
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

किस क़दर थीं वो मौतबर*आँखें।
कर गईं दिल पे जो असर आँखें।।
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कौन अपना है या पराया है।
ये भी रखती हैं सब ख़बर आँखें।।
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इन ग़रीबों का हाल भी देखें।
आँख वालों के हों अगर आँखें।।
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राज अंधा है, ताज अंधा है।
इसमें चलिएगा खोलकर आँखें।।
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अब तो खटका दबा दे ऐ जल्लाद*।
जम गईं अब तो दार* पर आँखें।।
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दिल पे टूटा है कोई ग़म का पहाड़।
ऑंसुओं से हैं तर-ब-तर आँखें।।
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आँखें, आँखों की झील में उतरीं।
अब न उभरेंगी डूबकर आँखें।।
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दिल से दिल का मुआमला समझो।
मत करो तुम इधर-उधर आँखें।।
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शौक़-ए-दीदार* की तड़प देखो।
कैसी भागी हैं दौड़कर आँखें।।
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ख़्वाब में जुगनुओं का जंगल था।
मैंने रखदीं निकालकर आँखें।।
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बस गया इनमें अब कोई “अनवर”।
बन गईं अब किसी का घर आँखें।।
”
मौतबर*सम्मानित
जल्लाद*फाॅंसी देने वाला कर्मचारी
दार*सूली
शौक़-ए-दीदार*देखने की इच्छा,दर्शन की अभिलाषा
शकूर अनवर
9460851271

















