
-चार राज्यों में विधानसभा चुनावों के लिए बजने वाली है रणभेरी
-गजानंद शर्मा-

चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इसके लिए सियासी शतरंज भी सजने लगी है। हाल के घटनाक्रम से यह तस्वीर अब साफ होने लगी है कि इन राज्यों के कौन-कौन से मुद्दे चुनावों के केंद्र मंे रहने वाले हैं। गत दिनों लोकसभा में जाति को लेकर जिस तरह घमासान मचा, उससे साफ है कि यह बात यहीं खत्म नहीं होने वाली है। यह एक बड़े कारक के रूप में इन चुनावी राज्यों में आने वाली है। भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में बजट पर चर्चा के दौरान जब जाति को लेकर टिप्पणी की तो विपक्ष ने इसे नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर परोक्ष हमला माना। उनके बचाव में समाजवादी पार्टी के मुखिया व सांसद अखिलेश यादव आए और उन्होंने पलटवार किया और भाजपा व अनुराग ठाकुर को घेरा। राहुल गांधी ने यह कहकर एक तरह से विभिन्न राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए एजेंडा तय करने का ही कम किया कि जब भी सत्ता में आएंगे जातिगत जनगणना कराई जाएगी। रही आरक्षण की बात तो सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति के लिए कोटे के वर्गीकरण के बारे में अहम फैसला देकर सामाजिक न्याय को धरातल तक पहुंचाने का एक रास्ता खोल दिया है। चुनाव में राजनेता शीर्ष अदालत के इस फैसले को अपने-अपने हिसाब से सियासी हथियार बनाने से चूकने वाली नहीं है। चुनाव में मुद्दे और भी होंगे, लेकिन फिलहाल लगता है आरक्षण और जाति को हर पार्टी रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से चूकेगी नहीं। हथियार तो ये लोकसभा चुनाव में भी बने थे। कांग्रेस ने यह कहते हुए भाजपा को निशाने पर लिया कि भगवा पार्टी की सरकार आई तो वह संविधान बदल देगी और आरक्षण को खत्म कर देगी। हालांकि यही हमला भाजपा ने कांग्रेस पर किया और ओबीसी आरक्षण को लेकर कांग्रेस की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े किए। अब विधानसभा चुनावों में इन मुद्दों को रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने से न कांग्रेस ने कोई परहेज वाली है और ना ही भाजपा। अब तो लगता है इन चुनावों में सुशासन से ज्यादा जाति और आरक्षण की ही बात दूर तक जाएगी। चार चुनावी राज्यों महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा और जम्मू कश्मीर में से महाराष्ट्र की राजनीति से पहले ही आरक्षण के मुद्दे का अखाड़ा बनी हुई है। राज्य का मराठा समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण मांग रहा है, वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल अन्य जातियां इसके खिलाफ है। करीब साल डेढ़ साल से यह मुद्दा महाराष्ट्र मंे चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है और अब लगता है कि यह सियासत के केंद्र में भी आ गया है। मराठा आरक्षण को लेकर पिछड़े के हितों की पैरवी में उतरे राज्य सरकार में मंत्री छगन भुजबल ने गत दिनों राकांपा के संस्थापक व दिग्गज नेता शरद पवार से मुलाकात की और इस मुद्दे को हल के लिए मदद का आग्रह किया ताकि सामाजिक सौहार्द पर कोई आंच ना आए। इसके बाद शरद पवार ने एक कार्यक्रम में यह टिप्पणी कर सभी को चौंका दिया कि महाराष्ट्र में भी मणिपुर जैसे हालत होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह बात मराठा आरक्षण को लेकर सामाजिक स्तर पर बढ़ती दूरियों के संदर्भ में ही कही है। स्वराज और हिंदुत्व की अलख जगाने वाले राज्य को आरक्षण की राजनीति अब ऐसे मुकाम पर ले आई है कि वहां सामाजिक सौहार्द को खतरा महसूस किया जा रहा है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में मराठा आरक्षण और ओबीसी हितों की रक्षा पर का मुद्दा छाया रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। वैसे भी महाराष्ट्र की सियासत बहुत पेचीदा हो गई है। लोकसभा चुनाव में महा विकास अघाड़ी को मिली सफलता के बाद विपक्षी खेमा उत्साहित है और राजनीतिक ताकतों के
