
-रामस्वरूप दीक्षित-

अहसास
तुम्हारे
साथ होने का अहसास
बनाए रखता है
मेरे साथ
धरती के हरे होने
पहाड़ों के इतराने
नदियों के बहने
और
आसमान के खुशी से
और और नीले होते जाने का अहसास
कंधों पर उड़कर बैठती तितलियां
हंसते हुए फूल
चहकती गौरैयां
ओस से नहाकर
ताजातरीन होती घास
कोयल की कूक
भंवरों के गीत
गरीब के चूल्हे पर
फूलती हुई रोटियां
और बात बेबात
खिलखिलाकर हंसती हुई स्त्रियां
दिलाती हैं अहसास
कि तुम जाकर भी गई नहीं हो
लौट आई हो
न जाने कितने रूपों में
रामस्वरूप दीक्षित
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