
-विष्णुदेव मंडल-

(बिहार मूल के स्वतंत्र पत्रकार)
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी द्वारा अचानक संसद के विशेष सत्र आहूत किए जाने की घोषणा से राजनीतिक हलचल पैदा हो गई है। राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को ऐसा महसूस होने लगा है कि शायद लोकसभा चुनाव समय से पहले करा लिए जाएं। इस तरह की आशंका बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले भी व्यक्त कर चुके हैं। उन्होंने कहा था क केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव तय समय से पहले भी करा सकती है। इसलिए सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हो कर चुनाव में जांए और भाजपा से हर एक सीट पर सीधा मुकाबला हो।
(आई एन डी आई ए ) गठबंधन की बैठक में पहुंचे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह संकेत दिया है कि आगामी लोकसभा चुनाव में बिहार में महागठबंधन जो अब इंडिया अलांयस है के दो बड़े घटक दल राष्ट्रीय जनतादल और जनतादल यूनाइटेड 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे वही 6 सीटें सहयोगी दलों को दी जाएंगी।
उल्लेखनीय है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा थे। एनडीए ने बिहार में 40 सीटों पर मुकाबले में 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि बिहार के वर्तमान सबसे मजबूत राजनीतिक दल राष्ट्रीय जनता दल का खाता भी नहीं खुला था। एक सीट कांग्रेस को हाथ लगी थी।
लेकिन इस बार लालू और नीतीश साथ-साथ आ गए हैं। साथ में कांग्रेस एवं वामपंथी दल भी शामिल है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुसार भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिए सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट होना होगा तथा सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले एक प्रत्याशी खड़े करने होंगे। जैसा कि 1989 में किया गया था। उसे वक्त कांग्रेस पार्टी सबसे मजबूत थी। उसे सत्ता से बाहर करने के लिए राजनीतिक गठजोड़ के तहत राष्ट्रीय मोर्चा बनाया गया था। हालांकि राष्ट्रीय मोर्चा को पूर्ण बहुमत तो नहीं मिला लेकिन इस गठजोड़ ने कांग्रेस के विजय रथ को जरूर रोक दिया। हालांकि नीतीश कुमार की इस सीट शेयरिंग पर सभी सहयोगी दल मान जाए अभी कहना जल्दबाजी होगी। एक तरफ निषाद का प्रतिनिधित्व करने वाले मुकेश सहनी का वीआईपी किसी अलांयस का हिस्सा नहीं है जबकि बिहार की कई ऐसे लोकसभा सीट है जहां पर मल्लाह समुदाय के लोग निर्णायक भूमिका में होते हैं। ऐसे में मुकेश सहनी को दरकिनार करना एनडीए और इंडिया दोनों के लिए आसान नहीं होगा। साथ ही कांग्रेस पार्टी महज तीन चार सीटों पर मान जाए फिलवक्त यह भी कहना जल्दबाजी होगी।
बहरहाल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली यह भाजपा पहले की तुलना में बहुत ही मजबूत स्थिति में है। जिससे बिना एकजुट विपक्ष के हराना आसान नहीं होगा। अधिकांश राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों की सरकार है जबकि चुनाव लोकसभा के होने हैं ऐसे में मतदाता को मजबूत विकल्प देना होगा।
बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव एक साथ मिलकर भाजपा को हराने की घोषणा करते रहे हैं। लेकिन बिहार के मौजूदा राज्य सरकार मंत्रिमंडल के सदस्यों और अधिकारियों के बीच तालमेल की अभाव है। जहाँ लालू यादव की पार्टी बिहार में मज़बूत काडर वाली है वही नीतीश कुमार के जनाधार लगातार घट रहा है। अति पिछड़ा और पिछड़ों की राजनीति करने वाले नीतीश कुमार से नाराज होकर कोईरी नेता उपेंद्र कुशवाहा पार्टी छोड़ चुके है।ं कभी नीतीश का हनुमान कहे जाने वाले रामचंद्र प्रसाद सिंह भाजपा में शामिल हो गए हैं। इनके अलावा हजारों की संख्या में नीतीश पर भरोसा करने वाले नेता और कार्यकर्ता भाजपा और लोजपा के दामन थाम चुके हैं। ऐसे में बिहार में सभी चालीस सीटों पर जीत की आशा करना भी बेमानी प्रतीत हो रही है। बिहार में एंटी इनकन्वेंसी केंद्र सरकार के खिलाफ कम और बिहार सरकार के खिलाफ अधिक है। चारों तरफ त्राहिमाम ह।ै हर जिले में भूमि विवाद पर खून खराब हो रहे हैं। अपराधी बेलगाम है रोजगार के लिए युवा हमारे मारे मारे फिर रहे हैं ऐसे में मुख्यमंत्री का राजनीतिक गणित पर भाजपा का रसायन भारी पड़ सकता है।
Bilkul sahi Barojgari bhrastachar lalu se dosti kahi ke jdu nahi rahega .