
-देशबन्धु में संपादकीय
अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत कर दुनिया का सबसे ताकतवर पद फिर से पाने में डोनाल्ड ट्रम्प को सफलता मिल गयी है। साथ ही अमेरिका पहली महिला राष्ट्रपति पाने से वंचित रह गया। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पहली बार चार साल के अंतराल में किसी को दो बार यह पद प्राप्त करने का मौका मिला है। इसके पहले 1884 और 1892 में ग्रोवर क्लीवलैंड ने यह उपलब्धि हासिल की थी। अपने पहले कार्यकाल में अनेक मामलों में अलोकप्रिय हो चुके ट्रम्प की इस बार की जीत इस मायने में बड़ी है कि अमेरिकी संसद के दोनों सदनों में से सीनेट में उनकी रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत मिल गया है, अलबत्ता हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव में कांटे का संघर्ष इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जारी था। बहुमत नहीं भी मिलता तो भी उसकी सदस्य संख्या तगड़ी है। इससे उन्हें फैसले लेने तथा काम करने में आसानी होगी। अपने पहले उद्बोधन में ट्रम्प ने अमेरिका को फिर से महान बनाने का अपना इरादा जतलाया और यह भी कहा कि ‘भगवान ने उनकी जान इसी दिन के लिये बचाई थी।’ गौरतलब है कि 13 जुलाई को चुनाव प्रचार करने के दौरान उन पर एक युवक ने गोली चलाई थी जो उनके कान को ज़ख्मी करती हुई गुजर गयी थी।
उनकी प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस (उप राष्ट्रपति) उन ‘स्विंग स्टेट्स’ कहे जाने वाले राज्यों में पिछड़ गयीं जो हार-जीत को तय करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव समझने वाले जानते हैं कि वहां के ज़्यादातर राज्य परम्परागत रूप से अपनी पसंदीदा पार्टी के ही उम्मीदवार को चुनते हैं- चेहरा चाहे कोई भी हो। कुल 538 में 270 सीटें पाना बहुमत के लिये ज़रूरी हैं। इसे इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स कहा जाता है। 7 स्विंग स्टेट में अक्सर मार्जिन बड़ा कम होता है जहां 93 सीटें हैं। इनका पलड़ा जिस उम्मीदवार की तरफ़ झुकता है, उसे व्हाइट हाउस में रहने का अधिकार मिल जाता है। इनमें से सभी, खासकर अलास्का, नेवादा तथा एरिज़ोना में ट्रम्प की जीत बहुत आश्चर्यजनक है जो अक्सर डेमोक्रेट्स को जिता देते हैं। 2021 का चुनाव ट्रम्प इन्हीं राज्यों की बदौलत हारे थे क्योंकि इन सात में से उन्हें केवल एक में ही विजय नसीब हुई थी। इन राज्यों में जीत पर स्वयं ट्रम्प चकित हैं।
वैसे तो इस नतीजे का जैसे-जैसे विश्लेषण होगा, जय-पराजय के कारणों का और भी खुलासा होगा। प्रथम दृष्टया जो कारण नज़र आते हैं, उनमें से प्रमुख है जो बाइडेन का कमजोर प्रशासन। उनकी इस कमज़ोरी का खामियाजा हैरिस को भुगतना पड़ा। वोटर इस बात से आकर्षित नहीं हुए कि यदि वे कमला हैरिस को जिताते हैं तो देश को पहली महिला राष्ट्रपति हासिल होगी। वे पहली उप राष्ट्रपति तो हैं ही। पहले कार्यकाल के दौरान बात-बात में झूठ बोलने के लिये ट्रम्प की आलोचना करने वाले अमेरिका ने उन्हें ही गद्दी