
-देवेंद्र यादव-

कोटा संसदीय क्षेत्र राजनीतिक गलियारों और मीडिया में 2019 से ही सुर्खियों में है, क्योंकि इस क्षेत्र से भाजपा नेता ओम बिरला लगातार तीसरी बार सांसद और लगातार दूसरी बार लोकसभा के अध्यक्ष बने।
क्योंकि ओम बिरला लोकसभा के अध्यक्ष हैं इसलिए राजनीतिक गलियारों और मीडिया में सुर्खियों में रहते हैं और उनके कारण सुर्खियों में कोटा संसदीय क्षेत्र रहता है। ओम बिरला 2003 में पहली बार कोटा शहर से विधानसभा का चुनाव जीतकर विधायक बने और लगातार 2013 तक विधायक रहे। वह 2014 से लगातार तीसरी बार कोटा संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए।
सवाल यह है कि क्या कांग्रेस बिरला के विजय रथ को कभी रोक पाएगी, क्योंकि बिरला 2003 से ही विधानसभा और उसके बाद लोकसभा का लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं।
ओम बिरला के लगातार जीत की वजह यह नहीं है कि वह जन प्रिय या लोकप्रिय नेता है बल्कि असल वजह है, कांग्रेस के नेताओं के बीच आपसी गुटबाजी और फूट। इसका लाभ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को चुनाव में मिलता है। कांग्रेस के भीतर नेताओं के बीच आपसी गुटबाजी के चलते बिरला ने कांग्रेस के हाडोती संभाग के दिग्गज नेता पूर्व मंत्री राम किशन वर्मा, पूर्व विधायक पूर्व सांसद रामनारायण मीणा, पूर्व विधायक प्र्रहलाद गुंजल को विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में हराया है।
कोटा संसदीय क्षेत्र को लेकर राजनीतिक गलियारों, मीडिया और हाडोती संभाग में ओम शांति ओम का स्लोगन प्रचलित है। ओम बिरला की जीत का आधार भी हाडोती की जनता ओम शांति ओम के स्लोगन को ही अधिक मानती है। ओम का मतलब भाजपा नेता ओम बिरला और शांति का मतलब कांग्रेसी नेता शांति धारीवाल हैं। हाडोती की जनता ही नहीं बल्कि कांग्रेस के नेता भी यह कहते हुए दिखाई देते हैं कि ओम बिरला की जीत का आधार ओम शांति ओम का मंत्र है। यदि 2024 के लोकसभा चुनाव में, शांति धारीवाल और उनके समर्थक भाजपा को छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए कांग्रेस प्रत्याशी बने प्रहलाद गुंजल का विरोध नहीं करते तो शायद ओम बिरला चुनाव हार जाते। इसका मलाल कोटा के कांग्रेस के एक वर्ग में स्पष्ट नजर आता है, क्योंकि ओम बिरला बहुत कम अंतर से चुनाव जीते। यह पहली बार नहीं हुआ है। यह राम किशन वर्मा और रामनारायण मीणा जब चुनाव लड़े थे तब भी यही देखा गया था। कोटा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस कमजोर नहीं है। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कोटा संसदीय क्षेत्र की पांच विधानसभा सीट जीती थी, मगर लोकसभा में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रहलाद गुंजल लगभग 50000 मतों से चुनाव हार गए, इसकी वजह ओम शांति ओम का मंत्र ही है ऐसा आरोप कांग्रेस के ही कार्यकर्ता लगाते हैं।
ओम बिरला से लोकसभा का चुनाव हारने के बाद प्रहलाद गुंजल अभी भी कोटा संसदीय क्षेत्र में जनता के बीच सक्रिय नजर आ रहे हैं। गुंजल की सक्रियता को ओम बिरला भी समझ रहे हैं और इसीलिए ओम बिरला भी अपने कोटा संसदीय क्षेत्र में अब पहले से अधिक सक्रिय नजर आते हैं। बिरला की कोटा संसदीय क्षेत्र के भाजपा संगठन पर जबरदस्त पकड़ है। कोटा शहर जिला अध्यक्ष राकेश जैन कोटा शहर में भारतीय जनता पार्टी को मजबूत करने में लगे हुए हैं। जबकि कांग्रेस अभी भी शहर में निष्क्रिय दिखाई दे रही है और इसका कारण भी ओम शांति ओम का फार्मूला ही है। यह आरोप भी कांग्रेस के एक वर्ग की तरफ से लगता सुनाई देता है क्योंकि कोटा शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष लंबे समय से रविंद्र त्यागी हैं जो शांति धारीवाल के खास सिपासालार हैं। गुंजल की सक्रियता से लगता है कि वह जो भूल कांग्रेस से 2024 के लोकसभा चुनाव में हुई थी उस भूल को आने वाले लोकसभा चुनाव में नहीं दौहराएंगे।
31 मई को कोटा में संविधान बचाओ रैली का आयोजन है। प्रहलाद गुंजल ने बड़ी तैयारी की है। इस रैली से संकेत मिल जाएंगे की कांग्रेस ओम बिरला के विजय रथ को भविष्य में रोक पाएगी या नहीं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)