कहाँ जायेंगे हम अपनों से कटकर। रहेंगी मछलियाँ दरिया के अन्दर।।

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फोटो अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakoor anwar
शकूर अनवर

*
बहुत गहरे हैं उन ऑंखों के मंज़र।
कहीं देखे नहीं ऐसे समन्दर।।
*
चराग़ों से चराग़ों को जलाकर।
बना लो रोशनी का एक लश्कर*।।

कहाँ जायेंगे हम अपनों से कटकर।
रहेंगी मछलियाँ दरिया के अन्दर।।
*
ज़रा सी ज़िंदगी में सुख समेटो।
मिला है ओस को फूलों का बिस्तर।।
*
तुम्हारी नफ़रतें तुमको मुबारक।
तुम अपने पास रक्खो अपने ख़ंजर।।
*
तुम अपनी असलियत भी खो रहे हो।
मिलेगा क्या तुम्हें चेहरा बदल कर।।
*
कोई रोके ज़रा इस चाॅंदनी को।
कोई देखे सितारों को बुझाकर।।
*
बहा ले जायेगा सैलाब*”अनवर”।
न रक्खो आप इतना घर सजाकर।।
*
शब्दार्थ:-
लश्कर*समूह,फौज
सैलाब*बाढ़
शकूर अनवर
9460851271

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