स्टूडेंट सुसाइड में महाराष्ट्र नंबर वन, ‘कोटा को सुनियोजित तरीके से बदनाम किया गया’

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कोटा में बच्चों का कम आना, अस्थाई फेज है। भविष्य में बच्चों की संख्या इस बात पर निर्भर करेगी कि कोटा के कोचिंग संस्थानों के रिजल्ट्स कैसे रहते हैं? अगर पहले की तरह वे मेहनत करते रहे और शानदार रिजल्ट देते रहे तो बच्चे आगे भी कोटा में आते रहेंगे।

 

-धीरेन्द्र राहुल-

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धीरेन्द्र राहुल

स्टूडेंट सुसाइड के मामले में कोचिंग सिटी कोटा को देश में सुनियोजित रूप से बदनाम किया गया लेकिन एक गैरलाभकारी संस्था-आईसी3 ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया है।

सन् 2022 के पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक छात्र- छात्राओं की आत्महत्याओं के मामले में महाराष्ट्र 1764 यानी (14 फीसद) छात्र आत्महत्या के साथ देश में नंबर वन है। तमिलनाडु में 1416 (11 फीसद ), मध्यप्रदेश 1314 (10 फीसद), उत्तर प्रदेश 1060 ( 8 फीसद) और झारखंड 824 ( 6 फीसद ) के साथ पहले पांचवें स्थान पर हैं।
जबकि इस सूची में कोटा का तो दूर दूर तक नाम ही नहीं है। सन् 2021 के आंकड़ों में भी महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्यप्रदेश तो यथावत थे लेकिन कर्नाटक 855 ( 7 फीसद ) और ओडिशा 834 (6 फीसद ) के साथ चौथे और पांचवें नम्बर पर था।

इस सूची में राजस्थान 571 स्टूडेंट आत्महत्याओं के साथ दसवें नंबर पर है। इन 571 में से कोटा की स्टूडेंट्स सुसाइड कितनी हैं? यह विश्लेषण कोटा के प्रमुख अखबारों को करना चाहिए।

मैं आजकल पुणे में हूं। यहां के प्रमुख मार्गों पर हर एक किलोमीटर पर कोई यूनिवर्सिटी, काॅलेज या शिक्षण संस्थाएं हैं। फिल्म इंस्टीट्यूट भी यहीं है और सैन्य प्रशिक्षण स्थल भी यहीं है। देश का सबसे बड़ा शिक्षा का हब पुणे है।

महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा स्टूडेंट सुसाइड के बावजूद पुणे, कोटा की तरह बदनाम नहीं है। ऐसा लगता है कि कोटा को जानबूझकर टारगेट किया गया। इसमें हमारे टीवी चैनल्स का बड़ा हाथ है जो कोटा में हुई एक एक आत्महत्या को राष्ट्रीय संकट की तरह पेश करते थे, जबकि सबसे ज्यादा आत्महत्या वाले राज्यों के बारे में उन्हें जानकारी ही नहीं थी।
फिर एक शहर को टारगेट करना तो आसान होता है लेकिन पूरे राज्य में जहां तहां होने वाली आत्महत्याओं को लक्षित करना मुश्किल।

क्यों किया गया ?

कोटा कोचिंग के क्षेत्र में देश में सर्वोपरि है। कोटा के कोचिंग संस्थानों ने देश के तमाम बड़े शहरों में अपनी ब्रांचेज खोल ली थी फिर भी दूरदराज क्षेत्रों के छात्र- छात्राएं कोटा ही आ रहे थे। क्योंकि यहां प्रतिस्पर्धा का वातावरण है, देश की उत्कृष्ट फैकल्टी है, हाॅस्टल्स हैं, लाइब्रेरियां हैं, कैंटिन और मैस सुविधाएं हैं। यानी मुकम्मल इंफ्रास्ट्रक्चर है।

इसलिए देश भर के बच्चे आते थे। कोटा से ईर्ष्या का एक बड़ा कारण यह भी रहा।
दूसरा बड़ा कारण मोदी सरकार का फैसला रहा, जिसमें 16 साल से कम उम्र के बच्चों को कोचिंग में प्रवेश देने पर रोक लगा दी गई। तीसरा कारण मेडिकल एंट्रेस एक्जाम का रिजल्ट अनिश्चितकाल तक अटकना रहा, जिससे रिपीटर्स फैसला नहीं कर पाए कि वे कोटा में रहें या जाएं।

बहरहाल मैं इसे अस्थाई फेज मानता हूं। कोरोना काल में भी कोटा इस फेज से गुजर चुका है। तब भी सारे कोचिंग खाली हो गए थे और फैकल्टी की तनख्वाहें कम कर दी गई थी। लेकिन कोरोना खत्म होते ही, ढाई से पौने तीन लाख छात्र-छात्राएं कोटा आए तो ये हाॅस्टल्स वाले बेतशाहा लूटपाट पर उतर आए थे। आज बच्चे कम आए हैं तो दहाड़े मार मारकर रो रहे हैं।

एक तो कोटा की रंगत खराब करने में इन हाॅस्टल्स मालिकों के लालच का बड़ा हाथ है। कोटा में औसतन छात्र आते हैं, दो लाख और इन भाई लोगों ने बैंकों से करोड़ों कर्ज लेकर दड़बे बना डाले चार लाख। यह तो तय था कि डेढ़ से दो लाख दड़बे तो खाली ही रहेंगे? या फिर उनका उतना किराया नहीं मिलेगा, जितना आप चाहते हैं।

फिर इन लोगों ने शोर मचाना शुरू किया कि बच्चे नहीं आ रहे हैं, बच्चे नहीं आ रहे हैं। आवश्यकता से अधिक निर्माण अब मुसीबत बन गया है। इन लोगों ने छात्रों के लिए जो दड़बे बनाए हैं, उसमें फैमेली नहीं रह सकती।

इसलिए मेरा कोटा के तमाम बैंकों से अनुरोध है कि वे कोटा में नए हाॅस्टल निर्माण के लिए ॠण देना बन्द करें। कल को आप का पैसा फंस गया तो मेरे से मती ही कहना!

दूसरी बात मुझे उन तमाम हाॅस्टल मालिकों से भी कहनी है, जो अपना मूल धंधा बन्द कर किराये की कमाई खा रहे थे। उन्होंने ठेकेदारी, खानें, दुकानें सब बन्द कर दिए थे और हाॅस्टल्स खोलकर बैठ गए थे। बिना काम किए मलाई किसे बुरी लगती है। वे अब पुन: अपने पुराने धंधों को पुनरूज्जीवित करें। तीसरी बात यह कि भविष्य में दड़बे नहीं, फ्लैट बनाए ताकि बच्चे न आए तो कम से कम फैमेली तो रह सके।

कोटा में बच्चों का कम आना, अस्थाई फेज है, यह मैं पहले कह चुका हूं। भविष्य में बच्चों की संख्या इस बात पर निर्भर करेगी कि कोटा के कोचिंग संस्थानों के रिजल्ट्स कैसे रहते हैं? अगर पहले की तरह वे मेहनत करते रहे और शानदार रिजल्ट देते रहे तो बच्चे आगे भी कोटा में आते रहेंगे।

दस पांच फिल्में फ्लॉप हो जाने से जैसे हॉलिवुड और बाॅलीवुड नहीं निपटता, वैसे ही कोटा का कोचिंग का जलवा भी फीका पड़ने वाला नहीं ? ऐसे वैसे झटके लगते रहने चाहिए, जिससे सारी व्यवस्थाएं ठीक चलती हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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