कृष्ण बलदेव हाडा
राजस्थान में भरतपुर जिले के डीग में पशुपतिनाथ मंदिर के महंत विजय दास बाबा (60) का पर्यावरण की रक्षा के लिए आत्मदाह करने का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। इसे सदैव याद रखा जाएगा क्योंकि राजस्थान में ऐसे बलिदान की पुरानी परंपरा रही है। मारवाड़ के खेजड़ली गांव में विश्नोई समाज का बलिदान तो सबसे बड़ा है। अमृता देवी विश्नोई के अमूल्य योगदान को आज कौन भुला पाया है? यह कहना है राजस्थान में कोटा जिले की सांगोद विधानसभा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर का। उन्होंने कहा कि महंत विजयदान बाबा ने आदिनाथ-कलकांचल पर्वतों के खनन माफियाओं द्वारा गैरकानूनी तरीके से खनन के विरोध में 551 दिन तक लगातार साधु-संतों के साथ आंदोलन करने के बाद थक हार कर आत्मदाह जैसा आत्मघाती कदम उठाया था।
प्राणों का उत्सर्ग कर एक कड़ा संदेश दे गये
भरत सिंह ने कहा कि महंत विजयदान बाबा अपने प्राणों का उत्सर्ग कर एक कड़ा संदेश दे गये है कि यदि सरकारों-प्रशासन ने खनन माफियाओं के खिलाफ बार-बार मांग किए जाने के बाद भी वाजिब मांग नहीं मानी तो आवाम अपनी बात मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। भरत सिंह ने आज फिर से बारां जिले के अंता इलाके में स्थित हाडोती अंचल के सोरसन क्षेत्र जहां गोड़ावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) पाये जाते थे के नजदीक गिट्टी बनाने के लिए पत्थर खाने आवंटित करने और क्रेशर लगाने की अनुमति को निरस्त करने की मांग को दोहराया और आरोप लगाया कि इस क्षेत्र के नजदीक सांगोद नगर परिषद में भारतीय जनता पार्टी के एक पार्षद और एक अन्य व्यक्ति के नाम से तीन पत्थर खानों की अनुमति दी गई है लेकिन असल में यह खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया की बेनामी संपत्ति है।
गोडावण प्रजनन केंद्र के लिए वित्तीय स्वीकृति जारी करनी चाहिए
भरत सिंह ने कहा कि राज्य सरकार को पिछले साल की विधानसभा में बजट घोषणा के अनुरूप सोरसन में प्रस्तावित गोडावण प्रजनन केंद्र की स्थापना के लिए वित्तीय स्वीकृति जारी करनी चाहिए ताकि यहां गोडावण के प्रजनन की दिशा में कदम उठाया जा सके। सोरसन ऐसी जगह है जहां गोडावण के आवास व प्रजनन के लिए सभी नैसर्गिक एवं प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध है। राज्य सरकार को तो यहां विलुप्त होते जा रहे राज्य पक्षी गोडावण बसाकर उनकी सुरक्षा की बंदोबस्त सुनिश्चित करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि कुछ सालों से सोरसन के गोडावण संरक्षित क्षेत्र में यह पक्षी विलुप्त हो चुका है लेकिन कुछ दशकों पहले तक यहां काफी संख्या में गोडावण देखे जा सकते थे। बाद में वन विभाग की लापरवाही व इच्छा शक्ति के अभाव में गोडावण का जमकर शिकार व अन्य कारणों से यह पक्षी लुप्त होता चला गया।
जिस समय अंता के नजदीक गड़ेपान में चंबल फर्टिलाइजर एंड केमिकल लिमिटेड (सीएफ़सीएल) की स्थापना की जा रही थी तो झालावाड़ से तत्कालीन सांसद जुझार सिंह व कई प्रकृति-पर्यावरण प्रेमियों ने इस आधार पर कारखाने की स्थापना का विरोध किया था कि इससे प्रदूषण व मानवीय दखल बढ़ने से गोडावण के अस्तित्व पर संकट आयेगा, लेकिन इस विरोध को दरकिनार कर यहां खाद कारखाने की स्थापना हुई और इसी के साथ गोड़ावण लुप्त हो गये। अब खनन मंत्री प्रमोद जैन भाया भी यही दलील दे रहे हैं कि पिछले 20-30 सालों से गोड़ावण नहीं देखा गया।
तीन हजार काले हिरण
हालांकि जमीनी हकीकत इसके विपरीत है क्योंकि सोरसन में आज भले ही गोडावण अस्तित्व में नहीं रह गया हो, लेकिन राज्य सरकार ने यहां की अनुकूल परिस्थितियों का अध्ययन के बाद भी गोडावण के प्रजनन की विपुल संभावनाओं का आकलन कर अपने सालाना वित्तीय बजट में गोडावण प्रजनन केंद्र की स्थापना की घोषणा की थी। इसके अलावा यहां ढाई से तीन हजार काले हिरण भी है। प्रजनन केंद्र की स्थापना के बाद इनके संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। सोरसन में गोडावण प्रजनन केन्द्र का महत्व इसलिए भी है कि इसकी घोषणा के बाद ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जैसलमेर जिले के मोखाला में गोडावण के अंडे सेने के लिए 33.85 करोड़ रुपए की वित्तीय स्वीकृति जारी की थी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं)