ऑपरेशन सिंदूर, जितने मुंह, उतनी बातें

-देशबन्धु में संपादकीय 

ऑपरेशन सिंदूर के तीन महीने बाद भारतीय वायु सेना के प्रमुख एयर चीफ़ मार्शल अमर प्रीत सिंह ने शनिवार को एक कार्यक्रम में सनसनीखेज दावा किया है कि मई 2025 में हुए ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के छह विमानों को मार गिराया गया था। ऑपरेशन सिंदूर पर यह बड़ी जानकारी 10 मई को हुए युद्धविराम के फौरन बाद भी दी जा सकती थी। पाठकों को याद होगा कि भारतीय सेना के इस अभियान के बारे में लगातार विदेश सचिव के साथ सैन्य अधिकारी प्रेस को आधिकारिक सूचना दे रहे थे। इस बारे में प्रेस काॅन्फ्रेंस भी हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने भी 10 मई के युद्धविराम के बाद देश को संबोधित किया। हर बार यह बताया गया कि कैसे हमारी सेना ने पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों पर तगड़ी चोट की है। कम से कम 9 आतंकी अड्डों को ध्वस्त कर दिया है। लेकिन इन तमाम अधिकृत जानकारियों में यह कभी नहीं कहा गया कि पाकिस्तान की सेना को कितना नुक़सान पहुंचाया गया है।

जब रक्षा मंत्री, गृहमंत्री, विदेश मंत्री और खुद प्रधानमंत्री ने संसद के भीतर ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की, तब भी यह नहीं बताया कि पाकिस्तान के लड़ाकू विमानों को भारतीय सेना ने नष्ट किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने युद्धविराम के 30-40 बार दावों के बीच यह भी कहा है कि इसमें पांच-छह लड़ाकू विमान नष्ट हुए हैं। लेकिन जब विपक्ष ने इस बारे में सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि ये किस पक्ष के विमान थे – हमारे या दुश्मन के, उस समय भी मोदी सरकार मौन ही रही। बल्कि सवाल उठाने पर देश विरोधी होने का इल्जाम लगाया। यह समझ से परे है कि अगर पाकिस्तान के सैन्य विमानों को नुकसान पहुंचा ही था, तो इसे बताने से सरकार झिझक क्यों रही थी। यह तो हमारी सेना की बड़ी उपलब्धि थी, जिसे उसी समय बताया जाता, तब हौसला और बढ़ जाता।

लेकिन तीन महीने में यह पहली बार है जब किसी सशस्त्र बल के वरिष्ठ अधिकारी ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना को हुए नुक़सान की संख्या को सार्वजनिक रूप से उजागर किया है। यह भी अजीब संयोग है कि इधर वायुसेना प्रमुख ने नया खुलासा किया और फौरन बाद थलसेना प्रमुख का भी ऑपरेशन सिंदूर को लेकर नया बयान सामने आया है। जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने बताया है कि पहलगाम हमले के अगले दिन यानी 23 अप्रैल को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक उच्च स्तरीय बैठक में कहा, ‘बस बहुत हुआ’ और सशस्त्र बलों को पूरी छूट दी गई कि वे इस हमले का जवाब देने के लिए स्वतंत्र रूप से कार्रवाई करें।

जनरल द्विवेदी के मुताबिक रक्षा मंत्री ने सशस्त्र बलों को निर्देश दिया, आप तय करें कि क्या करना है। इस राजनीतिक स्पष्टता और विश्वास ने सेना का मनोबल बढ़ाया। दो दिन बाद, 25 अप्रैल को उत्तरी कमान का दौरा किया गया, जहां नौ में से सात आतंकी ठिकानों को नष्ट करने की योजना बनाई गई और उसे अंजाम दिया गया। इस ऑपरेशन में पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आतंकी ढांचों को निशाना बनाया गया, जिसमें 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। जनरल द्विवेदी ने कहा, ‘ऑपरेशन सिंदूर का नाम छोटा हो सकता है, लेकिन इसने पूरे राष्ट्र को एकजुट किया।

सेना की इस उपलब्धि पर हरेक भारतवासी को गर्व है, लेकिन यह बात थोड़ी अजीब लगती है कि अब सेना प्रमुख को देश की एकजुटता पर बयान देना पड़े। सवाल यह भी है कि ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े दो सेनाध्यक्षों के बयान आखिर इस वक़्त क्यों आए हैं, जब देश में चुनाव आयोग और भाजपा की मिलीभगत पर बवाल मचा हुआ है। राहुल गांधी ने 7 अगस्त को जब से कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट पर एक लाख से भी ज़्यादा फर्ज़ी वोटों का खुलासा सबूतों के साथ पेश किया है, इस तरह की और भी खबरें सामने आ गई हैं। अब पता चल रहा है कि बिहार में कम से कम 3 लाख लोगों के पते पर मकान नंबर शून्य बटा शून्य या केवल शून्य लिखा हुआ है, वह भी एसआईआर की प्रक्रिया के बाद। बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा का नाम दो मतदाता सूचियों में है। उत्तरप्रदेश में अखिलेश यादव ऐसा ही फर्जीवाड़ा दिखा रहे हैं। महाराष्ट्र में शरद पवार ने दावा किया है कि विधानसभा की 166 सीटें जिताने का प्रस्ताव उन्हें दो लोगों ने दिया था, हालांकि राहुल गांधी ने इससे इंकार कर दिया था कि यह चुनाव जीतने का हमारा तरीका नहीं है। मतलब चुनाव आयोग पर घेराबंदी बढ़ रही है। उसकी शपथपत्र की मांग भी विपक्ष नहीं सुन रहा है।

अगर चुनाव आयोग विपक्ष के सामने पस्त हो जाता है, तो तय है कि भाजपा भी हार की तरफ बढ़ जायेगी। विपक्ष के साथ-साथ आम जनता भी अब वोट चोरी के मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। ऐसे में ऑपरेशन सिंदूर से राष्ट्रवाद को भुनाने की जो रणनीति नरेन्द्र मोदी ने बनाई थी, वह विफल होती दिख रही है। ‘मेरी रगों में गर्म सिंदूर बहता है’, जैसे संवाद अब चुनाव नहीं जिता पाएंगे, यह समझ आते ही शायद मुद्दे को फिर भटकाने की कोशिश की जा रही है। क्या इसलिए अब सेना को आगे किया गया है, यह विचारणीय है। हालांकि सेना अब तक इस तरह के राजनैतिक इस्तेमाल से दूर रही है, अब भाजपा ने अगर सेना को राजनीति का जरिया बनाया और सेना ने खुद का सियासी इस्तेमाल होने दिया तो यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा।

जितने मुंह उतनी बातें, इस मुहावरे का उपयोग अक्सर किसी ऐसी घटना या प्रकरण पर किया जाता है, जिसके बारे में पुख़्ता जानकारी नहीं होती है और हर कोई अपनी-अपनी तरह से उसे प्रस्तुत करता है। फिल्मी गपशप में यह सब चलता है, लेकिन देश की सुरक्षा जैसे गंभीर विषय पर ऐसा कभी नहीं हुआ कि इससे जुड़े लोग ही अलग-अलग तरह की बातें करें। अफसोस है कि मोदी सरकार में ऐसा एक बार नहीं बार-बार हो रहा है। जब पुलवामा की घटना हुई तब भी यही हुआ था और अब भी यही हो रहा है। बेहतर हो कि इस पर फ़ौरन रोक लगे।

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