
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही समय बचा है लेकिन किस की सरकार बनेगी और कौन मुख्यमंत्री बनेगा इसके स्पष्ट संकेत नहीं मिल रहे हैं। यह जरूर है कि जैसे जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है प्रतिद्वंद्वी पक्षों में जुबानी जंग तेजी आती जा रहे है। कई मामलों में तो यह मर्यादा की सीमा से बाहर पहुंच चुकी है। लोकसभा चुनाव में भाजपा को इस राज्य में गहरा झटका लगा था लेकिन तब से बहुत समय बीत चुका है और स्थितियां भी उस समय जैसी नहीं रही हैं। 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए 20 नवंबर को एक चरण में होने वाले मतदान और 23 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे।
महाराष्ट्र में मुख्य मुकाबला दो गठबंधनों (भाजपा, शिंदे सेना और एनसीपी के अजित पवार गुट वाली महायुति) और (कांग्रेस, उद्धव सेना और शरद पवार की एनसीपी की महा विकास अघाड़ी) के बीच है। लेकिन इस चुनाव में छोटे दलों और निर्दलीयों को हल्का आंकना गलती होगी। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के 288 विधानसभा क्षेत्रों में एमवीए को से 156 और महायुति को 126 सीटों पर बढ़त मिली थी। यदि यही रुझान रहे तो प्रदेश में एमवीए की सरकार बननी चाहिए। लेकिन तब और अब में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है।
एमवीए ने “संविधान खतरे में” का संदेश देकर लोकसभा चुनावों में अल्पसंख्यक और दलित वोटों को मजबूत किया था। लेकिन अब यह कोई मुद्दा नहीं रहा है क्योंकि लोकसभा में भाजपा के दो तिहाई बहुमत नहीं मिला और इसकी फिलहाल चर्चा भी नहीं है। लोकसभा चुनाव में जिन छोटे दलों और निर्दलीयों का कोई असर नहीं था वे कुछ सीटों पर विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनाए हैं। मुख्यमंत्री पद को लेकर एमवीए गठबंधन के सहयोगियों के बीच खींचतान ने मामला उलझा दिया है।
महाराष्ट्र में जैसे-जैसे करीबी मुकाबला तीव्र होता जा रहा है, असंयमित भाषा और भड़काऊ भाषणों ने चुनावी माहौल में कडुआहट घोल दी है। महाराष्ट से पहले हाल ही में हुए हरियाणा विधानसभा के चुनाव में भाजपा बैकफुट पर थी और कांग्रेस की सरकार बनती निश्चित नजर आ रही थी लेकिन सभी पूर्वानुमान ध्वस्त कर भाजपा ने राज्य में लगातार तीसरी बार सरकार बना ली। हरियाणा चुनाव में हार से राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की अगुवाई में मजबूत होता दिखाई दे रहा विपक्षी गठबंधन अचानक निराश और हताश नजर आने लगा। अब महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव विपक्ष के लिए एक बहुत बडा मौका है जब वह जीत हासिल कर देश भर में संदेश दे सकता है। लेकिन जीत के बजाय हार मिली तो इसका असर भी पूरे देश में होगा।