द ओपिनियन डेस्क
मुंबई। चालीस दिन के इंतजार के बाद महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे और देवेंद्र देवेंद्र फडणवीस की मंत्रिमंडल का मंगलवार को विस्तार हो गया। मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर जो गतिरोध था वह दूर हो गया है। दो सदस्यीय शिंदे कैबिनेट के विस्तार में देरी को लेकर उद्धव ठाकरे की शिवसेना व राकांपा की ओर से खूब तंज कसे जा रहे थे। क्योंकि यह विस्तार न सहज था और न आसान। जब किसी सत्तारूढ पार्टी में सत्ता में भागीदारी के सवाल को लेकर टूट होती है तब इस तरह की चुनौती आना स्वाभाविक है क्योंकि तब बागी गुट के हर सदस्य को मंत्री पद चाहिए होता है। ऐसे में

सभी को संतुष्ट करना आसान नहीं होता। फिर ंिशंदे गुट भाजपा के सहारे पर निर्भर है इसलिए सत्ता में उसकी भागीदारी भी अहम है। अंतत: लम्बी चर्चा के बाद भागीदारी का कोई फार्मला तय होने के बाद विस्तार हो गया। है। राज्यपाल भग

त सिंह कोश्यारी ने कुल 18 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई है। भाजपा के कोटे से 9 मंत्रियों ने शपथ ली है। एकनाथ शिंदे नीत गुट से भी इतने ही विधायकों ने शपथ ली है। यानी फिलहाल दोनों का पलड़ा बराबर है। विभागों के बंटवारे के बाद ही पता सकेगा कि पलड़ा किसका भारी है। गृह, वित्त और स्थानीय निकाय जैसे असरदार विभाग किसके खाते में आते हैं, यह बहुत ही अहम है। सीएम बनने के बाद शिंदे के सामने कई और चुनौतियां भी हैं। असली लडाई यह है कि शिवसेना आखिर किसकी है। यह मामला अभी अदालत में है और वहां से फैसला आने के बाद ही यह तय हो सकेगा कि असली शिवसेना कौनसी है। ठाकरे नीत पार्टी या शिंदे नीत गुट। इसके बाद जब चुनाव आएंगे तब जनता तय करेगी कि सत्ता की चाबी किसे सौंपी जाए।
नए मंत्रियों में शिवसेना के संजय राठौड़ शामिल हैं, जो उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली सरकार में वन मंत्री थे। राठौड पिछले सरकार में एक विवाद में फंस गए थे। बाद में उन्हें भाजपा के दबाव में इस्तीफा देना पड़ा था ऐसे में अब फिर विवाद शुरू हो सकता है। दूसरी ओर किसी निर्दलीय विधायक को भी फिलहाल मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई है। नए मंत्रिमंउल में किसी महिला सदस्य को भी जगह नहीं दी गई है।

















