
-कृष्ण बलदेव हाडा-

कोटा। राजस्थान में बूंदी जिले की पांच दशक से भी अधिक पुरानी केशवरायपाटन सहकारी शुगर मिल मौजूदा स्वरूप में अब चला पाना मुश्किल है। अब इसके पूर्ण नवीनीकरण किये बिना इससे चीनी और अन्य सहायक उत्पाद उत्पादित करना लगभग नामुमकिन है। इस मिल के पूरे कायाकल्प के लिए कई करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी। केशवरायपाटन सहकारी शुगर मिल को चलाने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए आई नेशनल शुगर फेडरेशन ऑफ इंडिया के दो सदस्यीय टोली ने यह राय व्यक्त की। इस टोली में शामिल विषय विशेषज्ञ वाईके डाली और एम मुरलीधरन ने आज केशवरायपाटन शुगर मिल पहुंचने के बाद मिल के प्लांट का दौरा किया और वहां स्थापित संयंत्र का विस्तार से अवलोकन करने के बाद दोपहर में गन्ना उत्पादक किसानों के प्रतिनिधियों और किसान समन्वय संघर्ष समिति के सदस्यों से मिल चलाने के बारे में विस्तार से चर्चा की।
2002 में इस शुगर मिल से चीनी का उत्पादन बंद
उल्लेखनीय है कि केशवरायपाटन में वर्ष 1970 में शुगर मिल की स्थापना की गई थी लेकिन बाद में पुरानी पड़ती तकनीकी, अपेक्षित शक्कर का उत्पादन नहीं कर पाने से लगातार आर्थिक नुकसान झेलने और राज्य सरकार की इच्छा शक्ति के अभाव जैसे विभिन्न कारणों के चलते वर्ष 2002 में इस शुगर मिल से चीनी का उत्पादन बंद कर देना पड़ा था और तभी से यह मिल बंद पड़ी है। शुगर मिल का अवलोकन करने आए नेशनल शुगर फेडरेशन ऑफ इंडिया की टीम के सदस्यों की यह राय थी कि चीनी मिल चालू करने के समय ही साथ-साथ यहां अल्कोहल, एथेनॉल प्लांट और विद्युत उत्पादन संयंत्र की स्थापना किए जाने की जरूरत थी। इसके अलावा इस मिल की क्षमता प्रतिदिन मात्र 1250 में मीट्रिक टन क्रेशिंग की थी जो आवश्यकता के अनुसार कम थी जिससे चीनी का उत्पादन कम हुआ और डिस्टलरी जैसी सहायक प्लांट भी नहीं होने, अच्छी गुणवत्ता के गन्ने की पेराई के लिए नहीं आने,प्लांट में आवश्यकता से अधिक श्रम शक्ति होने से अतिरिक्त वित्तीय भार कारखाने पर पड़ने के कारण यह मिल लगातार घाटे में चली गई और अंततः वर्ष 2002 में इसे बंद करना पड़ा। उस समय भी इस मिल की प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता 2000 या उससे अधिक मीट्रिक टन की होती और अल्कोहल उत्पादन के सहायक संयंत्र होते तो मिल से चीनी का उत्पादन करके इसे लाभ में चलाया जा सकता है लेकिन राज्य सरकार इसे चला पाने में विफल रही और मिल को बंद करना पड़ा।
मिल की अपनी 170 बीघा जमीन
केशवरायपाटन शुगर मिल का अवलोकन करने आई टीम के सदस्यों से चर्चा करने के बाद कोटा लौटे हाडोती किसान यूनियन के महामंत्री दशरथ कुमार ने बताया कि मिल को चलाने की संभावना खत्म नहीं हुई है। इसमें को आज भी चलाया जा सकता है क्योंकि इस मिल के पास अपने संसाधन है। मिल की अपनी 170 बीघा जमीन है जिसमें गन्ने की खेती होती रही थी। दशरथ कुमार ने कहा कि जिस समय मिल की स्थापना की गई, तब इसको चलाने में किसानों की भागीदारी लगभग नगण्य थी।राज्य सरकार के पास इस मिल की 86% हिस्सेदारी थी जबकि किसानों के पास केवल 14% हिस्सेदारी थी जिसके कारण मिल को चलाने का दायित्व राज्य सरकार ने अपने पास ही रखा और बाद में चूंकि इसको चलाने की जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों पर की तो उनकी इच्छा शक्ति के अभाव में और मिल की पर्याप्त उत्पादन क्षमता नहीं होने जैसे कई कारणों के चलते यह मिल बंद करनी पड़ी लेकिन बंद पड़ी मिलो को फिर से चलाया जा सकता है। इसके उदाहरण मौजूद हैं। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर जिले के सरदार नगर की शुगर मिल, मध्य प्रदेश में डबरा की ग्वालियर शुगर मिल को एक बार बंद किए जाने के बाद दोबारा सरकार की इच्छा शक्ति के चलते चलाया गया और यह चल रही है।
पीपीपी मोड़ पर चलाया जा सकता है
दशरथ कुमार का सुझाव था कि पीपीपी मोड़ पर भी केशवरायपाटन शुगर मिल को चलाया जा सकता है जिसमें किसानों की भागीदारी बढ़ाते हुए राज्य सरकार गारंटी दे और किसी विशेषज्ञ गन्ना मिल संचालकों को भागीदार बनाकर
केशवरायपाटन की इस मिल को का संचालन किया जाये। मिल का अवलोकन करने आई टीम ने बताया कि वह अगले 2-3 महीने में अपनी रिपोर्ट तैयार करके राज्य सरकार को सौंप देंगे। मिल को चलाने के बारे में अंतिम फैसला राज्य सरकार को करना है।