
जब हमने मेनाल के मंदिर परिसर में प्रवेश किया तब अंदाज नहीं था कि यहां इतनी पुरा संपदा मिलेगी। परिसर के बाहर चाय पान, खिलौने जैसे स्टाल देखकर ग्रामीण मेले जैसी भीड़ से ऐसा अहसास नहीं होता कि आप कुछ ही समय में ऐसे स्थल पर पहुंचने वाले हैं जहां जाकर अभिभूत हो जाएंगे।
-शैलेश पाण्डेय-

यदि आप बारिश के मौसम में प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य के साथ अद्वितीय शिल्प का संगम देखना चाहते हैं तो मेनाल (मूल नाम महानाला) से बढ़कर कुछ नहीं है। कोटा से करीब 85 किलोमीटर दूर भीलवाड़ा जिले में स्थित यह स्थल अपने प्राकृतिक सौंदर्य, झरने, वनस्पति और प्राचीन शैव मंदिरों के शिल्प के कारण आकर्षण का केन्द्र है। मेनाल नाम महानाला का अपभ्रंश हो गया। लेकिन यह अच्छा ही हुआ क्योंकि वर्तमान में तो महानाला नाम सुनकर यही अहसास होता कि शायद कोई गंदगी और बदबू से भरा विशालकाय नाला होगा। जबकि महानाला से आशय विशाल घाटियों से है।

बचपन से ही मेनाल के झरने के सौंदर्य और कई बार इन झरनों में हुई दुर्घटनाओं के बारे में सुना था। कोटा से लोग कत्त बाफले की गोठ करने वहां जाते थे। उन्हीं से मेनाल के बारे में सुनते थे लेकिन कभी जाने का मौका नहीं मिला। हालांकि इच्छा तो बहुत थी। ऐसे में रविवार को सुबह वरिष्ठ पत्रकार धीरेन्द्र राहुल जी का मेनाल चलने का जैसे ही प्रस्ताव मिला मैं तुरंत तैयार हो गया। क्योंकि राहुल जी की पत्नी रमा जी का साथ था इसलिए दुर्गम स्थलों पर जाने से डरने वाली मेरी पत्नी नीलम जी निश्चित थीं कि राहुल जी खतरनाक स्थलों पर जाने का दुस्साहस नहीं करेंगे।

दोपहर दो बजे कोटा से कार से रवाना हुए तब बारिश नहीं होने के कारण मौसम में कुछ उमस थी। राष्ट्रीय राजमार्ग 27 से करीब डेढ़ घंटे से कार के सफर के दौरान राहुल जी मेनाल के बारे बताते गए। जब उन्होंने बताया कि वह एक बार रमा जी के साथ स्कूटी पर मेनाल जा चुके हैं तो हम उनके साहस जिसे दुस्साहस ही कहा जाना चाहिए चकित रह गए। पिछले बूंदी और भानपुरा के उनके साथ के अनुभव को देखते हुए तय कर लिया था कि भले ही वह को-ड्राइवर सीट पर रहें लेकिन उनका कहां कार रोकनी है, कहां मोड़ना है या घुमाना है अथवा किस रास्ते से चलना है इस बारे में कोई इंस्ट्रक्शन नहीं मानना है। नीलम जी ने गूगल मैप खोल रखा था इसलिए चिंता भी नहीं थी कि राहुल जी हाईवे से कहीं कच्चे रास्ते या गली कूचों में उतार सकेंगे। बिजोलिया पार करने के कुछ समय बाद एक दो जगह उन्होंने रास्ता बताने की कोशिश भी की लेकिन हम गूगल गुरु पर ही टिके रहे और करीब साढ़े तीन बजे सही सलामत मेनाल पहुंच गए। रविवार का दिन होने से मेनाल की ओर उतरने वाली सड़क पर वाहनों और पैदल चलने वालों की बहुत भीड़ थी। यह पहला स्थल दिखा जहां ग्रामीण पृष्ठभूमि के पर्यटक बडी संख्या में मिले। इनमें ज्यादातर आसपास के इलाकों के ही थे। जब से दोपहिया और कार जीप का प्रचलन बढ़ा है आम जन के लिए दूर दराज के स्थलों पर आने जाने की समस्या नहीं रही। इसीलिए अब सभी लोग पर्यटन और घूमने का लुत्फ उठा सकते हैं। मेनाल में हमने ऐसे दर्जनों लोगों को देखा।

