-विष्णुदेव मंडल-

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने सहयोगियों के साथ 24 अप्रैल से मिशन -ए -विपक्षी एकता पर हैं। वह अब तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और फिर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात कर चुके हैं। उन्होंने पत्रकारों को बताया कि हम वन टू वन अधिक से अधिक विपक्षियों नेताओं से मिलेंगे और आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक मजबूत अलांइस तैयार करेंगे और भाजपा सरकार को सत्ता से हटाऐंगे।
बिहार के मुख्यमंत्री का कहना था कि मौजूदा सरकार इतिहास को बदल रही है। कहीं कोई काम नहीं हो रहा है सिर्फ प्रचार हो रहा है। मीडिया भी इस प्रचार का हिस्सा बना हुआ है इसलिए जरूरत इस बात की है की सब मिलकर वन टू वन के तहत चुनाव लड़ेंगे और केंद्र के सत्ताधारी दल के बाहर का रास्ता दिखाएंगे।
वन टू वन का मतलब सभी लोकसभा क्षेत्रों में भाजपा एवं उनके सहयोगी दलों के उम्मीदवार के खिलाफ सिर्फ एक उम्मीदवार उतारना है। जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी के मुताबिक वर्ष 1977 और 1989 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार सत्ता से बेदखल किया गया था। उस समय कांग्रेस बेहद मजबूत और पंचायत से लेकर केंद्र तक शासन कर रही थी। उस समय कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने के लिए इस तरह के विपक्षी एकता हुई थी और दोनों ही समय विपक्षियों को सफलता मिली। हालांकि विपक्षियों ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल तो कर दिया लेकिन आपसी सहमति और तालमेल के नहीं होने के कारण उस वक्त के जनता पार्टी या फिर राष्ट्रीय मोर्चा जनता दल अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
उल्लेखनीय है की नीतीश कुमार जेपी आंदोलन की उपज है। वे 1989 में जनता दल राष्ट्रीय मोर्चा का हिस्सा रहे हैं। उस वक्त लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान, शरद यादव , दिवंगत चौधरी देवीलाल, मुलायम सिंह यादव सरीखे बहुतेरे समाजवादी नेता जनता दल का हिस्सा हुआ करते थे। इन सभी ने अपनी अपनी महत्वाकांक्षा के कारण अलग-अलग दल बनाए और राजनीती कीं।
पहले कांग्रेस पार्टी इन विपक्षियों के लिए चुनौती हुआ करती थी। अब कांग्रेस की जगह भाजपा ने ले ली है।
यहाँ उल्लेख करना जरूरी है कि 2019 में भी विपक्षी एकता का प्रयास किया गया था। उस वक्त भी कई राज्यों में विपक्षी पार्टियों की सरकार थी। बावजूद इसके भाजपा के रथ रोकने में विपक्षी पार्टियां कामयाब नहीं हो सकी थीं। हालांकि उस समय नीतीश कुमार एनडीए अर्थात भाजपा के साथ चुनाव लड़े थे और उन्होंने बिहार में 16 सीटों पर जीत हासिल कर राष्ट्रीय जनता दल को शून्य पर आउट कर दिया था। लेकिन अब समीकरण बदल गया है। नीतीश कुमार अब भाजपा से तलाक लेकर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस सरीखे दलों के साथ हो लिए हैं।
अब सवाल उठता है की पूर्व के प्रयोग की तरह 2024 में वन टू वन पालिसी काम आएगी। नीतीश कुमार का प्रयास है कि इस चुनाव को विकास के नाम लड़ने के बजाय पूर्व की तरह जातीय समीकरण और जातीय जनगणना में उलझा दिया जाए। जैसा कि बिहार के मुख्यमंत्री,उपमुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन सहित कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने भी जातीय जनगणना कराने की मांग की है।
