
-देवेंद्र यादव-

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 में सत्ताधारी कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद पार्टी नेताओं ने हार का मंथन किया मगर, जिन नेताओं के कारण कांग्रेस की हार हुई उन नेताओं को दंडित तो नहीं किया बल्कि, कांग्रेस को मजबूत करने के नाम पर जिम्मेदार नेताओं ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी का विस्तार करते हुए एक विशालकाय प्रदेश कार्यकारिणी का ऐलान कर दिया। यह वैसा ही था जैसे 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के स्वयंभू नेताओं ने टिकटों का आपस में बंटवारा कर लिया और कांग्रेस जीती हुई बाजी को हार गई। ठीक वैसे ही प्रदेश कार्यकारिणी में पदाधिकारीयो को नियुक्त कर पदों का बंटवारा कर लिया। मजेदार बात यह है कि जब कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के हाथ कुछ नहीं लगा तो उन्होंने कांग्रेस संविधान को परे करते हुए अपने स्तर पर अपने लेटर हेड पर दर्जनों पदाधिकारियों की नियुक्तियां कर दी। इन नियुक्तियों से पता चलता है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं को कांग्रेस हाई कमान की बिल्कुल भी परवाह नहीं है। यदि हाई कमान की परवाह होती तो, प्रदेश पदाधिकारियों की नियुक्तियां कांग्रेस के संगठन महामंत्री के लेटर हेड पर होती ना की प्रदेश के प्रभारी के लेटर हेड पर। राहुल गांधी को प्रदेश में आकर यह भी गंभीरता से देखना होगा कि कांग्रेस को प्रदेश में जंबो कार्यकारिणी की जरूरत क्यों पड़ी। जबकि प्रदेश में अपने आप को बड़ा नेता कहने और मानने वाले नेताओं की भरमार है। इसी का परिणाम है कि कांग्रेस में स्वयंभू नेता तो बहुत है मगर उनके पास मजबूत राजनीतिक जमीन नहीं है। राहुल गांधी अब इसी मिशन पर निकले हैं, वह देख रहे हैं कि कांग्रेस के किस नेता में कितनी दम है और दम है भी या नहीं।
मैंने अपने पिछले ब्लॉग में लिखा था कि यदि राहुल गांधी राजस्थान कांग्रेस की हकीकत जानना चाहते हैं तो छुट्टन मीना से नहीं कांग्रेस के आम कार्यकर्ताओं से बात करें। राहुल गांधी 28 अप्रैल को राजस्थान के दौरे पर आ रहे हैं। वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं से मुलाकात भी करेंगे और जानेंगे कि राजस्थान में चल क्या रहा है। जब राहुल गांधी राजस्थान आ ही रहे हैं तो, कार्यकर्ताओं के अलावा सबसे पहले वह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा से पूछें कि दोनों ने मिलकर प्रदेश में इतनी विशालकाय कार्यकारिणी बना रखी है फिर भी कांग्रेस कमजोर दिखाई क्यों दे रही है।
भाजपा की सरकार बने 1 वर्ष से भी अधिक का समय हो गया है। राजस्थान में कांग्रेस भाजपा की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतरती नजर क्यों नहीं आ रही है। प्रदेश के पदाधिकारी जनता के बीच दिखाई क्यों नहीं दे रहे हैं जबकि प्रदेश में जितने जिले नहीं है उससे ज्यादा कांग्रेस के प्रदेश पदाधिकारी हैं। इनमें से अधिकांश प्रदेश पदाधिकारी तो एक दूसरे को भी नहीं जानते और पहचानते हैं। जनता और कार्यकर्ताओं को पहचानना तो दूर की बात है। राहुल गांधी ने निर्णय कर लिया है कांग्रेस में बदलाव करने का। अब राहुल गांधी ना तो रुकेंगे और ना ही झुकेंगे, इसकी शुरुआत उन्होंने गुजरात से कर दी है क्योंकि राजस्थान गुजरात का बॉर्डर स्टेट है इसलिए राजस्थान कांग्रेस की दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य है। राजस्थान में भी कांग्रेस का मजबूत होना जरूरी है क्योंकि गुजरात में राजस्थान के व्यापारी कारीगर और मजदूर बड़ी संख्या में हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)