
-देवेंद्र यादव-

राहुल गांधी को भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के मुद्दे को क्रश करने के लिए जाति जनगणना रूपी हथियार मिल गया। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने देशभर में संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ अभियान चलाया। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को अपने इस अभियान से लोकसभा चुनाव में बड़ी कामयाबी मिली। कांग्रेस ने 99 लोकसभा सीट जीती। 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को संविधान बचाओ आरक्षण बचाओ अभियान से मिली सफलता के बाद कांग्रेस 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। यह राहुल गांधी के द्वारा जातिगत जनगणना का मुद्दा जोर शोर से उठाने से प्रतीत होता है। भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर आगे बड़ी और केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाई। कांग्रेस और राहुल गांधी के द्वारा जाति जनगणना की मांग करना भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को समाप्त करने का मुख्य हथियार है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे हैं और कांग्रेस ने बड़ा राजनीतिक प्लान कर लिया है कि वह जाति के आधार पर कांग्रेस संगठन में कार्यकर्ताओं को पद और जिम्मेदारी देंगे। यह काम कांग्रेस ने शुरू भी कर दिया है। कांग्रेस ने बड़े राज्य बिहार में दलित नेता विधायक राजेश राम को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया है।
सवाल यह है कि क्या 2029 के लोकसभा चुनाव में यदि कांग्रेस को सफलता मिली तो देश का प्रधानमंत्री दलित होगा। कांग्रेस और राहुल गांधी के सामने चुनौती भी बड़ी है। चुनौती देश के विभिन्न राज्यों में बने क्षेत्रीय दलों से है क्योंकि अधिकांश क्षेत्रीय दल दलित, पिछड़ी जाति, जनजाति के नेताओं के द्वारा बना रखी हैं। इन दलों ने ही पारंपरिक मतदाताओं को कांग्रेस से छीना है। कांग्रेस कमजोर इसीलिए है क्योंकि कांग्रेस से निकलकर नेताओं ने अपने अपने राज्यों में क्षेत्रीय दल बना लिए हैं। इन क्षेत्रीय दलों का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की तरफ अधिक दिखाई देता है क्योंकि कांग्रेस ने दलित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के क्षेत्रीय दलों के नेताओं से गंभीर होकर शायद कभी वार्ता ही नहीं की।
कांग्रेस को जाति जनगणना के मुद्दे का राजनीतिक फायदा तब मिलेगा जब कांग्रेस दलित आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के क्षेत्रीय दलों के नेताओं से वार्ता कर अपने पक्ष में लेकर आए।
यदि जाति जनगणना हो भी जाएगी तो भी विभिन्न राज्यों में कांग्रेस को दलित, आदिवासी और ओबीसी के क्षेत्रीय दलों के रहते बड़ी कामयाबी मिलना मुश्किल है। इसका प्रमाण 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में देखने को मिला। यदि बहुजन समाज पार्टी और उसकी नेता मायावती भी इंडिया गठबंधन में साथ होती और बिहार में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान इंडिया गठबंधन के साथ होते तो आज लोकसभा का नजारा ही कुछ और होता।
कांग्रेस को 2029 के लोकसभा चुनाव में सफलता पानी है तो जाति जनगणना की आवाज उठाने के साथ-साथ विभिन्न राज्यों में बने दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के क्षेत्रीय दलों के नेताओं से भी वार्ता करने का अभियान अभी से छेड देना चाहिए। इससे काम नहीं चलेगा कि कांग्रेस ने बिहार में दलित नेता को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया तो बिहार में जीतन राम मांझी और चिराग पासवान कमजोर हो जाएंगे। यह गलतफहमी कांग्रेस ना पाले बल्कि कांग्रेस 2025 नहीं 2029 के लोकसभा चुनाव को लेकर इन नेताओं से वार्ता करे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)