
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को बने लगभग डेढ़ वर्ष हो गया है, लेकिन अभी भी भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री बनने की चाहत रखने वाले नेताओं की खुमारी मन से जाने का नाम नहीं ले रही है। अभी भी नेता इस आस में है कि कब पार्टी हाई कमान उनके नाम की पर्ची निकालकर उन्हें मुख्यमंत्री बना दे। राजनीतिक गलियारों में अभी भी लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे का नाम समय-समय पर तैरता दिखाई देता है।
2023 में संपन्न हुए राज्य विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री की कुर्सी की रेस में प्रमुखता से श्रीमती वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत और ओम बिरला नजर आ रहे थे। ओम बिरला और गजेंद्र सिंह शेखावत गुजरात लॉबी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के दुलारे नेता थे। दुलारे नेता देश के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल भी हैं और गाए बगाए मुख्यमंत्री की रेस में उनका नाम भी सुनाई देता है। नाम तो ओम माथुर, भूपेंद्र यादव का और सुनील बंसल का भी सुनने में आता है। मगर जिन नेताओं को मुख्यमंत्री की कुर्सी की चाहत अधिक है वह दोनों नेता हाडोती संभाग से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हैं जिनके समर्थक अभी भी इस उम्मीद में है कि कब उनका नेता राज्य के मुख्यमंत्री की शपथ ले लेगा।
राजस्थान बीजेपी में लगभग एक दर्जन नेताओं की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने की चाहत थी। मगर विधायकों के बीच बैठ कर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा की पर्ची निकाली और उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। मुख्यमंत्री की चाहत रखने वाली वसुंधरा राजे और ओम बिरला के लिए यह क्षण किसी सदमें से कम नहीं था क्योंकि दोनों ही नेता इस उम्मीद में थे कि पर्ची उनके नाम की निकलेगी।
भजन लाल शर्मा सरकार को लगभग डेढ वर्ष हो गया मगर भजन लाल शर्मा अभी तक ना तो अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन कर पाए और ना ही राजनीतिक नियुक्तियां कर पाए। यहां तक कि डेढ वर्ष में भजन लाल शर्मा कोई बड़ा प्रशासनिक फेर बदल तक नहीं कर पाए। इस कारण अक्सर अटकलें लगती है कि किसी भी समय ओम बिरला या वसुंधरा राजे राज्य की मुख्यमंत्री बन सकती हैं। सवाल यह है कि क्या ओम बिरला और वसुंधरा राज की मुख्यमंत्री की चाहत ही भजनलाल शर्मा को मंत्रिमंडल का पुनर्गठन, राजनीतिक नियुक्तियां और बड़े प्रशासनिक फेरबदल करने से रोक रही है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सहित उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों का बार-बार कोटा आना, भी इन हवाओं को बल देता है कि भजन लाल नहीं बल्कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला राज्य सरकार को चला रहे हैं। शायद इसे देखकर ही वसुंधरा राजे भजन लाल शर्मा के कामकाज से नाराज दिखाई दीं। यह नाराजगी उस समय खुलकर नजर आई जब उन्होंने राजस्थान में पेयजल की समस्या को सार्वजनिक रूप से उठाया और भजनलाल सरकार को आड़े हाथों लिया। क्योंकि वसुंधरा भी कोटा संभाग की झालरापाटन सीट से विधायक हैं और उनके पुत्र दुष्यंत सिंह झालावाड़ संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं। झालावाड़ और बारां संसदीय क्षेत्र वसुंधरा राजे का गढ़ है और पारंपरिक क्षेत्र है जहां से वह पहली बार सांसद बनी और जब वह पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनी तब से लेकर अब तक वह झालरापाटन सीट से विधायक बन रही है। हाडोती संभाग में भाजपा की तरफ से जीते अधिकांश विधायक वसुंधरा की पसंद के कारण ही हैं। ओम बिरला को पहली बार विधायक बनने का अवसर वसुंधरा के कारण ही मिला था। उस समय वसुंधरा राजे राज्य की मुख्यमंत्री की कुर्सी की प्रबल दावेदार थीं और उनके नेतृत्व में राजस्थान में कांग्रेस की प्रचंड बहुमत की सरकार को हराकर भाजपा ने सरकार बनाई थी।
सवाल यह है कि क्या ओम बिरला को पहली बार लोकसभा का अध्यक्ष मोदी ने इसलिए बनाया था ताकि श्रीमती वसुंधरा राजनीतिक रूप से कमजोर रहें। चाहे वसुंधरा राज्य की मुख्यमंत्री नहीं बनी मगर वह राजस्थान की राजनीति में अभी भी मजबूत हैं। शायद ओम बिरला वसुंधरा राजे को राजनीतिक रूप से कमजोर करने में असफल नजर आ रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)