
-शैलेश पाण्डेय-
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रुडयार्ड किपलिंग की पहचान कवि, लघु कथाकार, पत्रकार और उपन्यासकार के तौर पर रही है। इस अंग्रेज साहित्यकार की प्रसिद्ध कृति जंगल बुक पर निर्मित धारावाहिक जब दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ तब उसका मुख्य पात्र मोगली बच्चों में बहुत लोकप्रिय हुआ। इस अंग्रेजी भाषा के विद्वान की अधिकांश कृतियों को भले ही हिंदी मीडियम के लोगों ने नहीं पढ़ा हो लेकिन दूरदर्शन पर मोगली के चरित्र ने उन्हें भारत विशेषकर हिंदीभाषियों के घर-घर तक पहुंचा दिया। भारत में जन्मे यही रुडयार्ड किपलिंग बूंदी शहर में भी निवास कर चुके हैं तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। रुडयार्ड किपलिंग वाकई जैत सागर के किनारे स्थित रमणीक सुख महल में निवास कर चुके हैं और कहा यह भी जाता है कि यहीं उन्हें अपने प्रसिद्ध उपन्यास किम की प्रेरणा मिली थी। उनकी यादों को संजोए रखने के लिए सुख महल में एक कमरा भी सुरक्षित है। हालांकि सुख महल अब बूंदी के इतिहास को दर्शाते म्यूजियम में तब्दील किया जा चुका है। लेकिन पहले यहां लोग ठहरते भी थे।

बूंदी का गढ़ पैलेस देखने के दौरान हुई थकान के बाद कुछ चाय नाश्ते के साथ ऐसी जगह चलने का मानस बनाया जहां शीतलता भी हो। सावन कुमार ने इसके लिए सुख महल का नाम सुझाया तो मैं तुरंत तैयार हो गया। लगभग दो माह पहले हम वरिष्ठ पत्रकार राहुल जी के साथ बूंदी घूमने गए थे तब शाम के छह बज चुके थे इसलिए सुख महल देखने से वंचित हो गए थे। तब हम जैतसागर के किनारे बैठकर ही मन बहलाकर लौटे थे।

क्योंकि इस बार भी हमारे पास एक ही दिन का समय था इसलिए मैं सुख महल के दीदार करने का मौका नहीं खोना चाहता था। गढ़ पैलेस से निकलकर बूंदी की गलियों से गुजरते हुए जब सुख महल पहुंचे तो वहीं नजदीक एक छोटी दुकान के पास कार पार्क कर चाय का स्वाद लेकर खुद को तरोताजा किया। जितना शानदार चाय का स्वाद था उतना ही पास में जैत सागर के अंदर और बाहर गंदगी की भरमार ने मन खराब कर दिया। लोगों ने पूजा सामग्री के साथ पॉलीथिन की थैलियों को भी प्रवाहित कर दिया था। बाहर भी गंदगी के ढेर लगे थे। जैत सागर में कमल के पत्ते तो नजर आ रहे थे लेकिन कमल के फूल नहीं दिखे। शायद प्रदूषण की वजह से यहां कमल नहीं खिलते हों।

जब हम सुख महल के द्वार पर पहुंचे तो सावन कुमार ने वहां मौजूद कर्मचारियों को अपनी हाडोती भाषा में बातचीत से प्रभावित कर लिया। उनमें से एक कर्मचारी हमें सुख महल लेकर पहुंचा और रुडयार्ड किपलिंग ने जहां निवास किया उस जगह तथा वहां मौजूद पेंटिग्स तथा प्राचीन कलाकृतियों की जानकारी दी। उनका कहना था कि रिमझिम बारिश में सुख महल के झरोखे से जैत सागर को निहारना अलौकिक अनुभव प्रदान करता है। यहीं पर बूंदी की प्रसिद्ध शिकार पेंटिग्स भी थीं। इनके अलावा पुरातत्व महत्व की छोटी से लेकर चार फीट तक की प्रतिमाएं भी सजी थीं। हालांकि यह सभी प्रतिमाएं खंडित हैं लेकिन इनमें ज्यादातर बूंदी जिले के क्षेत्र में ही खोज में मिली होंगी जिन्हें यहां सुरक्षित रखा गया है। सुख महल से विशाल जैत सागर का दृश्य ऐसा नजर आता है मानों पहाड़ों के बीच जल से भरा कटोरा हो। हाल ही में मानसून में इस बार जमकर बारिश हुई है इसलिए जैत सागर लबालब भरा था जबकि हम गर्मियों में यहां आए थे पानी काफी कम था और साफ सफाई के अभाव में सड़ांध मार रहा था। जो लोग 70 के दशक से पहले यूपी विशेषकर कानपुर संभाग की तीन दिन की बारात में शामिल हुए हों उन्हें नाश्ते में दिया जाने वाला पंचमेल का सकोरा याद होगा। यह मिट्टी के घड़े के मुख को ढके जाने वाले जैसा पात्र होता है। लेकिन इसका आकार कुछ बड़ा होता है जिसमें पांच तरह की मिठाइयां लड्डू, बरफी, बालूशाही, गुलाब जामुन, इमरती परोसी जाती थीं। बूंदी शहर में मुझे ऐसा ही महसूस हुआ कि पहाड़ों के बीच यह मिठाइयों से भरा सकोरा है। इस सकोरे की मिठाइयां यहां के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल हैं।

हम काफी देर तक रुडयार्ड किपलिंग के यहां रहने के दौरान की कल्पना करते रहे। जिन्होंने भी अंग्रेजों के रहन सहन को देखा और सुना है। उन्हें सुख महल के कमरे देखकर आश्चर्य होगा कि रुडयार्ड किपलिंग इतने छोटे कमरों में कैसे रहे होंगे। क्योंकि अंग्रेज अपने विशाल बंगलों में रहने के आदी है। आप भारत में रेलवे के अंग्रेजों के जमाने के बंगलों को देख लें तो इसका अंदाजा हो जाएगा। जब अंग्रेज अफसर रहते थे तब उनके बंगले के कमरों का आकार हमारे पूरे घर के बराबर तथा स्नानघर हमारे एक कमरे से ज्यादा बड़ा होता था।


म्यूजियम से बाहर निकलते शाम के चार बज चुके थे। दर्शनीय स्थल देखने के चक्कर में दोपहर के भोजन पर ध्यान नहीं दिया लेकिन अब पेट में चूहों ने आगाह करना शुरू किया था। सावन कुमार पहले ही तय कर के आए थे कि यहां बूंदी-चित्तोड हाइवे पर हाल ही में खुले रेस्तरां में कत्त-बाफले भोजन का मुंबई से आए अजातशत्रु को रसास्वादन करना है। सावन की पंसद वाकई लाजवाब निकली। आधुनिक सुविधाओं से युक्त इस रेस्तरां में न केवल स्वादिष्ट भोजन मिला बल्कि वहां कार्यरत भाई ने बहुत मनुहार से भोजन भी कराया। जब हम चार जनों के भोजन का बिल अजात ने चुकाया तो वह आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने रास्ते में कहा कि दिल्ली या मुंबई में इस स्तर के रेस्तरां में एक जने के भोजन का बिल इससे ज्यादा आता। यहीं से हम बूंदी के शेष बचे पर्यटन स्थलों को देखने आने का संकल्प कर कोटा के लिए रवाना हो गए।