अता कर दी है। दुनिया के सर्वाधिक अमीर राजनेताओं में से एक ट्रम्प हैं जिनकी कुल सम्पत्ति 6.6 बिलियन डॉलर मानी जाती है। अनेक महलनुमा मकानों व कम्पनियों के मालिक ट्रम्प अमेरिकियों को एक बात महसूस कराने में सफल हो गये, वह यह कि उनके रहते दुनिया भर में कोई बड़ी लड़ाई नहीं हुई। पिछले कुछ वर्षों से रूस व यूक्रेन और अब इजरायल-फिलीस्तीन युद्धों के लिये बाइडेन को चाहे सीधे जिम्मेदार न ठहराया जा रहा हो, पर यह माना जा रहा है कि वैश्विक नेता के रूप में अमेरिका सुलह कराने में नाकाम रहा। दोनों लड़ाइयों में हो रहा जनसंहार अमेरिकियों को विचलित कर रहा है।
ट्रम्प को कारोबार जगत से भी बड़ा समर्थन मिला। दुनिया के सबसे बड़े और हमेशा कुछ नया करने के लिये विख्यात कारोबारी इलॉन मस्क खुलकर ट्रम्प के समर्थन में काम कर रहे थे। इस बात का उन्होंने खास ज़िक्र जीत के बाद समर्थकों के बीच दिये अपने भाषण में यह कहकर किया कि ‘इलॉन स्टार हैं। प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने रॉकेट की तरह उड़ान भरी।’ अपने अनेक कामों के अलावा अंतरिक्ष में फंसी सुनीता विलियम्स को सुरक्षित धरती पर लाने के लिये मस्क के प्रयासों की वहां तारीफ़ हुई है जबकि माना यह गया कि बाइडेन ने इसमें रुचि न दिखाते हुए सारी जिम्मेदारी नासा के वैज्ञानिकों पर छोड़ रखी थी। मस्क की लोकप्रियता का भी लाभ ट्रम्प को मिलता हुआ दिख रहा है। ट्रम्प की जीत को पूंजीवाद में अमेरिका के भरोसे के रूप में भी देखा जा रहा है। इसके कारण अमेरिका के साथ आस्ट्रेलिया एवं कनाडा के शेयर बाजारों में उछाल आया है। भारत का बाज़ार भी चढ़ा है।
ट्रम्प की जीत को यदि भारत के लिहाज से देखा जाये तो प्रधानमंत्री मोदी उन्हें अपना न केवल मित्र बताते रहे हैं वरन पिछले चुनाव में वे बाकायदे उनका यह कहकर प्रचार भी कर आये थे- ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार।’ इसके चलते मोदी की खासी किरकिरी हुई थी। इसलिये इस बार उन्होंने ऐसी कोई ग़लती नहीं की। देखना होगा कि ट्रम्प के आने से भारत को क्या फ़ायदा होता है। विदेशी निवेश और पूंजी प्रवाह बढ़ने की आशा तो है पर ट्रम्प निर्यात हेतु भारत पर अमेरिकी वस्तुओं के लिये अधिक रियायत मांग सकते हैं। साथ ही भारतीयों को वीज़ा में परेशानी हो सकती है क्योंकि पिछली बार ट्रम्प ने एच-1बी वीज़ा पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। भारत की व्यापार नीतियों के वे आलोचक भी रहे हैं।
अप्रवासियों के प्रति ट्रम्प का रवैया कठोर रहा है। अमेरिका एवं कनाडा की विदेश नीति लगभग एक ही तरह से चलती है। फिलहाल भारत-कनाडा रिश्ते कटु चल रहे हैं। वहां हुई कुछ हिंसक घटनाओं के लिये कनाडा ने भारत सरकार को जिम्मेदार माना है। गृह मंत्री अमित शाह का नाम तक उसमें घसीटा गया है। ट्रम्प के आने से भारत के प्रति अमेरिकी रवैया देखना होगा। वैसे ट्रम्प ने अपनी जीत के लिये अरब एवं मुसलमानों का विशेष धन्यवाद दिया है। वहां रहने वाले भारतीयों का उल्लेख नहीं हुआ है।

















