
– बृजेश विजयवर्गीय

एक पेड़ मां के नाम, हरियालो राजस्थान,पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ जैसे बड़े-बड़े अभियान राजस्थान में चल रहे हैं। इन अभियान के लिए राजस्थान सरकार का प्रयास सराहनीय है। लेकिन यह और ज्यादा सार्थक हो सकता है जब पेड़ बचाने का अभियान भी समानांतर चलाया जाए। यदि सरकार ऐसा करती है तो सरकारी योजनाओं के प्रति जनता का विश्वास भी बढ़ेगा।
दुर्भाग्य से राजस्थान में कई बड़ी-बड़ी विकास योजना के कारण जंगल के जंगल काटे जा रहे हैं। नदियों को लूट का जरिया मान लिया। पहाड़ों को खनन के नाम पर खोखला कर दिया। जैसलमेर में लाखों खेजड़ी के पेड़ काट दिए गए। बारां जिले के शाहबाद का जंगल भी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के कारण संकटग्रस्त है। जयपुर में सांगानेर हवाई अड्डे के निकट डोल का बाढ़ नामक स्थान पर पीएम योजना में शॉपिंग मॉल बन रहा है। नदियों के किनारे शराब फैक्ट्री कौन सा विकास का मापदंड है?
तो क्या हमारी सरकार हरे पेड़ों को बचाने के लिए इन पर्यावरण को नुक्सान पहुंचा कर बनने वाली योजनाओं में परिवर्तन नहीं कर सकती? जबकि विशेषज्ञ सरकारों को राय दे चुके हैं वैकल्पिक जगह भी बता चुके हैं। इसमें कौन सा ईगो आड़े आता है। मुझे एक उदाहरण याद आता है 1998 में जब कोटा में ऑडिटोरियम बनने के लिए जेल रोड पर बड़ी संख्या में पेड़ काटे जाने वाले थे तो उसे समय के सार्वजनिक निर्माण मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी ने जन भावनाओं का आदर करते हुए उस योजना को स्थगित कर दिया था और उस समय सैकड़ो पेड़ काटने से बच गए थे। ऐसी संवेदनशीलता की अपेक्षा क्या सरकार में बैठे जिम्मेदार लोगों से नहीं करनी चाहिए?
पर्यावरण का संरक्षण करना हमारा संवैधानिक दायित्व तो है ही साथ ही सनातन संस्कृति का मूल मंत्र भी है। सभी वेद और पुराणों में पेड़ों,पहाड़ों नदियों की सुरक्षा का संदेश निहित है। सभी धर्मों में प्रकृति के संरक्षण की बात कही गई है। भारतीय सनातन संस्कृति में पेड़ पौधे जल जंगल जमीन सबको पूजनीय माना गया है। लेकिन जब जिम्मेदारी के पदों पर बैठे लोग इस तरह का निर्णय करते हैं तो फिर समाज का सरकारों पर से विश्वास उठ जाता है। पर्यावरण बचाने की सभी योजनाएं हास्य का पात्र बन जाती हैं। क्या कारण है कि हैदराबाद, शाहबाद आदि जंगल को बचाने के लिए न्यायालयों को आगे आना पड़ा। हाल ही में मशहूर पर्यावरणविद् डा राजेंद्र सिंह कोटा पधारे थे उन्होंने ओम कोठारी प्रबंधन संस्थान एवं केरियर प्वाइंट इंस्टीट्यूट में आयोजित कार्यक्रम में कहा था कि भारत तभी तक विश्व गुरु था जब सनातन संस्कृति का पालन होता रहा। जब देश सनातन संस्कृति से पीछे हटकर लालच और अति रंजित व्यापारिक दौड़ में पहुंच गया तो भारत से विश्व गुरु का खिताब छिन गया और देश कमजोर होता चला गया। आज भारत का सम्मान विश्व में बढ़ सकता है तो सनातन नैतिक मूल्यों के कारण ही बढ़ सकता है। दुर्भाग्य से भारत आज विश्व गुरु नहीं है। आज बड़े-बड़े समाचार पत्र चीख कर चिल्ला रहे हैं कि पेड़ों को मत काटो ,जंगलों को मत काटो, नदियों को बचाओ, रेत की लूट बंद करो, पहाड़ों खनन पर नियंत्रण करो! हमारा प्रशासनिक तंत्र इन सब पर मूक दर्शक बने हुए बैठा है।
– बृजेश विजयवर्गीय, स्वतंत्र पत्रकार, पर्यावरणविद्