
-पुरुषोत्तम पंचोली-

कोई आधी सदी गुजर गई. आपातकाल का समय रहा होगा. मैं अभी अपने गांव से नया नया ही कोटा आया था और कॉलेज में मुलाकत हो गई तीन ऐसे दोस्तों से जो प्रचलित दुनियादारी से दूर अपने लिए उतना नहीं जितना उन लोगों के लिए सोचते थे – जिनकी जिंदगी अभावों, आपदाओं का अक्षय पात्र थी. अशिक्षा, बेरोजगारी, के घावों से जख्मी, असहाय और कुपोषण के शिकार तो वे थे ही किस्म किस्म की कुप्रथाओं से जकड़े,सचमुच सर्वहारा थे, सहरिया थे. मेरी सोच और उनके खयालों में न जाने क्यूँ ऐसा साम्य समीकरण सधा कि हम ‘कभी कभार ‘ की जगह प्राय : प्रतिदिन ही मिलने लगे. कुछ दिनों बाद ही कोटा के भीममंडी (स्टेशन क्षेत्र ) इलाके की आबादी क्षेत्र से थोड़ी बाहरी बस्ती जिसे ” नेहरू हरिजन बस्ती ” कहा जाता था, में तीनों दोस्त शाम के समय जाते, बस्ती के बच्चों को बुलाते – बिठाते और उनसे थोड़ी बातचीत करते. धीरे धीरे उन बच्चों को तनिक साफ – सफाई , तनिक पढ़ाई – लिखाई और तनिक घर – गृहस्थी की बातें करते. कोई बच्चा बीमार या बस्ती का कोई बशिंदा बीमार होता तो उसकी दवा का जुगाड़ हो जाता. तीनों दोस्तों की दास्तां, मैं सुनता तो कलेजा पसीज पड़ता.फिर एकदिन मैंने भी उन तीनों के साथ रोज ही उस बस्ती में जाना शुरू किया.
यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. बाद के दिनों में तीनों दोस्तों ने राज्य के अनेक स्वयं सेवी संगठनों की काम काज को देखा – परखा और उन जगहों की शिनाख्त की जहाँ – ‘सहायता और सेवा ‘ की खासी जरूरत थी. फिर उनका ठिकाना बना कोटा जिले का सर्वाधिक पिछड़ा इलाका – शाहबाद – किशनगज का सहरिया बहुल आदिवासी क्षेत्र. इसी इलाके के “मामोनी ” गांव में उनके “संकल्प ” की ‘संकल्पना से सिद्धि ‘का मार्ग प्रशस्थ हुआ.
वे तीन दोस्त थे – मोती, नीलू और महेश बिन्दल.
मोती जिसने अपने पैतृक होटल व्यवसाय और आलिशान ऐशोएआराम के विलास को छोड़ा, नीलू – जिसने इंस्ट्रूमेंटेशन जैसी लब्ध प्रतिष्ठ भारत सरकार की फैक्ट्री के प्रबंधक की नौकरी छोड़ी और महेश बिन्दल , जिन्होंने अपनी रिजर्व बैंक की चमचमाती नौकरी का मोह बिसार कर उन लोगों को समर्थ बनाने का संकल्प लिया जिन के पास मनुष्यवत जीने की बुनियादी सहूलियत भी उपलब्ध नहीं थी.
आज संकल्प ने सहरिया समेत पूरे शाहबाद – किशनगंज इलाके में यदि रौशनी, उम्मीद और हौसला जगा कर राहत और सामर्थ्य दिया है तो निश्चय ही इन तीन दोस्तों को श्रेय का हकदार मानना अनुचित नहीं है. दुर्भाग्य से इन तीनों में से हम सभी के प्रिय साथी मोती अब इस दुनिया में नहीं रहे और संयोग से नीलू जैसे कर्मठ साथी आज आध्यात्म की राह चलते अनगिन साधकों को सुपथ सुझा रहे हैं वहीं महेश बिन्दल ने तब से अब तक अविचल, अडिग ” संकल्प ” को ही जीवन संकल्प का पर्याय बना दिया है.
आज हमारे परम प्रिय साथी महेश बिन्दल का जन्मदिन है. उन्हें जन्मोंपलक्ष्य पर अमित, अपरिमित सु कामनाएं!