
-देवेंद्र यादव-

हरियाणा विधानसभा चुनाव, भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों की व्यूहरचना पर निर्भर हो गए हैं।
भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार पहले कांग्रेस को अपने जाल में फंसाते हैं, फिर चुनाव प्रक्रिया शुरू होते ही चक्रव्यूह में फांस लेते हैं। इससे कांग्रेस जीती बाजी हार जाती है। कई राज्यों के विधानसभा चुनाव इसके साक्षी हैं। कांग्रेस ने भाजपा के चुनावी रणनीतिकारों के जाल और चक्रव्यूह में फंसकर राज्यों के चुनाव हारे हैं।
पंजाब इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां कांग्रेस ने अपनी सत्ता को गंवाया था। अब वैसा ही नजारा हरियाणा विधानसभा चुनाव में दिखाई दे रहा है। हरियाणा से खबर आ रही है कि कांग्रेस की पांच बार से सांसद कुमारी शैलजा नाराज हैं और प्रचार में भाग नहीं ले रही है। क्या कुमारी शैलजा भाजपा के जाल के बाद भाजपा के चक्रव्यूह में फंस चुकी हैं। इससे कांग्रेस को ही नहीं बल्कि स्वयं कुमारी शैलजा को भी राजनीतिक नुकसान होगा, क्योंकि कुमारी शैलजा की कांग्रेस में कद्दावर, ईमानदार और वफादार नेताओं में गिनती होती है। शैलजा गांधी परिवार और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की भरोसेमंद नेता हैं।
क्या कुमारी शैलजा कुर्सी के लिए गांधी परिवार और मल्लिकार्जुन खड़गे के भरोसे को तोडेंगी या फिर भारतीय जनता पार्टी के द्वारा बुने गए चक्रव्यूह को तोड़कर हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत कर कांग्रेस को सत्ता में वापस लेकर आएंगी।
राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों नेता कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए पूरजोर मेहनत कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस के भीतर कांग्रेस को मजबूत कर जीत दिलवाने की जिम्मेदारी केवल राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे पर ही है। क्या यह जिम्मेदारी कुमारी शैलजा जैसी नेताओं के कंधों पर नहीं है जो वर्षों से सत्ता और संगठन में बैठकर अपना राजनीतिक रुतबा दिखा रहे हैं।
यह तो वह बात हो गई राहुल गांधी तुम संघर्ष करो मलाई हम खाएंगे। और लंबे समय से स्वयंभू नेता अपने आप को बड़ा नेता बताकर, हाई कमान पर राजनीतिक दबाव बनाकर लंबे समय से मलाई ही तो खा रहे हैं। संघर्ष अकेले राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे कांग्रेस और हरियाणा से मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर प्रबल दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की चुनौतियां भी बढ़ती जा रही है। बड़ी चुनौती यह है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा कितने जाट नेताओं को चुनाव जितवा पाते हैं। कांग्रेस ने हरियाणा में 90 में से 28 टिकट जाट नेताओं को दिए हैं। ज्यादातर यह नेता हुड्डा समर्थक हैं। वहीं कुमारी शैलजा को भी चुनौती स्वीकार करनी होगी कि वह प्रदेश में कितने दलित नेताओं को चुनाव जितवा पाती हैं। हरियाणा का चुनाव जाट और दलित मतदाताओं के बीच फंसता हुआ भी दिखाई दे रहा है। यदि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को छोड़ दें तो, हरियाणा के चुनाव में दलित और जाट समुदाय के बड़ी संख्या में क्षेत्रीय दल मैदान में है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में ऊंट किस तरफ करवट लेगा यह निर्णय दलित और जाट मतदाता करेंगे। एक सवाल यह भी है कि क्या भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों ने हरियाणा में अभी से ऑपरेशन लोटस की तैयारी भी शुरू कर दी है।
कांग्रेस चुनाव नहीं जीते इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने हरियाणा चुनाव में मजबूत निर्दलीय प्रत्याशियों का समर्थन करना भी शुरू कर दिया है जो ऑपरेशन लोटस का एक हिस्सा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)