
-देवेंद्र यादव-

कांग्रेस को उम्र दराज नेताओं को राज्यों का प्रभारी बनाने से कोई फायदा तो हो नहीं रहा बल्कि नुकसान ही हो रहा है। राज्यों में कांग्रेस मजबूत होने की जगह कमजोर हो रही है।
बिहार को छोड़ दे तो ज्यादातर राज्यों में या तो कांग्रेस ने उम्र दराज नेताओं को राष्ट्रीय प्रभारी बनाकर भेजा है या फिर वह नेता हैं जो, अपने प्रभार वाले राज्यों में फेल होने के बाद उन्हें अन्य राज्यों में भेजा है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या कांग्रेस के पास राज्यों में प्रभारी लगाने के लिए प्रभावशाली नेता नहीं बचे हैं या फिर कोई बड़ी मजबूरी है जिसके कारण हाई कमान ने उम्र दराज नेताओं को प्रभारी बनाकर राज्यों में कठपुतली के रूप में बेठा रखा है। जैसे खेत में फसल की रक्षा के लिए पुतला खड़ा तो है मगर पक्षी पुतले के सिर पर बैठकर फसल को चौपट कर रहे हैं।
इसकी मिसाल उत्तर प्रदेश है। कांग्रेस ने अविनाश पांडे को उत्तर प्रदेश का राष्ट्रीय प्रभारी बनाकर भेजा। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में लंबे समय बाद अच्छा प्रदर्शन किया। कांग्रेस को लगा कि उत्तर प्रदेश में यदि कांग्रेस का संगठन मजबूत हो तो पार्टी आने वाले विधानसभा चुनाव में और अधिक बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। शायद इसीलिए कांग्रेस में उत्तर प्रदेश में संगठन सृजन का शोर बहुत मचा। कांग्रेस की तरफ से खबर आने लगी कि पार्टी पूरे देश में संगठन सृजन का कार्य करेगी। लेकिन जब उत्तर प्रदेश के 75 जिलों के लगभग 133 जिला अध्यक्ष की घोषणा हुई तो पता चला कि माथे पर बैठकर फसल चौपट हो गई। क्योंकि ज्यादातर वही लोग अध्यक्ष बने जो पूर्व में भी जिलों में अध्यक्ष थे। उत्तर प्रदेश वह राज्य है जहां से राहुल गांधी स्वयं लोकसभा के सांसद हैं। जब राहुल गांधी के निर्वाचन राज्य में संगठन के सृजन का कार्य उत्तर प्रदेश की कार्यकर्ताओं के अनुकूल नहीं हुआ तो फिर बाकी के राज्यों में क्या हो रहा होगा। यह सबसे बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी की बात कोई सुन नहीं रहा है या मान नहीं रहा है। सवाल राहुल गांधी पर खड़े हो रहे हैं। राहुल गांधी ने गुजरात में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच में कहा था कि कांग्रेस के भीतर भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के नेता पदों पर बैठे हैं। ऐसे नेताओं को पार्टी से बाहर निकालना है। लेकिन जब उत्तर प्रदेश के जिला अध्यक्षों की सूची आई तो पता चला उत्तर प्रदेश में तो सभी जिला अध्यक्ष वफादार ईमानदार कर्मठ कार्यकर्ता हैं जिन्हे वापस से जिला अध्यक्ष बना दिया गया है। उत्तर प्रदेश में जिला अध्यक्षों की सूची को देखकर उत्तर प्रदेश का आम कार्यकर्ता आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर चिंतित है। चिंता का कारण यह नहीं है कि उन्हें जिला अध्यक्ष क्यों नहीं बनाया। चिंता का प्रमुख कारण यह है कि कांग्रेस हाई कमान ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में जिला अध्यक्षों की घोषणा की है यदि ऐसी ही घोषणा विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की की गई तो फिर कांग्रेस का उत्तर प्रदेश में क्या हश्र होगा। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के उम्र दराज नेताओं से राज्यों का प्रभार संभल नहीं रहा है या स्थानीय नेता कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में संगठन सृजन का कार्य चल रहा था, तब दबी जुबान से आवाज आ रही थी कि टीम प्रियंका गांधी के नेता राष्ट्रीय प्रभारी अविनाश पांडे और प्रदेश अध्यक्ष अजय राय पर अपने लोगों को जिला अध्यक्ष बनाने के लिए दबाव डाल रहे हैं। क्या उत्तर प्रदेश में टीम प्रियंका गांधी के नेताओं के दबाव में आकर जिला अध्यक्षों की घोषणा की गई है। यह बड़ा सवाल है और इस सवाल को राहुल गांधी को गंभीरता से लेना होगा या फिर कांग्रेस को अपना संगठन सृजन का काम बंद करना होगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)