जब हमने मेनाल के मंदिर परिसर में प्रवेश किया तब अंदाज नहीं था कि यहां इतनी पुरा संपदा मिलेगी। परिसर के बाहर चाय पान, खिलौने जैसे स्टाल देखकर ग्रामीण मेले जैसी भीड़ से ऐसा अहसास नहीं होता कि आप कुछ ही समय में ऐसे स्थल पर पहुंचने वाले हैं जहां जाकर अभिभूत हो जाएंगे।
हालांकि उमस से परेशानी थी लेकिन चारों तरफ हरियाली आंखों को सुकून दे रही थी। जैसे ही मुख्य परिसर में पहुंचे मंदिरों के शिल्प और समय की मार से ध्वस्त मंदिरों के अवशेष अपने भव्य अतीत की कहानी कहते दिखे। सावन का महीना और प्राचीन शिव जी के मंदिर में दर्शन हमारे लिए सोने पर सुहागा था। मंदिर में दर्शन के बाद हमने पूरे मंदिर परिसर का भ्रमण किया। मुख्य मंदिर में उत्कीर्ण प्रतिमाएं इनको तराशने वालों के शिल्प कौशल की कहानी बयां कर रही थीं। सैकड़ों साल पुराने मंदिर की कई प्रतिमाएं टूटी फूटी अवस्था में थी। क्योंकि मैं इतिहास और पुरातत्व का विद्यार्थी नहीं रहा इसलिए यह मंदिर कब बने या किसने बनाए इस विषय पर ज्यादा रूचि नहीं रखता लेकिन इनका शिल्प सौंदर्य मन मोहने के लिए पर्याप्त है। मंदिर को लाल पत्थर पर प्रतिमाएं तराशकर बनाया गया है क्योंकि जो मंदिर भग्नावस्था में हैं उनके अवशेष वहीं बिखरे हैं। इनके आकार अलग अलग तरह के हैं। फोटोग्राफी के शौकीन लोगों के लिए तो यह जगह मनचाही मुराद पूरी करने वाली है।

