
-कृष्ण बलदेव हाडा-

राजस्थान में भरतपुर संभाग के पवित्र माने जाने वाले ब्रज क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से खनन माफियाओं के लगातार पहाड़ों में पत्थर-गिट्टी के लिए अवैध रूप से व्यापक पैमाने पर न केवल खनन करके इन पहाड़ियों का स्वरूप बिगाड़ जा रहा है बल्कि कई पहाड़ियों को जमींनदोज करके उनका अस्तित्व तक खत्म कर दिया है। इसी मसले को लेकर अवैध खनन के खिलाफ इसी साल के शुरू में एक संत के आत्मदाह करने की घटना से भी अभी सरकार और उसके मंत्रियों ने कोई सबक नहीं सीखा है। सबक सीखना तो दूर, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार के एक प्रमुख मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विश्वेंद्र सिंह इस सारे मसले को पारिस्थितिकी और पर्यावरण संतुलन-संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण मानने सहित हिंदू धर्म की भावनाओं के अनुसार इसकी संवेदनशीलता को समझने की जन भावना के प्रतिकूल अब खनन माफियाओं का न केवल गुपचुप रूप से पक्ष ले रहे हैं, बल्कि साधु-संतों ही धमकाने पर आमादा हो गए हैं। भरतपुर के पूर्व राज्य परिवार से जुड़े विश्वेंद्र सिंह खनन माफियाओं पर रोक की कोई ठोस पहल करने और ब्रज भूमि की पवित्रता को बनाये रखते हुये अवैध खनन होने से रोकने का कोई जतन करने के बजाय साधु-संतों को ही न केवल धमकाने से बाज आ रहे हैं बल्कि सारी सामाजिक शिष्टाचारिताओं को ताक में रखकर “बाबाओं को बदमाशी” नहीं करने की सीख देते नजर आ रहे हैं जिसके कारण ब्रजभूमि क्षेत्र के साधु-संतों ही नहीं बल्कि हिंदू धर्मावलम्बियों में भी गहरे रोष की भावना व्याप्त है और इस पूरे प्रकरण की खास बात यह है कि हिंदू धर्म और हिंदुओं की भावनाओं की आड़ में राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता इस सारे मसले पर मौन बने हुए हैं और अभी तक प्रदेश के किसी भी प्रभावशाली भारतीय जनता पार्टी के नेता ने विश्वेंद्र सिंह के संत समाज के प्रति की गई अशोभनीय टिप्पणियां के प्रति विरोध प्रकट करना तक जरूरी नहीं समझा है।
कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाया

उल्लेखनीय है कि राजस्थान के भरतपुर संभाग के ब्रज भूमि क्षेत्र में गिट्टी-पत्थर के लिए पहाड़ियों में हो रहे व्यापक अवैध खनन को रोकने की साधु-संतों की बार-बार मांग के बावजूद उसकी लगातार अवहेलना किए जाने पर साधु-संतों ने कई दिन तक अनवरत रूप से अवैध खनन के खिलाफ अनशन किया था लेकिन जब इसके बाद भी सरकार ने इस अवैध खनन को रोकने की दृष्टि से कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाया तो इससे खफा होकर भरतपुर जिले के डीग क्षेत्र के एक महंत विजय दान ने अपने शरीर पर केरोसिन छिड़ककर आग लगा ली थी जिससे वह गंभीर रूप से झुलस गए थे जिन्हें बाद में उपचार के लिए पहले जयपुर और फिर वहां से नई दिल्ली ले जाया गया लेकिन उनकी हालत की गंभीरता के कारण चिकित्सकों के लाख जतन के बावजूद उन्हें नहीं बचाया जा सकता और उन्होंने दम तोड़ दिया।
एक दिसम्बर से आंदोलन करने की चेतावनी
इस हादसे के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कुछ सावचेती दर्शाई थी और न केवल भरतपुर जिले बल्कि पूरे राज्य में जिला कलक्टर को अवैध खनन रोकने के निर्देश दिए थे। कुछ समय तक तो यह आदेश प्रभावी रूप से लागू किया लेकिन बाद में धीरे-धीरे इसमें शिथिलता आती गई और नतीजा फिर से कई जगह अवैध रूप से खनन शुरू हो गया, जिनमें भरतपुर संभाग के ब्रजभूमि क्षेत्र की पहाड़ियों का अवैध खनन भी शामिल है। इसी के खिलाफ एक बार फिर साधु-संतों ने आवाज उठाई है और उन्होंने यहां चल रहे गिट्टी बनाने के क्रेशरों को बंद करने की मांग उठाई लेकिन एक बार फिर जब यह मांग नहीं मानी जा रही तो साधु-संत समाज में एक दिसम्बर से आंदोलन करने की चेतावनी दी है। अब बताया जाता है कि ब्रजभूमि क्षेत्र के पहाड़ आदि बद्री और कनकांचल क्षेत्र में इस अवैध खनन के खिलाफ साधु-संतों की आवाज उठाना और पत्थरों से गिट्टी बनाने के लिए बड़ी संख्या में चल रहे क्रेशरों को बंद कराने की मांग अशोक गहलोत सरकार के वरिष्ठ मंत्री विश्वेंद्र सिंह को रास नहीं आ रही है और उन्होंने इस मामले में एक दिसम्बर से आंदोलन शुरू करने के लिए वचनबद्ध साधु-संत समाज को ही चेतावनी देते हुए उनकी “बदमाशी से बाज” आने की हिदायत दे डाली है। इस बारे में विश्वेंद्र सिंह का यह तर्क है कि साधु-संतों के पिछले आंदोलन के बाद राज्य सरकार ने आदि बद्री और कनकांचल क्षेत्र में अवैध खनन बंद करने का जो वायदा किया था, उसे पूरा किया है। राज्य सरकार ने अपने इस वायदे के अनुरूप सभी तरह के वैध-अवैध खानों को बंद करवा दिया है लेकिन उस समय भी सरकार ने या जिला प्रशासन ने किसी भी आंदोलनकारी से क्रेशर को बंद करने का कोई वायदा नहीं किया था क्योंकि यह सभी क्रेशर कानूनी रूप से प्रशासनिक अनुमति लेकर के ही चल रहे हैं इसलिए उन्हें बंद नहीं करवाया जा सकता है। लिहाजा इन क्रेशरों को बंद कराने की मांग गैर वाजिब है इसलिये इस बात को लेकर आंदोलन करने के बजाय “बाबाओं को बदमाशी” करने से बाज आना चाहिए।
क्रेशर चल कैसे रहे हैं
विश्वेंद्र सिंह का यह कहना यदि सही है कि राज्य सरकार के आदेश से इस क्षेत्र की सभी वैध-अवैध पत्थर खाने बंद हो चुकी है तो एक सवाल यही है कि जब सभी वैध-अवैध पत्थर खाने बंद हो चुकी है और दूर-दूर तक कहीं खदान नहीं हो रहा है तो आखिर यह क्रेशर चल कैसे रहे हैं? इन क्रेशरों में पत्थरों से गिट्टी बनाने के लिए पत्थर आखिर आ कहां से रहा हैं?इस एक यक्ष सवाल का जवाब कोई दे नहीं दे पा रहा क्योंकि यह तय है कि जब यहां पत्थर उपलब्ध होंगे, तभी क्रेशर चलेंगे और इस इलाके में बिना अवैध खनन के आखिर पत्थर आ कहां से रहे है? क्योंकि यदि दूरदराज के किसी अन्य इलाके में चल रही वैध खान से पत्थर लाए जाते हैं तो उसे यहां लाकर उससे गिट्टी बनाना किसी भी सूरत में लाभ का सौदा हो नहीं सकता तो ऎसे में क्रेशर मालिक क्रेशर चलायेगा क्यों ?


















राजनेताओं के संरक्षण में ही खनन माफिया अवैध खनन करते हैं, इसके साथ सत्ता में बैठे जननेता माफियाओं के साथ गठजोड़ करके , पर्यावरण की सुरक्षा को ताकि मैं रखकर खनन की शासकीय स्वीकृति दिलाने में अहम भूमिका निभाते देखें गए हैं. विकास के नाम पर जंगल कट रहे हैं, पहाड़ों को खोखला किया जा रहा है और माफियाओं का अवैध खनन खाज में कोढ़ का काम कर रहा है