गौरतलब है कि 2011 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन की सरकार थी। जातीय और आर्थिक आधार पर जनगणना कराई गई थी। जिसकी रिपोर्ट आज तक प्रकाशित नहीं की गई। लेकिन कांग्रेस अभी सत्ता में नहीं है और वह मौजूदा केंद्र सरकार से जातीय जनगणना कराने की मांग कर रही है।
अब आते हैं नीतीश कुमार के वन टू वन पालिसी के तहत भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ विपक्षी उम्मीदवार खड़ा करने की तो वह इसलिए भी व्यावहारिक नहीं है कि जहां कांग्रेस मजबूत है वहां उनके क्षेत्रीय दल बेहद कमजोर है और जहां क्षेत्रीय दल सत्ता में है वहां कांग्रेस बेहद कमज़ोर है। क्या ममता बनर्जी सीपीआइर्, सीपीएम और कांग्रेस से पश्चिम बंगाल में अलाइंस कर उसे सीट देगी? क्या अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में बसपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने को तैयार हो जाएंगे। क्या वहां वन टू वन पॉलिसी की तहत उम्मीदवार खड़े करेंगे? क्या अखिलेश यादव और ममता बनर्जी राजस्थान और मध्य प्रदेश में अपने उम्मीदवार नहीं उतारेंगे? सबसे बड़ी बात यह है क्या नीतीश कुमार जो अपने साथ बिहार में 7 दलों को जोड़ रखे हैं उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव तक जोड़कर रख पाएंगे। क्या उन्हें बिहार की 40 सीटों पर सत्ता में हिस्सेदारी दे पाएंगे?
विपक्षी एकता और शरद पवार
यहां इस बात का उल्लेख भी करना जरूरी है कि जहां नीतीश कुमार कांग्रेस समेत सभी क्षेत्रीय दलों को एकजुट करने में लगे हैं वहीं कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी अर्थात शरद पवार की पार्टी को अपने पाले में लाना नीतीश कुमार के लिए आसान नहीं होगा। जहां सभी विपक्षी पार्टी अदानी मुद्दे पर कांग्रेस के साथ खड़े हैं वहीं एनसीपी ने उस मुद्दे को ही खारिज कर दिया। वह जेपीसी के मुद्दे पर भी कांग्रेस के साथ नहीं है। ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि नीतीश कुमार का मिशन ए विपक्ष को एकजुट करना बेहद कठिन है। ं 21वीं सदी में मुद्दा बिन राजनीति की बदौलत नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करना बेहद चुनौतीपूर्ण ह।ै प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब बिल्कुल चुनावी मोड में आ चुके हैं। वह अब ज्यादा से ज्यादा बात रैलियों के जरिए एवं कार्यक्रमों के जरिए जनता तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश करेंगे कि वह देश के लिए काम कर रहे हैं। वह भ्रष्टाचार के नाम पर सभी क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस को कटघरे में खड़े कर रहे हैं। हर दिन ईडी और एनआईए की छापेमारी देश के अलग-अलग हिस्से में हो रही हैं। जन कल्याणकारी योजनाओं का इंप्लीमेंटेशन और भ्रष्टाचारियों पर हो रही कार्रवाई को मुद्दा बनाकर मौजूदा मोदी सरकार विपक्ष के साथ वन टू वन लड़ने को तैयार है। सबसे बड़ी बात नीतीश कुमार के ऊपर भरोसा करने की है तो अब तक का उनका राजनीतिक चरित्र यह बतलाता है कि वह अस्थाई नहीं है वह कभी भी पाला बदल सकते हैं। जीतने से पहले या फिर जीतने के बाद क्योंकि वह अब तक कई गठबंधन को तोड़ चुके हैं। इसलिए गठबंधन बनाने वाले दलों को इन पर विश्वास करना आसान नहीं होगा।
लेखक बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं
नीतीश कुमार सियासत के कगार में आ चुके हैं, बिहार की जनता का मन टटोल कर देखें तो हैसियत का पता चलजायेगा