इसी परिसर से हम एक छोटे द्वार से होते हुए मेनाल के झरने की ओर बढ़े । वहां भीड़ की वजह से धक्का मुक्की हो रही थी क्योंकि लोग लाइन में लगने की बजाय झुण्ड में द्वार से निकलने कोशिश कर रहे थे। भीड़ से जूझते हुए जब द्वार के बाहर आए तो झरने की तेज कल कल सुनाई दी। दूर दूर तक पहाड़ और उन पर वृक्षों की हरियाली और झरना। इस सौंदर्य को देखकर अहसास हो गया कि क्यों सैलानी इस छोटे से स्थल पर दूर दूर से आते हैं। मंदिर परिसर की अपेक्षा यहां सैलानियों की तादाद कई गुना ज्यादा थी। यहां जिस तरह का नैसर्गिक सौंदर्य था वह स्विट्जरलैंण्ड की याद ताजा कर रहा था। जब आप माउंट टिटलिस और युंगफ्रा जाते हैं तब वृक्षों से लदी ऐसी ही पहाड़ियां मिलती हैं।
सैकड़ों फीट की ऊंचाई से गिर रहे झरने की झलक पाने को लोग बेकरार थे। सभी के अपने अपने अनुमान थे कि यह झरना कितनी ऊंचाई से गिर रहा है। राहुल जी ने बताया कि दो दिन पूर्व जब तेज बारिश का दौर था तब जिस जगह हम खड़े थे वहां तक पहाडों से पानी आ गया था। झरना भी जो दूर से पतली धार के रूप में दिख रहा था वह भी बहुत विशाल हो गया था। निसंदेह उस समय का दृश्य बहुत ही मनोहारी रहा होगा लेकिन ऐसे वक्त खतरा भी बहुत रहता है। राहुल जी चट्टानों पर ऊँचे नीचे रास्तों पर चलने के कारण कुछ थकान महसूस कर रहे थे इसलिए एक जगह बैठकर प्रकृति का नजारा देखने में मग्न हो गए। लेकिन हम तीनों आगे बढ़ गए जहां झरने की ओर जाने वाले पानी में लोग नहा रहे थे। पानी बहुत साफ सुथरा था लेकिन छोटी चट्टानों के कारण वहां जाने में परेशानी हो रही थी। लोगों को नहाता देख मेरी भी इच्छा हुई लेकिन जानता था कि यदि यह दुस्साहस किया तो भविष्य में आलाकमान से कहीं घूमने जाने की स्वीकृति नहीं मिलेगी। यह तय हुआ कि कम से कम पानी में उतर तो सकते हैं जो घुटने तक भी नहीं था। ठण्डे पानी में पैर डालते ही उमस से परेशान शरीर को राहत मिली। रमा जी भी पानी में उतरीं और हाथ पैर और चेहरे के पसीने को साफ किया। लेकिन नीलम जी बाहर से ही और आगे नहीं बढ़ने के निर्देश देती रहीं। बहुत कहने के बावजूद जब वह राजी नहीं हुई तो रमा जी ने ही अंजुरी में भरकर उन्हें पानी दिया। इसके बाद वह हिम्मत कर पानी के पास खड़ी हुईं और हाथ से उलीच पर पानी से पैर और चेहरा साफ किया। बहुत देर तक हम चारों ओर का सौंदर्य निहारते रहे। कुछ ही दूरी पर पुलिसकर्मी मौजूद थे जो लोगों को खतरनाक जगह पर जाने से रोकने में लगे थे। कई बार इसी जगह पर तेज बहाव में पर्यटक बह कर नीचे झरने में जा गिरे और मौत के मुंह में समा गए। कहा भी गया है कि पानी, वायु और आग की शक्ति की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए।
वहीं से दूर पहाड़ी पर बना मेनाल रिसोर्ट नजर आ रहा था। राहुल जी ने बताया कि मेनाल रिसोर्ट से यहां का दृश्य बहुत शानदार दिखता है। राहुल जी और रमा जी जब स्कूटी से मेनाल आए थे तब एक रात इसी रिसोर्ट में रूके थे। उन्हें रिसोर्ट से यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने का अवसर मिला था। वैसे भी राहुल जी तो जानकारी का भंडार हैं। मुझे लगता है कि वह होमवर्क भी बहुत करते हैं इसलिए उन्हें किसी भी विषय की ए टु जेड तक जानकारी रहती है। जब वह अपने अंदाज में उस जानकारी को बयां करते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। हम मित्र पत्रकारों में कहा भी जाता है कि राहुल जी मंच लूट ले जाते हैं।
जबकि मेरी फितरत अलग है। मैं जब कहीं घूमने जाता हूं तो उसे अपने नजरिए से देखता और राय बनाता हूं। मुझे लगता है कि यदि उस जगह के बारे में होमवर्क किया तो नएपन का अहसास खत्म हो जाता है। जब आपको पता है कि झरना डेढ़ सौ फिट से गिर रहा है या मंदिर तीसरी या चौथी शताब्दी में बना है तो उसके बारे में उत्सुकता खत्म हो जाती है।
करीब छह बज चुके थे और शाम होने लगी थी ऐसे में चाय पीने का मन हुआ। परिसर के बाहर चाय के ठेले इत्यादी ही थे जहां परिवार के साथ चाय पीने का मन नहीं हुआ। इसके लिए मेनाल रिसोर्ट जाने का फैसला किया। वहां जब तक चाय तैयार होती हमने रिसोर्ट के पिछले हिस्से में जाकर मेनाल के सौंदर्य को निहारा। हम कुछ देर बिताने के बाद रेस्तरां में लौटे और चाय पीकर अपने अगले गंतव्य श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन तपोदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र, बिजोलिया के लिए रवाना हो गए। जारी…