
-धीरेन्द्र राहुल-

पिंक कलर की पगड़ी में ये हैं- डाॅ रोशन भारती. गजल गायन के क्षेत्र में देश- विदेश में इनका बड़ा नाम है.
इससे भी बड़ा इनका परिचय यह है कि ये पेशे से प्रोफेसर हैं और वर्तमान में कोटा के राजकीय महाविद्यालय के प्रिंसिपल हैं.
पिछले 45 साल से में मैं कोटा में पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय हूं लेकिन वे मुझे नहीं जानते. इस अवधि में कोटा में किसी संगीत सभा में उन्हें सुनने का मौका भी मुझे नहीं मिला.क्योंकि राजस्थान पत्रिका के दफ्तर में शाम 6 से रात 12 का समय इतना व्यस्त होता था कि सिर उठाने की फुर्सत नहीं मिलती थी. सुकून से संगीत समारोह सुनने का कोई अवसर नहीं था.
लेकिन इसके बावजूद अगर मैं यह कहूं कि राजस्थान की धरती पर मैंने पहली रिपोर्ट ही रोशन भारती के बारे में लिखी तो शायद आपको आश्चर्य हो. यह बात संभवत: सन् 1978 की या उससे पहले की है.
हुआ यूं कि भानपुरा के मेरे परम मित्र राजेन्द्र उपाध्याय ( रिटायर्ड असिस्टेंट कमांडेंट ) के बड़े भाई कैलाश दादा को मानसिक समस्याएं हुई तो उन्हें इलाज के लिए जयपुर लेकर आएं. उस दौरान एक महीने तक जयपुर के जनोपयोगी भवन में रहे. सुबह डाॅ केजी थानवी को दिखाने के बाद मेरे पास सारा दिन खाली था.
एक दिन में जयपुर में मिनर्वा टाकीज के सामने दैनिक ‘अणिमा’ के दफ्तर में चला गया. संयोग से अखबार के मालिक और संपादक शरद देवड़ा से मुलाकात हो गई.
मैंने उन्हें बताया कि एक महीने के लिए जयपुर मैं हूं, कुछ रिपोर्टिंग करने का अवसर देंगे तो कृपा होगी. बदले में किसी मानदेय की भी आवश्यकता नहीं है. उन्होंने मुझे उसी शाम रवीन्द्र मंच पर आयोजित मास्टर मदन स्मृति समारोह का कार्ड थमा दिया.
मास्टर मदन का जन्म एक सिख फैमिली में 27 दिसम्बर 1928 को लुधियाना में हुआ था. परिवार में संगीत का माहौल था. गायन के क्षेत्र में मास्टर मदन ने झंडे गाड़ दिए थे. मात्र 14 साल की उम्र में मास्टर मदन का इंतकाल हो गया. एक वीडियो बताता है कि ईर्ष्यावश: किसी जाने माने सिंगर ने मास्टर मदन को जहर देकर मरवा दिया.
मुझे नहीं मालूम की वो कौन लोग थे ?
जिन्होंने गायन के क्षेत्र में देश की बाल प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए मास्टर मदन स्मृति समारोह प्रारंभ किया. उस समारोह में नन्हें रोशन भारती ने ( तब उनकी उम्र दस – बारह साल रही होगी ) ने सारे बाल गायकों को पछाड़ कर शिल्ड अपने नाम कर ली थी. तब मैं उनके पिता से मिला था. अगले दिन मैंने समारोह की रिपोर्ट लिखीं, जिसका शीर्षक था- ‘ एक जीवंत अनुभव के साथ तीन घण्टे’. उसे पढ़कर शरद देवड़ा जी ने मेरी बड़ी तारीफ कीं, बोले- तुम तो बहुत अच्छा लिखते हो.
उस समय तक मुझे नहीं मालूम था कि शरद देवड़ा कितने बड़े कथाकार थे और साहित्यिक जगत में उन्हें कितने सम्मान से देखा जाता था. कोटा लौटने के बाद राजस्थान पत्रिका में उनकी लिखी एक कहानी पढ़ी, जो मेरे जीवन में पढ़ी श्रेष्ठतम कहानियों में से एक थी.
दैनिक ‘अणिमा ‘ में ही मेरी पहली मुलाकात दादा शशि थपलियाल से हुई, वे वहां रामपाल जी के साथ डेस्क का सारा काम देखते थे. एक दिन थपलियाल जी ने मुझ से कहा कि वे ‘अणिमा’ से पहले ‘राजस्थान पत्रिका’ और ”नवज्योति’ में काम कर चुके हैं. मुझे विश्वास नहीं हुआ. अगले दिन मैंने रामपाल जी से पूछा कि इतने बड़े अखबारों में काम करने के बाद थपलियाल जी यहां क्यों हैं?
उस दिन मेरी किस्मत खराब थी. रामपाल जी कुछ जवाब देते तभी कमरे में शशिजी प्रविष्ट हुए. रामपाल जी ने कहा कि अब आप शशिजी से ही पूछ लीजिए? शशिजी ने आंखें तरेरते हुए मुझ से कहा कि मैंने कहा तो तुम्हें भरोसा नहीं हुआ? मैंने हकलाते हुए कहा कि नहीं, अब भरोसा हो गया.
वे ही शशि थपलियाल जी फिर राजस्थान पत्रिका में शामिल हुए और उनके साथ कोटा में संपादन विभाग में कुछ साल काम करने का मौका मिला. शशिजी ने राजस्थान पत्रिका के अधिकांश संस्करणों में काम किया. वे हमेशा अपना झोला तैयार रखते थे.
मास्टर मदन समारोह में नन्हें रोशन भारती के बारे में धारणा बनी थी कि वह बहुत आगे जाएगा, शायद मेरा अनुमान गलत नहीं था.