अबकी बार मुकुंदरा में चीते आबाद करने पर जोर

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दक्षिण अफ्रीकी देशों के चीता विशेषज्ञों के दल ने चीते बसाने की दृष्टि से राजस्थान के कोटा-झालावाड़ जिले में विस्तृत मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को भी उपर्युक्त पाया था। इसमें भी खासतौर से दरा क्षेत्र के 82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को चीते को बसाने की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त माना था।

-कृष्ण बलदेव हाडा –

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कृष्ण बलदेव हाडा

कोटा। दक्षिणी अफ्रीका से एक बार फिर चीते आयात करके भारत में बसाया जाने की संभावना के बीच राजस्थान में कोटा जिले के कोटा-झालावाड़ जिले में विस्तृत मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में चीते बसाने की मांग फिर जोर पकड़ने लगी है। ज्ञातव्य है कि भारत ने वर्ष 1952 में खुद को ‘चीता विलुप्त’ देश घोषित कर लिया। वर्ष 1947 में देश आजाद हुआ और दुर्भाग्य से उसके पांच वर्ष बाद ही देश एक नायाब वन्यजीव चीता से भी मुक्त हो गया।
हालांकि ताजा मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण अफ्रीका से तीसरी खेप के रूप में संभवत जो चीते लाए जाएंगे, उन्हें मध्यप्रदेश में चंबल नदी पर बने गांधी सागर बांध के वन्यजीव अभयारण्य में छोड़े जाने का विचार है। पूर्व में भी दो बार दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाकर भारत में चीते बसाए गए थे लेकिन वन्यजीव एवं पर्यावरण प्रेमियों के आरोप के अनुसार दोनों ही बार मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के चीते बसाने की दृष्टि से नैसर्गिक दावेदार होने के बावजूद केंद्र सरकार ने राजनीतिक आधार पर मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित कूनो नेशनल पार्क में यह चीते आबाद किए गए। कुल 20 चीते वहां आबाद किए गए थे जिनमें से नौ चीतों की अब तक मौत हो चुकी है।
संभवत: दक्षिण अफ्रीका से तीसरी खेप के रूप में चीते आयात किए जाने की मीडिया रिपोर्ट के आधार पर सोशल मीडिया में भारतीय जनता पार्टी के सांसद वरुण गांधी ने सवाल खड़ा करते हुए कहा कि-” अफ़्रीका से चीतों को आयात करना और उनमें से नौ को विदेशी भूमि में मरने की अनुमति देना न केवल क्रूरता है, बल्कि लापरवाही का भयावह प्रदर्शन है। हमें इन शानदार प्राणियों की पीड़ा में योगदान देने के बजाय अपनी लुप्तप्राय प्रजातियों और आवासों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विदेशी जानवरों की यह लापरवाह खोज तुरंत समाप्त होनी चाहिए, और हमें इसके बजाय अपने मूल वन्यजीवों के कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए।”
पिछले साल 17 सितम्बर को आज ही के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 72वें जन्मदिन के मौके पर अपनी फ़ितरत के अनुरूप देशी-विदेशी मीडिया का जमावड़ा लगाकर कूनो अभयारण्य में नामीबिया से खरीद कर लाए गए चीते छोड़कर जमकर वाहवाही लूटी। दूसरी खेप में भी अफ्रीकी चीते लाकर कूनो में ही आबाद किए गए। पहली खेप में नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा था। 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीतों को कूनो में छोड़ा गया था। यानी कुल 20 चीते लाए गए थे। इनमें से अब तक 9 चीतों की मौत हो चुकी है।
चीतों की मौतों से चिंतित उच्चतम न्यायालय ने यह सुझाव दिया था कि जब कूनो में चीते मर रहे हैं तो राजस्थान में चीतों को क्यों नहीं आबाद किया जाता? उल्लेखनीय है कि दक्षिण अफ्रीकी देशों के चीता विशेषज्ञों के दल ने चीते बसाने की दृष्टि से राजस्थान के कोटा-झालावाड़ जिले में विस्तृत मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को भी उपर्युक्त पाया था। इसमें भी खासतौर से दरा क्षेत्र के 82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल को चीते को बसाने की दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त माना था।
कोटा जिले के सांगोद से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक भरत सिंह कुंदनपुर केन्द्र सरकार पर चीते बसाने के मामले में भी राजनीति करने का आरोप लगाते रहे हैं। श्री भरत सिंह ने भाजपा के जनप्रतिनिधियों को अपने इस निम्न स्तर की संकीर्ण सोच से उबरने की सलाह देते हुए यहां तक कह चुके है कि – ” यह सही है कि चीते तो बीजेपी को वोट देने से रहे, लेकिन यदि बीजेपी के यह नेता वन एवं वन्यजीवों के बारे में अपनी समझ को विकसित कर दरा अभयारण्य क्षेत्र में चीते बसा दे तो निश्चित रूप से इससे क्षेत्र में पर्यटन का विकास होगा, बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार मिलेगा, होटल-ट्यूरिज्म-ट्रांसपोर्ट जैसे क्षेत्रों में निवेश के अवसर मिलने से सैकड़ों परिवार लाभान्वित होंगे तो बीजेपी नेताओं के पास अपनी उपलब्धियां गिना कर इन जीते-जागते लोगों से वोट हासिल करने का हक तो होगा ही। इस नाते ही यह नेता राजनीति करे ले तो मुझे तो इसमें भी कोई आपत्ति नहीं है।”
श्री भरत सिंह ने तो यह भी कहा था कि-” अगर और ज्यादा राजनीतिक लाभ उठाना है तो जिस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरीकी काऊ बॉय की तरह हैट लगाकर सूट-बूट पहन कर नेशनल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के तामझाम के साथ कूनो में चीते छोड़कर अपने जन्मदिन पर वाहवाही बटोरी थी,वैसी ही कोशिश दरा में कर ले। प्रधानमंत्री यदि चीते छोड़ने दरा आएंगे तो बीजेपी को कुछ तो राजनीतिक लाभ मिलेगा ही। बीजेपी के स्थानीय नेता कम से कम अपने राष्ट्रीय नेता से इतनी तो उम्मीद रख ही सकते हैं।”

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