पुन:धुव्रीकरण की बातें भी खूब हो रही हैं। अजित पवार के कई सहयोगियों के शरद पवार के खेमे में लौटने की भी बातें हो रही हैं, वहीं सीएम फेस पर पक्ष- विपक्ष यानी दोनों खेमों में आमराय नहीं है। सत्तारूढ महायुति का अहम घटक भाजपा चाहती है कि गठबंधन बिना सीएम फेस चुनाव मैदान में उतरे और बहुमत हासिल करने पर जो पार्टी सबसे ज्यादा सीटें लेकर आए उसका सीएम हो, लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पार्टी के नेताओं का मानना है कि सत्ता में वापसी पर मुख्यमंत्री पद पर हक उसका है। पक्ष-विपक्ष दोनों गठबंधनों में तीन-तीन पार्टियां हैं-एमवीए में शरद पवार नीत राकांपा, उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना और कांग्रेस। वहीं सत्तारूढ महायुति खेमे में भाजपा, एकनाथ शिंदे नीत शिवसेना व अजित पवार नीत राकांपा शामिल हैं। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में भाजपा के सबसे बडे चेहरे देवेंद्र फडणवीस को लेकर बहुत आक्रामक हैं। गत दिनों उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक में जो कहा कि उसका सार यही है कि उनकी फडणवीस के खिलाफ आर-पार की लड़ाई है। सियासत के उलझे तारों के बीच तीन-तीन कोण वाले इन गठबंधनों में कौन सी पार्टी समकोण बनकर उभरती है, यह बहुत दिलचस्प होगा। एमवीए लोकसभा चुनाव वाली लय बरकरार रखना चाहेगा, पर वहीं भाजपा की सारी व्यूहरचना इस लय को तोड़ने की होगी। गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों महाराष्ट्र के दौरे के दौरान भ्रष्टाचार को लेकर शरद पवार पर जिस तरह से हमला किया कि उससे साफ है कि भाजपा की रणनीति शरद पवार को रोकने की होगी। वहीं, शरद पवार ने गृह मंत्री शाह को निशाना बनाया। यहां लड़ाई दो चाणक्यों शरद पवार और अमित शाह की रणनीति की ही होगी। कुछ इस तरह की सियासी शतरंज झारखंड और हरियाणा में भी बिछ रही है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को हरियाणा में भी जोरदार झटका लगा था, पर यहां कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा की आपसी खींचतान में उलझी है तो भाजपा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को लेकर नए सामाजिक समीकरण गढ़ना चाह रही है। अब देखना यह है कि क्या वह अन्य पिछड़ा वर्ग को एक वोट बैंक के रूप में तब्दील करने में कामयाब होती है या नहीं। पार्टी ने लोकसभा चुनाव से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल खट्टर को बदलकर संभावित सत्ता विरोधी रूझान को कम करने की कोशिश की थी। अब पार्टी वहां ब्राह्मण प्रदेश अध्यक्ष और जाट चुनाव प्रभारी लाकर नए सिरे से समाजिक समीकरण साधने की कोशिश कर रही है, वहीं झारखंड में पार्टी ने घुसपैठियों के सामाजिक ताने-बाने में बढ़ते दखल को लेकर अपनी रणनीति बना रही हैै। वहीं कांग्रेस व झामुमो के पास सियासी हथियार जाति व आरक्षण रहने की उम्मीद है। जम्मू कश्मीर में तीस सितंबर से पहले चुनाव कराने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश है। हाल ही में जम्मू क्षेत्र में आतंकी हिंसा में आई तेजी के बाद केंद्र सरकार ने सुरक्षा प्रबंध और कड़े कर सीमा पार साफ संकेत दे दिए हैं कि पाकिस्तान की दाल अब यहां गलने वाली नहीं है, लेकिन चुनाव में आतंकी िहंसा यहां अहम मुद्दा होगी।
साफ है राजनीतिक दल अपनी चुनावी व्यूहरचना में जुटे हैं और उन्हें चुनावी रणभेरी बजने की प्रतीक्षा है, वहीं चुनाव आयोग जल्द ही चुनावी राज्यों का दौरा करने वाला है। वह प्रशासनिक तैयारियों संबंधी दिशा-निर्देश संबंधित राज्यों को जारी कर चुका है। चुनाव आयोग की सक्रियता से लगता है कि इस माह के अंत तक चुनाव आयोग चुनाव तिथियों की घोषणा कर सकता है। (साभार सच बेधड़क)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये लेखक के अपने विचार है)