
-एक बड़ा वोट बैंक छूने की कवायद भी है यह योजना
-द ओपिनियन-
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज रविवार को प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना की शुरुआत की। इस योजना के लिए केंद्र सरकार ने 13,000 करोड़ रुपए के वित्तीय प्रावधान किया है। योजना के तहत उदार शर्तों पर तीन लाख रुपए तक का कर्ज दिया जाएगा। इस योजना का दायरा सरकार ने व्यापक रखा है और हाथ से काम करने वाले कारीगरों को शामिल किया है। हालांकि इसके दायरे में आने वाले कारीगरों की पहचान के लिए फिलहाल जो बात सामने आई वह यह है कि पारम्परिक रूप से विभिन्न तरह को कार्यों से जुड़ी जातियां इसके दायरे में होंगी। इस योजना से देश में करीब 30 लाख परिवारों के लाभान्वित होने की संभावना है।
यह योजना ऐसे समय शुरू हो रही है जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं। इस योजना के दायरे में आने वाली अधिकतर जातियां अन्य पिछड़ा वर्ग में आती हैं और एक दो जातियां अनुसूचित जाति से संबंधित हैं। इसलिए इस योजना के राजनीतिक मायने भी हैं। विभिन्न राज्यों में पिछड़ा वर्ग में शामिल कुछ जातियां बहुत प्रभावशाली हैं वे आर्थिक रूप से ताकतवर हैं और राजनीति में भी उनका बहुत प्रभाव है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में उनकी बड़ी दखल है, लेकिन विश्वकर्मा योजना के दायरे में आने वाली अधिकतर जातियां पिछड़ा वर्ग में भी निचले पायदान पर हैं। इसलिए यदि यह योजना जमीन पर उतरती है तो बड़े स्तर पर लोगों तक पहुंच बनेगी और एक बड़ा वोट बैंक भी इससे तैयार हो सकता है। लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि योजना का लाभ वास्तविक लोगों तक पहुंचे और यह कागजों में दम नहीं तोड़े। इस योजना के दायरे में आने वाली अधिकतर जातियां आर्थिक रूप से तो कमजोर हैं ही ,वे शैक्षिक रूप से भी उतनी अग्रणी नहीं हैं जितनी पिछड़ों में शामिल कुछ जातियां हैं। इसलिए ये योजना कुछ हद तक इन परिवारों का सहारा बन सकती हैं। लेकिन ये परम्परागत व्यवसाय से जुड़े वर्ग और जातियां शिक्षा के प्रसार के साथ अपने परम्परागत कामों से दूर होती जा रही हैं और वे रोजगार का बेहतर विकल्प अपने लिए चाहती हैं। जरूरत इन पारम्परिक हुनर में उद्यमिता की तलाश करने की है। यदि उद्यमशीलता का विकास नहीं होता है तो यह योजना कोई कारगर लाभ नहीं पहुंचा पाएगी। इसलिए इस बात पर भी गौर करने की जरूरत है कि योजना केवल चुनावी हथियार बनकर न रह जाए इससे लोगों को लाभ भी पहुंचे।
कांग्रेस जातिगत जनगणना की मांग की हिमायत कर रही है। पार्टी साफ तौर से जातिगत जनगणना के पक्ष में आ गई है जबकि भाजपा ने अभी राजनीतिक स्तर पर खुलकर जातिगत जनगणना की हिमायत नहीं की है। अति पिछड़े तबकों को आशंका है कि जातिगत जनगणना में लाभ बड़ी व अग्रणी जातियां ही उठाएंगी। इसलिए इन हुनरमंद जातियों को पिछडनेपन के दायरे से बाहर निकालकर शैक्षणिक रूप से भी सशक्त करने की जरूरत है। ये राजनीतिक रूप से लामबंद नहीं है और अपने कामकाज के हिसाब से ग्रामीण स्तर पर सबल जातियों पर निर्भर हैं। इसलिए वे राजनीतिक रूप से लामबंद नहीं है। उत्तर प्रदेश में कुछ पिछड़ी जातियां राजनीतिक रूप से अपने आप को एक इकाई में संगठित कर रही हैं। वहां की राजनीतिक धारा में पिछड़े व अति पिछड़े दो वर्ग उभरकर सामने आने लगे हैं। इसलिए यह योजना आगे चलकर वोटों से झोली भी भर सकती है। संभवतः भाजपा को उम्मीद है कि वह विश्वकर्मा योजना के माध्यम से कारीगरों, शिल्पकारों अति पिछड़े समुदाय को लुभाकर ओबीसी पर पकड़ और मजबूत करेगी। कई उत्तरी राज्यों में ओबीसी मुख्यमंत्री हैं,लेकिन अति पिछड़े वर्ग का शायद ही कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो। अब देखना यह है कि क्या भाजपा अपने लिए एक नया वोटबैंक बनाने में कामयाब हो पाती है या नहीं ।