अब जब बेंगलुरू में भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का प्रयास कर रहे विपक्ष दलों के नेताओं की 18 जुलाई को बैठक होगी तो ममता बनर्जी की पार्टी पंचायत चुनावों में अपनी की जीत से आत्मविश्वास से भरी होगी। यूं तो ये पंचायत चुनाव ही थे, लेकिन कठिन थे। ममता के लिए यह जीत कमकर नहीं आंकी जा सकती हैं। पार्टी को बूस्ट मिलेगा और वह विपक्षी एकता के पलड़े में तृणमूल का वजन बढ़ेगा ।
-पंचायत चुनावों के नतीजे दे रहे गवाही
-द ओपिनियन-
ममता बनर्जी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि बंगाल में उनका जादू कायम है। वह आज भी लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। माकपा ने अपने शासनकाल में ग्राम स्तर तक अपनी पार्टी का तंत्र खड़ा कर जबर्दस्त पकड़ बनाई थी लेकिन ममता सत्ता में आई तो माकपा का जादू खत्म हो गया। राज्य में गत दिनों हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हिंसा की वजह से आलोचना के केंद्र में आ गए हैं, लेकिन अभी तक आए नतीजों से यह साबित हो गया है कि तृणमूल कांग्रेस का गांवों में जबर्दस्त प्रभाव है। भाजपा के लिए राहत भरी खबर बस इतनी है कि तृणमूल के बाद वही सबसे बड़ी पार्टी है। माकपा व कांग्रेस दोनों को मिला दो तो भी चुनाव नतीजे यह बताते हैं कि भाजपा उन दोनों से बहुत आगे है, लेकिन फिलहाल यह भी इन नतीजों से साफ है कि ममता बनर्जी को फिलहाल कोई सियासी खतरा नजर नहीं आ रहा है। तृणमूल ने ग्राम पंचायतों के साथ जिला परिषदों में भी बढ़त ले रखी है। वह निर्णायक जीत की ओर है।
लेकिन इस बार चुनावों में हुई हिंसक घटनाएं चिंता का विषय है। मतदान के बाद अधिकतर नतीजे आने के बाद भी हिंसा का सिलसिला थमा नहीं है। बुधवार सुबह भी मतगणना के बीच हिंसक घटनाएं हुई हैं। पंचायत चुनावों में 30 से अधिक लोगों की जान चली गई। हालांकि विपक्षी नेता यह आंकड़ा इससे कहीं और ज्यादा होने का दावा कर रहे हैं। अब जब बेंगलुरू में भाजपा के खिलाफ एकजुट होने का प्रयास कर रहे विपक्ष दलों के नेताओं की 18 जुलाई को बैठक होगी तो ममता बनर्जी की पार्टी पंचायत चुनावों में अपनी की जीत से आत्मविश्वास से भरी होगी। यूं तो ये पंचायत चुनाव ही थे, लेकिन कठिन थे। ममता के लिए यह जीत कमकर नहीं आंकी जा सकती हैं। पार्टी को बूस्ट मिलेगा और वह विपक्षी एकता के पलड़े में तृणमूल का वजन बढ़ेगा । कभी बंगाल की राजनीति में एक दूसरे की प्रतिद्वंद्वी रही माकपा नीत वाम मोर्चा व कांग्रेस अब एक साथ हैं। दोनों ने मिलकर पंचायत चुनाव लड़ा है। इससे पहले त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में चुनाव में दोनों के बीच गठबंधन था। बंगाल में कांग्रेस ममता व ममता की पार्टी पर सियासी हमले करती रहती है , लेकिन वह लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ गठबंधन कायम करने के लिए ममता को अपने साथ लाना चाहती है। पटना बैठक में ममता शामिल हुई थी। अब देखना यह है कि पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव के बाद कांग्रेस व तृणमूल कांग्रेस के रिश्तों में कोई बदलाव आता है या नहीं। भाजपा व तृणमूल कांग्रेस एक दूसरे पर सियासी हमले जारी रखेंगे क्योंकि दोनों मुख्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहेंगे और राज्य में फिलहाल कोई भी सियासी मुकाबला इनके बीच ही होने के आसार हैं। इंडियन सेक्यूलर फ्रंट भी राजनीतिक ताकत अर्जित कर रहा है। वर्तमान में उसका एक विधायक है। फ्रंट के तार फुरफुरा स्थित एक दरगाह से जुड़े हैं। दरगाह के से जुड़े परिवार के सदस्यों ने ही इसे गठित किया है।

















