राहुल और खड़गे की जोड़ी का दिखने लगा दबाव

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-देवेन्द्र यादव-

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-देवेंद्र यादव-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भारतीय जनता पार्टी के नेता कांग्रेस पर अक्सर यह आरोप लगाते हुए दिखाई देते थे कि कांग्रेस पर गांधी परिवार का कब्जा है। कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी परिवार के अलावा और कोई नेता नहीं बनता है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के नेताओं का यह बयान अब भाजपा के लिए राजनीतिक सर दर्द बन गया है।
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के तानों से परेशान कांग्रेस और गांधी परिवार ने एक ऐसा जाल बुना कि भाजपा अब उस जाल में फंसती हुई दिखाई दे रही है।
श्रीमती सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद लेने से इनकार कर दिया और उन्होंने इस पद पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कर्नाटक के दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। राहुल गांधी की इस रणनीति का भारतीय जनता पार्टी को बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ। 2019 में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी 2024 के लोकसभा चुनाव में 240 सीट जीतकर बैसाखियों पर जा टिकी।

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2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 99 सीट और भाजपा को 240 सीट मिलने की असल वजह, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का नारा संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ प्रमुख रहा। दलित नेता का यह आह्वान देश के दलित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के लोगों के घर-घर जा पहुंचा। इससे कांग्रेस को यह फायदा हुआ कि उसका जो पारंपरिक वोट था वह पार्टी की ओर वापसी करता हुआ नजर आया।
राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति 2024 में 99 सीट जीतने पर ही नहीं रुकी बल्कि राहुल गांधी और दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की जोड़ी अभी भी संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ और जातीय जनगणना के मुद्दे को देश में बुलंद करने में लगी हुई है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के नारे की बदौलत भारतीय जनता पार्टी सरकार उस समय बैक फुट पर देखी गई जब उसने लैटरल एंट्री को वापस लिया।
राहुल गांधी की राजनीतिक रणनीति, न दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाकर और दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ के नारे को बुलंद कर देश के तमाम दलित आदिवासी और पिछड़े वर्ग के लोगों को अपने हक के लिए एकजुट कर दिया। उन्हें यह बता दिया कि भारतीय जनता पार्टी दलित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के लोगों की सबसे बड़ी दुश्मन है। भारतीय जनता पार्टी को इसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला जब प्रचंड बहुमत वाली सरकार बैसाखियों पर आ कर टिकी। यदि देश की राजनीति पर नजर डालें तो, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर अन्य क्षेत्रीय दल या तो दलित नेताओं की दम पर टिके हुए हैं या फिर दलित नेताओं ने अपनी अपनी क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों बना रखी हैं।
यदि भारतीय जनता पार्टी के 2019 में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आने की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में दलित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के नेताओं की क्षेत्रीय पार्टियों से समझौता कर उनका राजनीतिक सहारा लिया था। अभी भी भाजपा को दलित नेता की पार्टी सहारा दे रही है, लेकिन जब दलितों के नुकसान की बात सामने आई तो भाजपा सरकार की नीतियों का विरोध दलित नेताओं की पार्टियों ने भी किया जो भारतीय जनता पार्टी के लिए भविष्य की खतरे की घंटी है।
लैटरल स्कीम का विरोध भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दे रहे केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी विरोध किया।कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के नेताओं के द्वारा कांग्रेस को बार-बार कोसने का नुकसान अब भारतीय जनता पार्टी भुगतती हुई दिखाई दे रही है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

राहुल के दबाव में मोदी सरकार

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