
-देशबन्धु में संपादकीय
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार में अब मुख्यमंत्री पद का दायित्व आतिशी संभालेंगी। 2020 में पहली बार विधायक बनीं आतिशी महज चार सालों में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठेंगी, इसका अनुमान किसी को भी नहीं था, खुद आतिशी ने भी इस पद के बारे में कभी सोचा नहीं होगा। क्योंकि दिल्ली की सत्ता में आम आदमी पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा शुरु से अरविंद केजरीवाल ही रहे हैं, और आगे भी रहेंगे। उनके इस अघोषित दावे को चुनौती देने वाला पार्टी में कोई नहीं है और जिन लोगों को अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व और पार्टी पर पकड़ से तकलीफ़ थी, वे पहले ही अलग हो चुके हैं।
बहरहाल, बीते वक़्त में दिल्ली की सियासत में काफी उलटफेर हुई। अरविंद केजरीवाल को आबकारी नीति में कथित घोटाले के आरोप में मार्च 2024 में ईडी ने गिरफ्तार किया, ईडी की गिरफ्तारी में जमानत मिली तो जून में सीबीआई ने गिरफ़्तार कर लिया। इसी 13 सितंबर को श्री केजरीवाल को फिर जमानत मिली। इसके बाद सभी को अनुमान था कि वे हरियाणा चुनाव के प्रचार में जुटेंगे, लेकिन इससे पहले अपना इस्तीफ़ा देकर उन्होंने सभी को चौंका दिया। अरविंद केजरीवाल के हटने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी कौन संभालेगा, इसे लेकर कई नाम सामने आए। सुनीता केजरीवाल का नाम तो था ही, इसके अलावा कैलाश गहलोत, सौरभ भारद्वाज, गोपाल राय, आतिशी जैसे तमाम मंत्रियों का नाम भी सामने आ रहा था। जिसमें बाजी आतिशी के हाथ लगी।
हालांकि आतिशी ने विधायक दल का नेता चुने के बाद साफ़ कर दिया है कि वे अरविंद केजरीवाल को फिर से दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने के लिए काम करेंगी। उन्होंने खुद को बधाई दिए जाने से मना कर दिया कि यह दुख का अवसर है कि अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद छोड़ रहे हैं। अब आतिशी बधाई स्वीकार करें या न करें, लेकिन आधिकारिक तौर पर अब उनका नाम देश के मुख्यमंत्रियों की सूची में शामिल हो रहा है। आतिशी देश की महिला मुख्यमंत्रियों की अनूठी सूची में अब दर्ज हो रही हैं। खास बात यह है कि दिल्ली को अब तीसरी महिला मुख्यमंत्री मिली है। सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित के बाद आतिशी दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री होंगी। देश के तमाम राज्यों में संभवतः दिल्ली ही एक ऐसा राज्य है, जिसने तीन-तीन महिला मुख्यमंत्री दिये हैं।
दरअसल आतिशी का महिला विधायक होना, उनके मुख्यमंत्री बनने के अनेक कारणों में से एक है। आम आदमी पार्टी से ही राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल ने अरविंद केजरीवाल के निजी सचिव बिभव कुमार पर मुख्यमंत्री निवास में ही मारपीट और उत्पीड़ित करने का गंभीर आरोप चुनावों के दौरान लगाया था। जिस पर बिभव कुमार गिरफ़्तार हुए ही, विरोधियों को आप को महिला विरोधी दल साबित करने का मौका मिल गया। हालांकि आतिशी ने तब भी कहा था कि स्वाति मालीवाल प्रकरण भाजपा की शह पर हुआ है। अब आतिशी को मुख्यमंत्री बनाकर अरविंद केजरीवाल ने आप की महिला विरोधी छवि के दाग को मिटाने की कोशिश की है। इससे पहले 2020 के मंत्रिमंडल गठन में जब श्री केजरीवाल ने आठ महिला विधायकों में एक को भी मंत्री नहीं बनाया था, तब भी इस बात की आलोचना हुई थी। लेकिन अब उन तमाम शिकायतों का जवाब एक साथ दे दिया गया है।
