
-डॉ रामावतार मेघवाल “सागर”

भला कब तक नहाती वो अकेली भीगे सावन में
रची थी कल हिना से जो हथेली भीगे सावन में
संभल जाता अगर यौवन मिला होता पिया से जो
मिली फूटी हुई किस्मत,सहेली भीगे सावन में
खिला आषाढ़ हरयाली,बिखरती सी नजर आये
हवाओं में कोई खुश्बू बहकती सी नजर आये
नजर आती है दुनियां और दारी हर तरफ लेकिन
हमारी सांस में खुश्बू महकती सी नजर आये
अगरचे भूल कर देते मुहब्बत की कमाई में
गुजर जाते हसीं लम्हे लड़ाई में बुराई में
हसीं है आज तक दुनिया बचे कुछ लोग ऐसे भी
लगे रहते हैं उल्फत में सभी की ही भलाई में
हकीकत-सा फ़साना है, फ़साने-सी हकीकत है।
किसी को कैसे समझाऊं अजब-सी ये मुसीबत है
जिसे हम ढूंढ़ते रहते है मंदिर और मस्जिद में
बसा हर आदमी के दिल में बनके प्रेम मूरत हैै
हमारे संग मीलों तक चली कचनार की खुशबू
बसी थी जिसमें तेरे और मेरे प्यार की खुशबू
हवाओं में दुआओं का असर भी साथ है सागर
तुम्हारे ही भरोसे पर उड़ी किरदार की खुशबू
तुम्हारी बेबसी ने यार सब बंधन भुला डाले
कहीं चूड़ी भुला डाली, कहीं कंगन भुला डाले
मैं कैसे भूल जाऊं उन हसीं यादों को अब सागर
तुम्हारे प्यार के खातिर पेरिस लंदन भुला डाले
-डॉ रामावतार मेघवाल “सागर”