‘तुम लाए हो मंझदार से किश्ती निकाल के ‘

manmohan singh
मनमोहन सिंह। फोटो सोशल मीडिया से साभार
उन्होंने महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना लागू कर करोड़ों ग्रामीणों की जेब में पैसा पहुंचाया ताकि वे दूध और सब्जियां खरीद सकें। ग्रामीण भाइयों की क्रय शक्ति बढ़ी और शहरों की ओर उनका पलायन थमा। कोरोना काल में शहरों से गांव लौटे करोड़ों श्रमिक परिवारों को इसी योजना की वजह से दो जून रोटी नसीब हुई। आज अगर देश दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर देश अग्रसर है तो इसका बहुत कुछ श्रेय मनमोहनसिंह को भी जाता है।
-धीरेन्द्र राहुल-
rahul ji
धीरेन्द्र राहुल
डॉक्टर मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में देश को आर्थिक भंवर से निकाला तो प्रधानमंत्री के रूप में देश के आर्थिक महाशक्ति बनने की नींव रखीं।
जब तक हम गरीब और फटेहाल देश थे, तब तक दुनिया के विकसित देशों की हम में कोई रूचि नहीं थी लेकिन जब हमारे यहां पचास साठ करोड़ का मध्यमवर्ग विकसित हो गया, जिनके पास टीवी, फ्रीज, कार और उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने की क्रय शक्ति थी। तब दुनिया को लगा कि भारत एक बाजार बन गया है तो वैश्विक मंचों पर भारत को भी सम्मान मिलना शुरू हुआ।
आज हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को वैश्विक मंचों पर जो सम्मान मिलता है, उसके मूल में भी वे आर्थिक सुधार हैं, जिनकी शुरुआत मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में की थी।
आपको याद होगा कि चन्द्र शेखर जब अल्पकाल के लिए प्रधान मंत्री बने तो देश का विदेशी मुद्रा भण्डार रीत गया था यानी खाली हो गया था। सोना गिरवी रखने की नौबत आ गई थी।
उनके बाद पीवी नरसिंहराव प्रधान मंत्री बने तो उनके केबिनेट सचिव नरेश चन्द्रा ने उन्हें आठ पेज का नोट सौंपा तो उसमें देश की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल होने की जानकारी थी। देश की आर्थिक स्थिति को सुधारना नरसिंहराव की पहली सबसे बड़ी चुनौति थी।
उन्होंने अपने सलाहकार पीसी अलेक्जेंडर से पूछा कि क्या आप ऐसे वित्त मंत्री का नाम सुझा सकते हो, जिसकी इंटरनेशनल स्तर तक स्वीकार्यता हो। इस पर एलेक्जेंडर ने रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डाॅक्टर आई जी पटेल का नाम सुझाया, जो लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के निदेशक रह चुके थे। उस समय पटेल बड़ौदरा में अपनी बीमार मां की देखभाल कर रहे थे। उन्होंने मना कर दिया तो एलेक्जेंडर ने मनमोहन सिंह का नाम सुझाया।
कहने का मतलब यह कि मनमोहन सिंह दूसरी पसंद थे। मनमोहन सिंह जब नरसिंहराव से मिले तो राव ने उनसे कहा कि अगर आप सफल हुए तो इसका श्रेय दोनों को जाएगा लेकिन विफल हुए तो उसके लिए आप जिम्मेदार होंगे।
यहां नरसिंहराव की सराहना करनी होगी कि उन्होंने मनमोहन सिंह को फ्रीहैण्ड दिया।
आर्थिक सुधार लागू करने की प्रसव पीड़ा बड़ी दर्दनाक थी। सब्सिडी और अनुदान का दौर खत्म हो रहा था और भारतीय उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करना था। नरसिंहराव सरकार ने संरक्षण रूपी छाता एकदम से हटा लिया था। पहले निर्यात के लिए भी सरकार से कोटा लेना पड़ता था। ये सारे प्रतिबंध भी खत्म हो गए थे। अब भारतीय उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उतरना था।
लेकिन इस प्रक्रिया में कई उद्योग लड़खड़ा गए तो कई बन्द हो गए। उस समय नरसिंहराव सरकार की आलोचना होने लगी लेकिन उन्होंने मनमोहन सिंह को नहीं रोका। प्रारंभिक नुकसान के बाद सब चीजें पटरी पर आने लगी जिससे आर्थिक सुधारों का फायदा देश को तो हुआ लेकिन तात्कालिक रूप से कांग्रेस पार्टी को नहीं।
सन् 1996 के लोकसभा चुनाव में कोटा के महाराव उम्मेदसिंह स्टेडियम में आयोजित सभा को संबोधित करने नरसिंहराव आए थे। उस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री भुवनेश चतुर्वेदी ने रामनारायण मीणा को कांग्रेस प्रत्याशी बनाया था। एक रिपोर्टर के रूप में मैं वहां मौजूद था लेकिन पाण्डाल में बैठे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह और जोश का अभाव था। एक मुर्दिनी सी छाई हुई थी जिससे लगता था कि नरसिंहराव सरकार अब फिर नहीं लौटने वाली।
सुखद बात यह रही कि
इसके बाद सत्ता में आई अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने आर्थिक सुधारों को जारी रखा।
सन् 2004 में सोनिया गांधी ने प्रणव मुखर्जी के बजाय मनमोहन सिंह को चुना। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने देश के आर्थिक शक्ति बनने का मार्ग प्रशस्त किया।
उन्होंने महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना लागू कर करोड़ों ग्रामीणों की जेब में पैसा पहुंचाया ताकि वे दूध और सब्जियां खरीद सकें। ग्रामीण भाइयों की क्रय शक्ति बढ़ी और शहरों की ओर उनका पलायन थमा। कोरोना काल में शहरों से गांव लौटे करोड़ों श्रमिक परिवारों को इसी योजना की वजह से दो जून रोटी नसीब हुई। आज अगर देश दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनने की ओर देश अग्रसर है तो इसका बहुत कुछ श्रेय मनमोहनसिंह को भी जाता है।
एक ही मामले में वे विफल रहे और वह था अपनी गठजोड़ सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं रख पाए।
अमरीका में रोनाल्ड रीगन को टैफ्लान प्रेसिडेंट कहा जाता है। टैफ्लान ऐसा पदार्थ है कि उस पर कोई भी चीज चिपकती नहीं। ऐसे मनमोहन सिंह को टैफ्लान प्राइम मिनिस्टर कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
भ्रष्टचार के आक्षेपों से घिरी सरकार के वे बेदाग नेता रहे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर कहते हैं कि प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री और मनमोहनसिंह को राष्ट्रपति बनाया जाता तो ठीक रहता। कह नहीं सकते कि क्या होता? मनमोहनसिंह ने जो किया, उसके लिए देश उनका कृतज्ञ रहेगा।
विनम्र श्रद्धांजली!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)
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