
-धीरेन्द्र राहुल-

चम्बल नदी के किनारे सिर्फ एक तीर्थ है और उसका नाम है- केशवरायपाटन। जब कोटा शहर का नामोंनिशान नहीं था, तब भी केशवरायपाटन था। यह अलग बात है कि वह दो बार ध्वस्त हुआ और फिर बसा। आज भी वहां खुदाई में पुरावशेष प्राप्त होते हैं। स्वर्गीय इतिहासकार डॉक्टर जगतनारायण के साथ एक बार पुरावशेष देखने का मुझे सुयोग मिला था।

मोदी सरकार के राज में देश की तमाम धार्मिक नगरियों की कायापलट हो रही है लेकिन केशवरायपाटन की ओर हमारे रहनुमाओं का ध्यान नहीं है। अगर ध्यान होता तो वहां बन रहा रेलओवरब्रिज सात साल बाद भी अधूरा नहीं होता। सन् 2018 में इस रेलओवरब्रिज के लिए 92 करोड़ का बजट घोषित किया था। इसके बाद कोराना लग गया तो पहला ठेकेदार काम छोड़कर भाग गया। एक साल तक काम पूरी तरह ठप रहा। फिर दूसरे ठेकेदार को काम सौंपा तो वह भी तेजी से काम करता दिखाई नहीं दे रहा। लोग कहते हैं कि काम की गति देखकर लगता है कि दो साल और लगेंगे। पूरे एक दशक का योग इसकी कुण्डली में है।

दरअसल केशवरायपाटन कस्बा तो नदी किनारे बसा है लेकिन उसका व्यस्त मार्केट चौराहे पर है जो करीब दो किलोमीटर दूर है। इसी चौराहे के पास से होकर नई दिल्ली-मुम्बई ब्राॅडगेज रेललाइन और कोटा-लालसोट मेगाहाइवे गुजरता है। सारी गहमागहमी इसी चौराहे पर है। इससे तालेड़ा- बून्दी की ओर जाने वाली सड़क पर रेलवे का फाटक था, उसकी जगह पर रेलवे ने अंडरपास बना दिया है जिससे होकर दुपहिया वाहन, कारें, जीपें तो गुजर जाती हैं लेकिन बसें और ट्रक नहीं निकल पाते। इसलिए तीन भुजा वाला रेलओवरब्रिज बनाया जा रहा है।

तालेड़ा रोड पर एकता नगर के रहने वाले सरदार हरपालसिंह का कहना था कि इस तरफ अबकमेंट बनाकर उसमें मिट्टी भरने की योजना है। हमारा कहना है कि एकता नगर में दोनों साइड में तीस दुकानें हैं और एक छोटा सा मार्केट भी यहां विकसित हो गया है, अगर बीच में दीवारें खड़ी हो गई तो मार्केट तबाह हो जाएगा। हम लोग स्पीकर साहब ओम बिरला जी से मिलें थे, उन्होंने पीडब्ल्यूडी को चिट्ठी भी लिख दी। अब देखें क्या होता है?
हम चाहते हैं कि लाखेरी और केशवरायपाटन साइड की तरह तालेड़ा साइड में भी रेलओवरब्रिज को खंबों पर ही नीचे उतारा जाए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)
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