
-ए एच जैदी-

(नेचर प्रमोटर)
गौरैया नाम की छोटी सी चिड़िया घर आंगन में फुदक फुदक करती थी। अपनी चहचहाट से ऐसे घर को भी घर होने का अहसास कराती थी जहां बुजुर्ग नहीं हों और युवा देर तक सोते हों। उनकी मौज मस्ती से सुबह होने का संकेत मिल जाता था।
घर के आंगन के पेड़ पर या कच्चे कवेलु वाले घर के नीचे घोंसले बनाती थीं। बच्चों को पालती और बच्चे जब थोड़े बड़े हो जाते ओर कुछ उड़ान भरने लगते तब भी पंख फड फडा कर खाना मांगते।
कभी आटे की छोटी छोटी गोलियां या रोटी के छोटे छोटे टुकड़े उन्हें खिलाकर बड़ा कर अपने परिवार को बढ़ाती। लेकिन शहर में इन गौरेया का देखना मुश्किल हो गया है। अब ये शहर में नजर नहीं आतीं।
अब न आंगन में पेड़ हैं और ना ही कच्चे मिट्टी के कवेलु वाले घर। एक समय ऐसा आया कि ये लोप हो गईं। लगभग 25वर्ष पूर्व कव्वे ओर गौरैया कैसे गायब हुए पता नहीं चला। क्या अज्ञात बीमारी या महामारी का शिकार हुईं ।
अब फिर से खेतों में गांवों में दिखाई देने लगी हैं। इसे बचाने के कुछ संस्थाएं और सरकारी विभाग पूरे प्रयास कर रहे हैं।
बायलॉजिकल पार्क में स्पैरो डे मनाया
इस अवसर पर वन्य जीव अधिकारी ने घरेलू चिड़िया के बारे में पर्यावरण प्रेमी और सरकारी स्कूल, गावों के विद्यार्थी, पार्क में दिखाई देने वाली सभी चिड़ियों की जानकारियां दी। बायलॉजिकल पार्क में सुबह 7 बजे से 10 बजे तक दर्शकों के लिए निशुल्क प्रवेश रहा।
इस अवसर पर स्लाइड शो से भी टाइगर के बारे में बताया। रेडियो के रेडियो कालर कैसे काम करता है इस बारे में जानकारी दी गई।