश भी राज्य के समाजिक समीकरणों को साधते हैं। लेकिन सबसे अहम है पायलट को पद मिलना। अब जब वे कार्यसमिति में हैं तो समिति के सबसे ताकतवर सदस्यों यानी सोनिया गांधी,राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के साथ उन्हें काम करने का अवसर मिलेगा। यानी उनके साथ कुछ प्लस हुआ है। उनके लिए आगे का रास्ता खुल गया है। चूंकि इस बार कांग्रेस ने अपने किसी मुख्यमंत्री को कार्यसमिति में शामिल नहीं किया है, इसलिए सीएम अशोक गहलोत समिति में नहीं है। इसलिए लगता है कांग्रेस ने बहुत ही रणनीतिक तरीके से मुख्यमंत्रियों को कार्यसमिति से बाहर रखा है। कार्यसमिति में कोई राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता का माहौल ना रहे। इसके साथ ही पार्टी ने अपने स्वरूप को व्यापक रूप देने के लिए कई उन नेताओं को भी कार्यसमिति में लिया है जो ग्रुप-23 में शामिल रहे हैें। हालांकि कांग्रेस के कई नेता ऐसे किसी ग्रुप के अस्तित्व से इनकार करते रहे हैं, लेकिन यह ग्रुप एक बार चर्चा में आया तो इसके जुड़े सदस्यों की पहचान भी बन गया। राजस्थान में कांग्रेस कई तरह की चुनावी रणनीति के दौर से गुजर रही है। ओबीसी आरक्षण को बढाने का वादा कर कांग्रेस ने एक बड़ा दांव चला है। अब ओबीसी के एक प्रमुख चेहरे हरीश चौधरी को शामिल कर कांग्रेस ने राजस्थान के सबसे बड़े जातीय समुदाय को एक सकारात्मक संदेश दिया है। कांग्रेस के सामने जाट समुदाय और गुर्जर समुदाय को अपने से जोड़े रखना ही नहीं, उनके अधिकतम वोट हासिल करने की चुनौती रहेगी। उसकी नवगठित कार्यसमिति में समीकरण को साधने का प्रयास नजर आता है। वहीं अनुसूचित जातियों व आदिवासियों के समीकरणों को साधना भी बहुत अहम है। पार्टी ने इसका भी प्रयास किया है खासकर राजस्थान के संदर्भ में यह नजर आता है। इस बार रघुबीर मीणा को छोड़ा तो मालवीया को शामिल किया है। मालवीय का मेवाड़ -वागड़ अंचल में अच्छा प्रभाव माना जाता है। पार्टी ने चरणजीत सिंह चन्नी और मुकुल वासनिक को जगह देकर अनुसूचित जातियों को भी सकारात्मक संदेश दिया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में आदिवासी व अनुसूचित जाति का वोट बहुत अहम है। यदि राजस्थान के संदर्भ मे देखें तो सचिन पायलट, हरीश चौधरी , महेंद्रजीत सिंह मालवीया और भंवर जितेद्र सिंह के माध्यम से पार्टी ने चार बड़े वोट बैंकों का साधने का प्रयास किया है। देखना है अब पार्टी इनके माध्यम से अपने चुनावी समीकरणों को किस तरह धार दे पाती है।

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