
बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न और वक्फ पर संशोधित विधेयक का मामला भी चुनाव में प्रमुखता से उठने की संभावना है। पीएम मोदी ने 15 अगस्त पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा के मुद्दे का प्रमुखता से जिक्र किया था। इसके साथ ही उन्होंने सेक्यूलर नागरिक संहिता की बात भी कही। यही बात पहले समान नागरिक संहिता के रूप में कही जाती रही है। इसलिए इस चुनाव में समान नागरिक संहिता व वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर विपक्षी दलों पर प्रहार किए जाने की संभावना है। परिवारवाद, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे तो भाजपा के पास पहले से ही मौजूद है। यानी दोनों ओर से मुद्दे तय हैं।
-जम्मू कश्मीरः चुनाव चुनौती पर इससे पार पाना बड़ी जीत होगी
-द ओपिनियन डेस्क-
दो राज्यों हरियाणा और केंद्र शासित जम्मू कश्मीर में चुनाव की घोषणा हो गई। हालांकि उम्मीद थी कि महाराष्ट्र और झारखंड के लिए भी इनके साथ ही चुनावों की घोषणा हो जाएगी कि लेकिन जैसा कि चुनाव आयोग ने संकेत दिया कि कश्मीर में सुरक्षा बलों की जरूरत को देखते हुए संभवतः यह फैसला किया गया है। हरियाणा में ऐसी कोई समस्या नहीं है और वहां सहज रूप से चुनाव होते रहे हैं। खैर अभी समय है और चुनाव आयोग अपनी तैयारियों के अनुसार चुनाव करा सकता है। हालांकि कांग्रेस ने तो यह कहते हुए पीएम मोदी पर तंज कसा है कि बात तो एक देश एक चुनाव की करते हैं, पर एक साथ चार राज्यों में चुनाव नहीं करा सकते। खैर ऐसी सियासी टिप्पणी होती रहती हैं।सुरक्षा बलों पर अभी काफी दबाव है। बांग्लादेश से लगी सीमा के साथ साथ जम्मू क्षेत्र में आतंकी गतिविधियों के मद्देनजर काफी संख्या में अतिरिक्त बलों को तैनात किया गया है। जम्मू कश्मीर में तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1अक्टूबर को मतदान होगा। जबकि हरियाणा में एक ही चरण में 1 अक्टूबर को मतदान होना है। 4 अक्टूबर को चुनाव नतीजे आ जाएंगे।
जम्मू कश्मीर के लिए चुनावों की घोषणा बहुत अहम है। वहां करीब एक दशक से चुनाव का इंतजार हो रहा था। चुनावों की घोषणा का सभी दलों ने स्वागत किया है। यह बहुत ही सकारात्मक बात है। चुनाव में हारजीत होती रहती है लेकिन उसमें भागीदारी सुनिश्चित होने से चुनाव की पवित्रता बढ़ जाती है। नेशनल काॅन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने घोषणा की है कि वह खुद यह चुनाव लड़ेंगे। उनके बेटे उमर अब्दुल्ला पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होने के बाद चुनाव लड़ेंगे। अब्दुल्ला की यह घोषणा स्वागत योग्य है। क्योंकि महत्व व्यक्ति का नहीं राजनीतिक दलों की चुनाव में भागीदारी का है। यदि वे चुनाव से किनारा कर लेते हैं तो फिर कई सवाल खड़े हो जाते हैं।
चारों चुनावी राज्यों में सियासी मुद्दे पहले से तैयार हैं। कांग्रेस के हाथ में हिंडनबर्ग की नई रिपोर्ट के बाद अडाणी समूह पर आरोप लगाने का फिर मुद्दा हाथ में आ गया है। कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियां अडाणी समूह और सेबी प्रमुख माधवी बुच पुरी और उनके पति के खिलाफ लगे आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस जातिगत जनगणना की मांग जोरशोर के कर रही है। इसके साथ ही वह अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और क्रीमीलेयर संबंधी सुझाव पर भी सरकार को घेर रही है। इसके पास ये तीनों मुद्दों हर चुनावी राज्य में रहेंगे। जम्मू कश्मीर में राज्य विधानसभा के चुनाव राज्य का दर्जा बहाली के बिना हो रहे हैं। यह राज्य का सबसे बड़ा मुद्दा है। इसके अलावा आतंकवाद का भी मुद्दा है। इसके अलावा अनुच्छेद 370 पर वह क्या रुख अपनाती है, यह भी