कृष्ण बलदेव हाडा
राजस्थान में कोटा संभाग के जिन लहसुन उत्पादक किसानों ने अच्छे भाव मिलने की उम्मीद में अपने निजी या किराये के लिए गोदामों में महंगे रखरखाव खर्च को वहन करते हुए लहसुन को सहेज कर रखा है, उन्हें तो बाजार में अच्छे भाव मिल पा रहे हैं और न ही बाजार हस्तक्षेप योजना से पर सरकारी मूल्य पर उसकी खरीद हो पा रही है जिसके कारण किसान गंभीर सांसत में हैं। पिछले रबी के कृषि सत्र में अच्छे भाव की उम्मीद के साथ कोटा संभाग के किसानों ने बड़े पैमाने पर लहसुन की बुआई की थी और अनुकूल मौसमी परिस्थियों के चलते लहसुन का उत्पादन भी बम्पर हुआ था जिससे किसानों को मोटा मुनाफा मिलने की उम्मीद जागी थी लेकिन यही बम्पर उत्पादन बेड़ा गर्क करने वाला साबित हुआ क्योंकि मंडियों में बेतहाशा लहसुन की आवक के कारण तीन-चार महिने पहले जो भाव रसातल में चले गए थे उनसे किसान अभी तक उबर नहीं पाया है।

किसानों को लहसुन के अपेक्षित भाव नहीं मिल पाए

कोटा संभाग के चारों जिलों कोटा बूंदी,बारां, झालावाड़ में इस साल करीब 6.50 लाख मीट्रिक टन लहसुन का उत्पादन हुआ था लेकिन रबी कृषि सत्र के बाद से ही किसानों को लहसुन के कभी भी अपेक्षित भाव नहीं मिल पाए क्योंकि नई फसल के आने से पहले ही आढितियों-व्यापारियों और किसानों ने बीते साल की संरक्षित रखी लहसुन की उपज को मंडियों में कम दामों पर बेचना शुरू कर दिया जिससे नई फसल के भाव गति नहीं पकड़ पाए और यह हालात अब तक है। अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान सकल उपज का करीब तीन-चौथाई हिस्सा थोक में तीन से दस रुपये प्रति किलो के भाव पर बेच चुके हैं, जबकि अभी भी करीब डेढ़ लाख मीट्रिक टन लहसुन को किसानों ने बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत खरीद शुरू होने या खुले बाजार में अच्छे भाव की उम्मीद में घरों-गोदामों में सहेज कर रखा है लेकिन किसानों की दोनों की उम्मीदें पूरी नहीं हो पा रही है। मौजूदा हालत में वह हजारों किसान सबसे अधिक असहज हालत में है जिन्होंने लहसुन को सुरक्षित रखने के लिए महंगे मोल पर किराए के शैड़ ले रखे हैं जिसके कारण लागत तो लगातार बढ रही है लेकिन बाजार भाव यथावत है।

सभी किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद भी नहीं

राज्य सरकार की ओर से अभी तक आदेश जारी नहीं होने के कारण राजफैड किसानों से लहसुन खरीदने में असमर्थ जता रहा है। वैसे भी बाजार हस्तक्षेप योजना से मात्र 46 हजार 830 मीट्रिक टन लहसुन ही खरीदा जाना है इसलिए सभी किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद वैसे भी नहीं है। खरीद सीमा तय होने के बाद अब खुले बाजार में भी किसानों को अच्छे भाव मिलने की कोई आस बाकी नहीं रह गई है। अभी भी हाडोती की मंडियों में बेस्ट क्वालिटी के मोटी कली के लहसुन के भाव 20-25 प्रति किलो से ज्यादा नहीं है जबकि कमजोर गुणवत्ता का लहसुन तो थाेक में चार-पांच रुपए किलो से ज्यादा उबर ही नहीं पा रहा है।इसके अलावा जैसे-तैसे सहेज कर रखा गया लहसुन दोहरी मार झेल चुका है। मानसून-पूर्व मानसून की बरसात के पहले गर्मी की मार के कारण भारी मात्रा में लहसुन नमी की कमी के कारण गहर भूरा या काला पडकर खराब हो चुका है और अब बरसात शुरू हो जाने के कारण नमी से लहसुन खराब होने लगा है। दोनों ही परिस्थितियों में किसान खराबे को सहन करने को मजबूर हैं। अच्छे भाव वह सरकारी खरीद की दोनों टूटती उम्मीदों के बीच आज भी समूचे कोटा संभाग के किसान आैने-पौने दामों पर अपनी उपज बेचने को मजबूर हो रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)

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