टहनियों नहीं वट वृक्ष की करें पूजा

कहो तो कह दूं।

-बृजेश विजयवर्गीय-

बृजेश विजयवर्गीय

आज महिलाओं का वट सावित्री व्रत है। इस दिन बड़ के वृक्ष की पूजा की जाती है। महिलाएं जहां भी बड का वृक्ष होता है एकत्र होकर सामुहिक रुप से पूजा करती हैं। इस अवसर पर कथा भी कही जाती है जिसे महिलाएं सामुहिक रुप से सुनती हैं। यह एक तरह से त्यौहार का माहौल रहता है। लेकिन इन दिनों नई कॉलोनियां बनने तथा मल्टी स्टोरी की वजह से महिलाओं को वट वृक्ष नहीं मिलते। यह जरुर है कि मंदिरों में वट का वृक्ष लगा हो तो वहां पूजा कर ली जाती है। लेकिन समय बचाने के लिए वट वृक्ष की पूजा के बजाय उसकी डाल तोडकर पूजा करने का प्रचलन शुरू हो गया है। लेकिन यह पर्यावरण के लिहाज से उचित नहीं है।

whatsapp image 2023 05 19 at 10.49.39 पर्यावरणविद् डा एलके दाधीच कहते थे कि हर पेड़ का पत्ता ऑक्सीजन प्राणवायु की फैक्ट्री है उसे अनावश्यक नष्ट नहीं किया जाए। बहुत जरूरी होने पर ही उपयोग में लिया जाए। जिस प्रकार विकास के नाम पर सीमेंट कंक्रीट के स्ट्रक्चर तैयार किए जा रहे हैं सभी प्रजातियों के वृक्षों की तरह वटवृक्ष भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करता दिखाई दे रहा है। जो वट वृक्ष पति की लंबी आयु के लिए पूजनीय है आज उसी को बचाने की महती आवश्यकता पड़ रही है। तो हमें भी हमारे विकास के आधुनिक मॉडल पर क्यों नहीं विचार करना चाहिए। हर चौराहे पर क्यों न वट वृक्ष हों जो राहगीर को छाया तथा परिंदों को बसेरा दे और प्रदूषित शहरों में प्राण वायु का उत्सर्जन करें।

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