देखना है। भाजपा का तो इस पर रुख एक दम साफ है। इन चुनावों में जहां जम्मू क्षेत्र में भाजपा व कांग्रेस में मुकाबला होना है, वहीं घाटी में नेशनल काॅन्फे्रस और पीडीपी की भी चुनौती इन दलों के सामने होगी। इसके अलावा गुलाम नबी आजादी की पार्टी भी है और अन्य कई दल भी हैं। चुनावों में प्रत्याशियों की सुरक्षा एक बहुत अहम मसला होगी। प्रत्याशियों की सुरक्षा के हरसंभव प्रयास होने चाहिए। संभवतः चुनाव आयोग ने इसी बात को ध्यान में रखकर कश्मीर के चुनाव सभी के साथ न कराकर पहले कराना उचित समझा। इसके अलावा बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न और वक्फ पर संशोधित विधेयक का मामला भी चुनाव में प्रमुखता से उठने की संभावना है। पीएम मोदी ने 15 अगस्त पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा के मुद्दे का प्रमुखता से जिक्र किया था। इसके साथ ही उन्होंने सेक्यूलर नागरिक संहिता की बात भी कही। यही बात पहले समान नागरिक संहिता के रूप में कही जाती रही है। इसलिए इस चुनाव में समान नागरिक संहिता व वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर विपक्षी दलों पर प्रहार किए जाने की संभावना है। परिवारवाद, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे तो भाजपा के पास पहले से ही मौजूद है। यानी दोनों ओर से मुद्दे तय हैं।
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होंगे। राज्य में करीब एक दशक बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। परिसीमन के बाद अब वहां विधानसभा सीटों की संख्या 90 हो गई है। इस तरह जम्मू क्षेत्र में 43 और कश्मीर क्षेत्र में 47 सीटों पर चुनाव होने हैं। राज्य के पूनर्गठन से पहले जम्मू कश्मीर में चुनाव 2014 में हुए थे। तब 87 सीटों के लिए वोट पड़े थे। तब उसमें लद्दाख क्षेत्र की शामिल था।
हरियाणा में जातीय समीकरण होंगे अहम
दूसरी ओर हरियाणा में लोकसभा चुनाव में झटका खा चुकी भाजपा सत्ता में वापसी के लिए हर संभव प्रयास कर रही है,वहीं कांग्रेस भी इस मौके को भुनाने में जुटी हुई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा मांगे जवाब यात्रा निकाल रहे हैं। वहीं चुनाव की घोषणा से पहले हरियाणा की भाजपा सरकार ने किसानों के लिए फसलों की खरीद समेत कई कदमों की घोषणा की है। लेकिन जून में हुए लोकसभा चुनावों में, हरियाणा में भाजपा को 10 सीटों में 5 सीटें गंवानी पड़ी थी। उसका वोट शेयर भी घटा है। हालांकि वह 44 विधानसभा क्षे़त्रों में आगे रही थी, लेकिन इससे वह जीत के प्रति सुनिश्चित नहीं हो सकती। बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करेगा कि दोनों पार्टियां भाजपा व कांग्रेस सामाजिक समीकरणों को कैसे साधती हैं। 1977 के बाद से, हरियाणा में मतदाताओं ने कभी भी किसी भी पार्टी को लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत नहीं दिया है।
हरियाणा में किसानों की आबादी काफी अधिक है और किसानों में नाराजगी भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। हालांकि मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पहले की 14 फसलों के मुकाबले सभी 24 फसलों पर एमएसपी पर खरीदने की घोषणा की है। अब देखना यह है कि किसान इससे पिघलते हैं या नहीं। हरियाणा से बड़ी संख्या में लोग सेना में जाते हैं। इसलिए अग्निवीर का मुद्दा भी यहां भाजपा के सामने चुनौती बन सकता है। भाजपा व कांग्रेस के अलावा यहां पर जननायक जनता पार्टी और इनोलो भी चुनाव मैदान में होंगे। दोनों पार्टियों की जड़ें एक ही परिवार में हैं और यह राज्य के सबसे प्रभावशाली वर्ग से इनको सबसे ज्यादा उम्मीद रहती है।अब देखना यह है कि यह वर्ग किस ओर झुकता है। जीत हार पर इसका भी गहरा असर होगा।