
-राजेन्द्र गुप्ता-
महादेव को समर्पित किया जाएगा पवित्र धागा
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सावन शुक्ल चतुर्दशी को शिव पवित्रारोपण व्रत रखा जाता है। यह सनातन धर्म का एक प्रमुख संस्कार है। जिसमें देवता को पवित्र धागा बांधा या समर्पित किया जाता है। यहां पवित्र खासतौर पर ‘यज्ञोपवीत’ के लिए प्रयुक्त किया गया है। वैसे यह पवित्र धागा किसी सूत अथवा जयमाला के स्वरूप में देव— प्रतिमाओं के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है।
अलग—अलग तिथियों में होता है देवताओं का पवित्रारोपण
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अनेक धर्मग्रंथों में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। अलग—अलग देवताओं का पवित्रारोपण अलग—अलग तिथियों में होता है। कुबेर के लिए प्रथमा, त्रिदेव के लिए द्वितीया, दुर्गाजी के लिए तृतीया, गणेशजी के लिए चतुर्थी, चन्द्र देव के लिए पंचमी, कार्तिकेय के लिए षष्ठी, सूर्य के लिए सप्तमी तिथि निर्धारित है। विष्णुजी, कामदेव, शिवजी एवं ब्रह्माजी के लिए क्रमश: द्वादशी तिथि, त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा तिथि तय हैं।
पवित्रारोपण स्वर्ण, रजत, पीतल अथवा रेशम के धागों से भी किया जा सकता है। कमल, कुश या रुई का पवित्र बनाकर समर्पित किया जा सकता है। पुराने समय में पवित्र के धागों को बुनने का काम कुंवारी कन्याओं द्वारा ही निर्धारित किया गया था। पवित्र धागे में कम से कम 8 गठानें होनी चाहिए, वैसे 100 गठान उत्तम मानी गई हैं।
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शिव का पवित्रारोपण प्रतिदिन पुष्प, पत्तियों या कुशाओं से किया जा सकता है। पर वार्षिक पवित्रारोपण की स्थिर तिथि तय है। पवित्रारोपण बेहद खास प्रक्रिया है। विशेष बात यह है कि इसके माध्यम से सभी प्रकार की पूजा में जाने—अनजाने में किये गये सभी दोषों का परिमार्जन हो जाता है। इसे प्रतिवर्ष करने पर शिव पूजा के वांछित फल की प्राप्ति होती है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9116089175