
-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा। मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर राष्ट्रीय अभयारण्य में चीते लाकर बसाने की तैयारी अपने अंतिम चरण में है। इसके विपरीत राजस्थान में न राज्य सरकार के स्तर पर और न ही वन्यजीव विभाग के स्तर पर अभी तक यह तय हो पाया है कि प्रदेश में कहां चीते बसाए जाने चाहिए। मध्य प्रदेश के कूनो पालपुर राष्ट्रीय अभयारण्य में नामीबिया और केंद्र सरकार से हरी झंडी मिलने के बाद अब वहां चीते बसाया जाना तय हो चुका है। इसके तहत नामीबिया, दक्षिणी अफ्रीका से आठ अफ्रीकी चीते लाए जाएंगे और उन्हें कूनो पालपुर राष्ट्रीय अभयारण्य में आबाद किया जाएगा।

चीतों के कदम एक बार फिर देश की धरती को चूमेंगे, इस बहुप्रतीक्षित अवसर का साक्षी बनने के लिए 17 सितम्बर के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं आठ अफ्रीकी चीतों की अगवानी करने के लिए कूनो पालपुर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री की कूनो पालपुर राष्ट्रीय अभयारण्य की यात्रा और यहां चीते बचाने की सभी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है।
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को चीते बसाने के लिए उपयुक्त पाया था
करीब तीन माह पहले भारत के दौरे पर आई अफ्रीका महाद्वीप के नामीबिया के वन्यजीव विशेषज्ञों की टीम ने कूनो पालपुर अभयारण्य और राजस्थान में मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के दरा अभयारण्य क्षेत्र को चीते बसाने के लिए उपयुक्त पाया था। भारत में विलुप्त हो चुके चीते नामीबिया से लाकर ही यहां के अभयारण्य में बसाया जाना पूर्व में प्रस्तावित किया गया था। इसके लिए दोनों देशों के बीच बातचीत भी चल रही थी लेकिन जब नामीबिया की टीम ने इसे बसाने के लिए इन दोनों अभयारण्यों को उपयुक्त माना तो मध्यप्रदेश में न केवल राज्य सरकार के स्तर पर बल्कि चीते बसाने की पूरी प्रक्रिया से जुड़े वन्यजीव विभाग ने इस बारे में गंभीरता से प्रयास शुरू किए। अब नतीजे सबके सामने हैं।
सार्थक प्रयास नहीं किए
नामीबिया के वन्यजीव विशेषज्ञों के दौरे के बाद राज्य में सरकार व वन्यजीव विभाग के स्तर पर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) से पत्राचार के अलावा कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए। इसके कारण चीते लाकर बसाने की दौड़ में राजस्थान पिछड़ गया जबकि मध्यप्रदेश सारी बाधाएं पार कर चुका है। राजस्थान को भी राजनीतिक स्तर पर प्रयास करने की जरूरत थी लेकिन वह नहीं किए गए। कोटा जिले से सांगोद विधानसभा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर ने भी इस संबंध में आज बताया कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) पिछले अगस्त माह के अंतिम सप्ताह में राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को पत्र भेजकर मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में चीते छोड़ने पर सहमति देने से इंकार कर चुका है।
कनेक्टिव कॉरिडोर है मुकुंदरा
प्राधिकरण के उप महानिदेशक राजेंद्र जी. गरावाड़ ने 24 अगस्त को राज्य के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को एक अधिकारिक पत्र भेजकर सूचित किया है कि मौजूदा स्थिति में मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में चीतों को बसाने पर सहमति प्रदान नहीं की जा सकती। अपने पत्र में राजेंद्र जी.गरावाड़ ने मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक को लिखा है कि- “मुझे यह बताने को कहा गया है कि टाइगर रिजर्व के प्रबंधन के उद्देश्य अलग हैं और मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी बढ़ाने के लिए प्रबंधन के प्रयास जारी हैं। यह स्थल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बाघों की आबादी के विस्तार के लिए सवाई माधोपुर जिले के रणथम्भोर टाइगर रिजर्व को कनेक्टिव कॉरिडोर प्रदान करता है।”
कारगर साबित हो सकते हैं सार्थक राजनीतिक प्रयास
श्री भरत सिंह ने कहा कि अभी भी मुकुंदरा में चीतों को बसाने के लिए सार्थक राजनीतिक प्रयास कारगर साबित हो सकते हैं। इसके लिए राजस्थान के नेताओं को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री पर दबाव बनाना चाहिए ताकि मुकुंदरा में चीते बचाने का मार्ग प्रशस्त हो सके। क्योंकि यदि अभी अवसर को खो दिया तो यह समय वापस लौट कर आने वाला नहीं है। श्री भरत सिंह ने आरोप लगाया कि पर्यावरण विशेषज्ञ माने जाने वाले वाल्मीकी थापर और भारतीय जनता पार्टी की एक वरिष्ठ नेत्री ने चीतों को आबाद करने के संबंध में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से बातचीत करके चीते बचाने संबंधी रिपोर्ट को प्रभावित किया है।