kisan
फ़ोटो साभार सोशल मीडिया से।

-डॉ. रमेश चंद मीणा-

ramesh chand meena
डॉ. रमेश चंद मीणा

कार्तिकसरा की आस में, खेतों की साँतरी में
किसानों के सपने हो रहे, चकनाचूर
ज्वार,बाजरा,मक्का, अबके रह गया अधपका
गवांर, तिल और मूँग, रहे बारिश में भीग
उगा है फिर से खरीब, बनकर खेतों में बीज
पत्ते- फैडे,चारे के पूले, गलकर हो गए है नाचीज़
खलिहानों में कटकर, झमाझम पड़ रही बूँद
बालियां सड़ गयी, लग गयी है फफूंद।

रह….रह, बादलों को कोस रहे
टेम – बे टेम का, रोजणा रो रहे
खेत की मेड़ पर खडे; निष्प्राण
भोम के धणी-धिराणी
कौन है?धणी-धोरी, पूछे सग छोरा-छोरी
सबकी आंखों में यक्ष प्रश्न, बेगारी..सपनों की टूटन
सुंदर भविष्य व जिम्मेदारी के बोझ की चुभन का
सबसे बढ़कर, जीवन निर्वाह…अस्तित्व का
पेट की आग व चिंता बच्चों के स्कूल फीस की
टूटी पशु चारे की भी आस, कैसे बीतेगा बरस अफ़सोस! दम घुटे, अटक रही साँस
ये आग है जठर की; घी डाल रहा, विडंबना – नीर
अतिवृष्टी उतर रही,किसान की आंख से; बन निर्झर।

सूख गया आँखों का पानी ? अब जिनकी है जिम्मेदारी
कितनी है उनकी भागीदारी?
जिला कलेक्टर,उप जिला कलेक्टर
पटवारी, तहसीलदार व कृषि पर्यवेक्षक
सबके सब, उतरे धरातल पर बनकर वीक्षक
निष्पक्ष जाँचे, खेत री उत्तरपुस्तिका
फसल के प्रश्नोत्तरों को पढ़कर
तय हो; किसानों को मुआवजा
यह है खेत; फ़सलबोध का तकाजा
हो मूल्यांकन, मिले फसल बीमा का
सही-सही लाभ, हो हानि की भरपाई
किसान क्रेडिट कार्ड पर उठे
ऋण से मुक्ति अब, कृषकों को मिले
जिससे, फिर से उठकर
अन्नदाता को,धरती का सीना चीरकर
नव जीवन संघर्ष का साहस मिले ।

क्या ? सरकार के नेत्रों पर चलेंगे
कृषकों की बर्बादी के चलचित्र
क्या ? उनके कानों में गूँजेगी
कृषकों के चीत्कार की स्वर लहरियां
काश..…..!
किसानों का हो कोई हमदर्द,यहाँ ।।

लेखक सहायक आचार्य-चित्रकला
राजकीय कला महाविधालय,
कोटा (राजस्थान)
9816083135
rmesh8672@gmail.com

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments