हरियाणाः कलह पर काबू पाने की कवायद

-मौजूदा सांसदों को चुनाव से दूर रखेगी कांग्रेस

-द ओपिनियन-

हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर खींचतान चल रही है। इसके दावेदारों में जो नेता खुलकर सामने आए उनमें पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पार्टी की महासचिव कुमारी शैलजा शामिल हैें। हुड्डा ने प्रत्यक्ष रूप से भले ही कुछ नहीं कहा हो लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि वे राज्य में पार्टी का मुख्य जाट चेहरा हैं और मुख्यमंत्री पद के दोवदार हैं। वहीं शैलजा पार्टी का दलित चेहरा हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री पद लिए अपनी महत्वाकांक्षा को कई बार प्रकट किया है। इसलिए उन्होंने राज्य में विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा भी व्यक्त की है। इसके अलावाा रणदीप सुरजेवाला व एक दो अन्य नेता भी सीएम पद के दावेदार मानते हैं और वह भी विधानसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक बताए जाते हैं।
हाल में हुए लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को लग रहा है कि वह राज्य में सत्ता में वापसी कर सकती है। इसलिए उसने सीएम फेस पर खींचतान पर विराम लगाने का प्रयास किया है। इसके लिए पार्टी ने यह रास्ता निकाला है कि किसी भी मौजूदा सांसद को विधानसभा का टिकट नहीं दिया जाएगा। बुधवार को हुई पार्टी की स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक के बाद कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने साफ कहा है कि पार्टी मौजूदा सांसदों को टिकट नहीं देगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि विधायकों के साथ एंटी इनकंबेसी हुई तो उनका टिकट काटा जा सकता है। कांग्रेस के भीतर इन दिनों उम्मीदवारों के चयन को लेकर मंथन चल रहा है और बुधवार को हुई स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक इसी मंथन का हिस्सा है।
बाबरिया ने कहा कि बुधवार को लगभग 15-16 टिकटों पर चर्चा हुई। हालांकि उम्मीदवारी तय करने में अभी थोड़ा और वक्त लगेगा। शनिवार तक लिस्ट कुछ तैयार हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की सूची 7-8 सितंबर के आसपास आ सकती है। हरियाणा को लेकर नामांकन की आखिरी तारीख 12 सितंबर है।
सूत्रों के अनुसार शैलजा और सुरजेवाला जैसे कद्दावर नेताओं द्वारा चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त करने से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व चिंतित है। चिंता यह भी है कि अगर ये दोनों नेता चुनाव लड़ते हैं तो इनकी खाली हुई क्रमशः लोकसभा और राज्यसभा सीटों पर फिर से चुनाव होने पर कांग्रेस के लिए जीतने की चुनौती बढ़ जाएगी। रोहतक से लोकसभा चुनाव जीतने वाले दीपेंद्र हुड्डा की राज्यसभा सीट जो खाली हुई, वह कांग्रेस के हाथ से निकल गई। वहां से हाल ही में बीजेपी के टिकट पर किरण चौधरी जीत कर राज्यसभा में पहुंची हैं। कांग्रेस के सामने चिंता दलित वोटों के खिसकने की भी है। इनेलो ने बसपा के साथ चुनावी समझौता कर लिया है जबकि जननायक जनता पाटी ने राज्य में चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के साथ चुनावी तालमेल करने का फैसला किया है। जननायक जनता पार्टी 70 और चद्रेशखर आजाद की पार्टी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी । चंद्रशेखर आजाद की पार्टी हो या बसपा दोनों का जनाधार दलित समाज ही है। वहीं कांग्रेस का उन पर परम्परागत प्रभाव है। इसलिए इस बार दलित वोटों के लिए घमासान काफी तेज होने के आसार हैं। चंद्रशेखर व बसपा के लिए जीत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी का नाम स्थापित होना व उसका जनाधार बढ़ाना है। दलित वोटों के लिए खींचतान को देखते हुए पार्टी कुमारी शैलजा को भी नाराज नहीं करना चाहेगी। इसलिए वह संतुलन साधकर ही वह आगे बढना चाहेगी। संभवत इसलिए ही उसने सांसदों को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं देने का फैसला किया है।

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