
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह से बड़े चाणक्य नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव हैं। दोनों ही नेता बुजुर्ग भले ही हो गए हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक धार अभी भी बरकरार है। अभी भी भारतीय जनता पार्टी बिहार में नीतीश कुमार पर तो कांग्रेस लालू प्रसाद पर निर्भर है। फिलहाल लगता है इन दोनों नेताओं के बगैर भाजपा और कांग्रेस को बिहार में पार पाना मुश्किल है।
-देवेंद्र यादव-

बिहार की राजनीति भी छोटे-छोटे कबीलों की तरह छोटे-छोटे जातीय राजनीतिक दलों में बंटी हुई है। बिहार के यह क्षेत्रीय दल इतने मजबूत हैं कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को सत्ता में वापसी करने से रोक रही हैं तो वहीं देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को सत्ता में आने के लिए तरसा रही हैं। दोनों ही पार्टियां कांग्रेस और भाजपा 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कशमकश की स्थिति में हैं। दोनों ही पार्टियों को समझ नहीं आ रहा है कि वह बिहार की सत्ता में कैसे आएं। भले ही 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी ने देश को गृहमंत्री अमित शाह जैसे बड़े राजनीतिक चाणक्य दिए हैं लेकिन भाजपा के चाणक्य अमित शाह बिहार के दो बड़े नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के सामने फेल हैं। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव देश की राजनीति के असल चाणक्य हैं। इसे कांग्रेस भी समझती है और भारतीय जनता पार्टी भी समझ रही है।
2009 में कांग्रेस लालू प्रसाद यादव के दम पर और उनकी चाणक्य नीति के कारण सत्ता में आई थी। वहीं 2024 में भारतीय जनता पार्टी भी लगातार तीसरी बार केंद्र में अपनी सरकार बनाने में नीतीश कुमार की वजह से सफल हुई। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भाजपा के चाणक्य अमित शाह से बड़े चाणक्य नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव हैं। दोनों ही नेता बुजुर्ग भले ही हो गए हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक धार अभी भी बरकरार है। अभी भी भारतीय जनता पार्टी बिहार में नीतीश कुमार पर तो कांग्रेस लालू प्रसाद पर निर्भर है। फिलहाल लगता है इन दोनों नेताओं के बगैर भाजपा और कांग्रेस को बिहार में पार पाना मुश्किल है। भाजपा और कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार बगैर नीतीश और लालू बिहार की सत्ता में आने के लिए रास्ता ढूंढ रहे हैं। मगर दोनों ही बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को रास्ता अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है। अभी भी दोनों ही पार्टियों के चुनावी रणनीतिकार कशमकश की स्थिति में हैं। लग रहा है दोनों ही पार्टियो के चुनावी रणनीतिकार गुनगुना रहे हैं जाएं तो जाएं कहां समझेगा कौन वहां। मजेदार बात यह है कि दोनों ही नेताओं ने बिहार में पहली बार अपनी सरकार कांग्रेस और भाजपा के सहयोग से बनाई थी। लालू प्रसाद यादव ने अपनी सरकार लगभग चार दशक पहले कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर बनाई थी। वहीं नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव को सत्ता से बाहर कर भाजपा के सहयोग से अपनी सरकार बनाई थी। अब बिहार में दोनों ही बड़ी पार्टियां सत्ता में आने और वापसी करने के लिए लालू और नीतीश पर निर्भर दिखाई दे रहे हैं। लेकिन दोनों ही चाणक्य दोनों ही पार्टियों को बिहार की सत्ता में आने से रोक रहे हैं। इसीलिए कहा जाता है कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक चाणक्य लालू और नीतीश कुमार हैं।
बिहार में भाजपा से कहीं ज्यादा कशमकश और मुगालते में कांग्रेस है जो समझ ही नहीं पा रही है कि बिहार में कांग्रेस उतनी कमजोर नहीं है जितनी कमजोर कांग्रेस के नेता और राजनीतिक पंडित समझते हैं। बिहार में कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार कांग्रेस की ताकत को समझने की या तो चेष्टा नहीं करते हैं या फिर हवा में बातें करते हैं और उड़ते हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में पप्पू यादव ने कांग्रेस के पक्ष में भाजपा और नीतीश कुमार सरकार के खिलाफ हवा बनाई थी। जिसका फायदा कांग्रेस को मिला और पप्पू यादव आज भी कांग्रेस के बिहार नेताओं की अपेक्षा अधिक कांग्रेस के पक्ष में हवा बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस कन्हैया कुमार को लेकर युवाओं और बेरोजगारी को लेकर यात्रा निकालने वाले हैं। उसकी नीव बिहार में पप्पू यादव ने रखी थी। पप्पू यादव बिहार में युवाओं और छात्रों की समस्याओं और बेरोजगारी को लेकर संसद से सड़क तक संघर्ष कर रहे हैं। बिहार के युवाओं को कांग्रेस के पक्ष में लाने का काम कर रहे हैं मगर कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को मुगालते में रख रहे हैं। वह अभी भी बिहार की सच्चाई को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को ठीक से नहीं बता रहे हैं। यदि बताते तो बिहार में कन्हैया कुमार की तरह पप्पू यादव भी नजर आते और युवाओं की समस्या और बेरोजगारी को लेकर जो यात्रा कन्हैया कुमार निकाल रहे हैं यदि यह यात्रा पप्पू यादव के नेतृत्व में होती तो इसका बहुत बड़ा फायदा 2025 के विधानसभा चुनाव कांग्रेस को मिलता। झारखंड में पप्पू यादव की बदौलत कांग्रेस ने 16 विधानसभा सीट जीती थी यही प्रयोग कांग्रेस को बिहार में भी करना चाहिए। कांग्रेस के पास समय है खासकर राहुल गांधी के पास। वह जब बिहार के नेताओं को बुलाकर मीटिंग करें तब वह पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव को भी बुलाकर 2025 के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में बात करें। क्योंकि बिहार में लालू प्रसाद यादव से बात करने से कांग्रेस का भला नहीं होगा। भला होगा कांग्रेस की विचारधारा से जुड़े पप्पू यादव जैसे नेताओं से बात करने और जिम्मेदारी देने से। कांग्रेस के डेटाबेस नेता और रणनीतिकार बिहार में कांग्रेस को मजबूत कर सकते और ना ही कांग्रेस को सत्ता में ला सकते हैं। कांग्रेस मजबूत तब होगी जब कागजी डाटा नहीं बल्कि जमीन पर चलकर देखना होगा कि कांग्रेस का भला कैसे होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)