आतिशी का राजनैतिक कद पिछले साल 2023 से एकदम से बढ़ा, जब दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को आबकारी नीति मामले में ही गिरफ़्तार किया गया था। दिल्ली के शिक्षा मंत्री के तौर पर मनीष सिसोदिया ने जितने नए प्रयोग किए और अनूठे फैसले लिए, उन सबमें आतिशी का भी योगदान रहा है। मनीष सिसोदिया की गिरफ़्तारी के बाद उन्हें दिल्ली सरकार में कई और महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी मिली और मुख्यमंत्री बनने से पहले वे 14 विभाग संभाल रही थीं। इसके अलावा जब आम आदमी पार्टी में मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन, संजय सिंह और अरविंद केजरीवाल जैसे बड़े नामों को सलाखों के पीछे जाना पड़ा, तब आतिशी पार्टी की आवाज़ बनकर जनता के बीच उपस्थित होती रहीं।
बेशक सौरभ भारद्वाज और गोपाल राय का नाम भी इसमें लिया जा सकता है, लेकिन कई सारे मंत्रालयों को संभालना भी आतिशी के मुख्यमंत्री बनने में मददगार साबित हुआ। आतिशी अरविंद केजरीवाल की भी विश्वासपात्र हैं, यह बात तब और पुख़्ता हो गई, जब स्वतंत्रता दिवस समारोह में अरविंद केजरीवाल की तरफ से झंडारोहण के लिए आतिशी का नाम भेजा गया था। हालांकि उपराज्यपाल ने इसके लिए कैलाश गहलोत को चुना। मगर संकेत तभी मिल गए थे कि ज़रूरत पड़ने पर अरविंद केजरीवाल का उत्तराधिकारी आतिशी ही बनेंगी।
दिल्ली विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड से उच्च शिक्षा हासिल करने वाली आतिशी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जुड़ी और फिर आम आदमी पार्टी के गठन के वक़्त से उसके साथ हैं। पहले वे अपने नाम के आगे मार्लेना लगाती थीं, जो मार्क्स और लेनिन के नाम के शुरुआती अक्षरों से बना है। यह उपनाम उनकी वामपंथी सोच को प्रदर्शित करता था, लेकिन भाजपा को इसमें पारसी, ईसाई उपनाम की झलक शायद दिखी और इसी को आधार बनाकर भी आतिशी पर हमला किया गया। हालांकि आतिशी ने अपना उपनाम इसलिए हटा लिया कि पहचान बताने में वे वक्त बर्बाद नहीं करना चाहती। जाहिर है आतिशी उच्च शिक्षित, प्रगतिशील विचारों की नेता हैं और सुविधाभोगी जीवन जीने की अपेक्षा उन्होंने जनता के बीच उतरकर काम किया है। अरविंद केजरीवाल के जेल जाने पर अनशन रखने से लेकर पदयात्रा तक कई काम उन्होंने ऐसे किए हैं, जो सीधे जनता से उन्हें जोड़ते हैं। ऐसे में चुनाव में आम आदमी पार्टी को फ़ायदा हो सकता है। अरविंद केजरीवाल आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने के अपने फ़ैसले को जनता के बीच सही ठहरा सकते हैं।
बाकी भाजपा तो आदतन आम आदमी पार्टी पर आरोप लगा ही रही है। पहले उसने अरविंद केजरीवाल से इस्तीफ़ा मांगा, जब उन्होंने इस्तीफ़ा दिया तो सवाल उठाए कि अभी इस्तीफ़ा क्यों दिया, और अब आतिशी को डमी मुख्यमंत्री, रबर स्टैंप जैसे शब्दों से नवाज़ना शुरु हो चुका है। लेकिन जिस भाजपा ने गुजरात, उत्तराखंड, हरियाणा, कर्नाटक जैसे राज्यों में बिना किसी कारण के मुख्यमंत्री बदले हों, उसे अब आप पर ऊंगली उठाकर क्या फ़ायदा मिलेगा, यह भाजपा नेता सोचें।