
-देवेंद्र यादव-

दिल्ली चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस हाई कमान बिहार को लेकर गंभीर नजर आने लगा है। बिहार में इसी साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं जिसकी घोषणा किसी भी समय हो सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के इंतजार से ज्यादा राजनीतिक पंडित और विश्लेषक इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि कांग्रेस और राजद मिलकर चुनाव लड़ेगी या फिर दिल्ली की तरह कांग्रेस अपनी दम पर चुनाव लड़ेगी। वहीं इंतजार इस बात का भी है कि कांग्रेस बिहार के नेतृत्व में परिवर्तन करेगी और अपने राष्ट्रीय प्रभारी मोहन प्रकाश की जगह किसी अन्य नेता को प्रभार देगी। गुरुवार 13 फरवरी को कुछ बड़े नामों की चर्चा हो रही है जो कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हो सकते हैं, उनमें से ऐसे भी नाम है जिन्हें बिहार का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया जा सकता है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रभारी मोहन प्रकाश के स्थान पर पार्टी को भूपेश बघेल और हरीश चौधरी की जगह कर्नाटक के बड़े नेता बीके हरिप्रसाद को बिहार कांग्रेस का राष्ट्रीय प्रभारी बनाना चाहिए। मोहन प्रकाश और भूपेश बघेल और हरीश चौधरी में ज्यादा फर्क नहीं है। यह भी टीम अहमद पटेल यानी संगठन महामंत्री की देन है। बीके हरिप्रसाद को संगठन और चुनावी रणनीति बनाने का खास अनुभव है। बीके हरिप्रसाद पूर्व में राजस्थान सहित राज्यों के प्रभारी रह चुके हैं। कांग्रेस और गांधी परिवार के वफादार भी हैं।
भूपेश बघेल और हरीश चौधरी मौजूदा दौर में टीम अशोक गहलोत का हिस्सा हैं। राहुल गांधी को इसे समझना होगा, क्योंकि कांग्रेस ने भूपेश बघेल और हरीश चौधरी को पहले भी बड़ी जिम्मेदारी दी थी। नतीजा क्या निकला यह राहुल गांधी भली भांति जानते हैं। बिहार को लेकर कांग्रेस और राहुल गांधी को अपने विवेक से काम लेना होगा। राष्ट्रीय संगठन महामंत्री की सलाह पर नहीं क्योंकि वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों में कांग्रेस की करारी हार राष्ट्रीय संगठन महामंत्री की सलाह के कारण ही हुई है। राष्ट्रीय संगठन महामंत्री का पद कांग्रेस को मजबूत करने के लिए नहीं बनाया गया था बल्कि यह पद कांग्रेस के चालाक नेताओं ने अपने राजनीतिक स्वार्थ को साधने के लिए बनाया था।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)