‘अब वक्त आ गया है जब कुआंरी बाऊंड्रीवालों की मांग चटक लाल रंग से सजाई जाए…’

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-धीरेन्द्र राहुल-

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धीरेन्द्र राहुल

एक बार एक बुजुर्ग ने कहा था कि अगर कोई स्त्री सूर्ख/चटक लाल रंग का जोड़ा पहनकर सड़क पर निकल जाए तो हर राहगीर एक बार उसे मुड़कर जरूर देखेगा।

यहीं हाल आजकल कोटावासियों का हो रहा है। जगह जगह खिला खिला गदराया- सा बोगनविलिया बरबस लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है जिससे हादसों की आशंका बढ़ गई है। अगर ऐसा कोई हादसा होता है तो उसे ‘बोगनविलिया एक्सीडेंट’ कहना ही उचित होगा।

बोगनविलिया एक सदाबहार झाड़ीदार पौधा है जो वैसे तो दस बारह फीट तक बढ़ता है लेकिन अगर फैलने को जगह मिल जाए तो तीस फीट तक भी पेड़ पर ऊंचा चढ़ जाता है। बोगनविलिया का फूल सफेद रंग का होता है जो रंगीन पत्तियों से घिरा होता है जिसे ब्रैकेट्स कहते हैं।

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पश्चिम में चटक लाल रंग प्यार और रोमांस का प्रतीक माना जाता है, जबकि चीन में उल्लास और उत्सव का।

भारत में सदियों से दुल्हनों को लाल जोड़े से सजाया जाता है। चीन में पिछले 650 साल यानी मिंग वंश के शासन काल से दुल्हनों को लाल रंग की चीनी पोशाक से सजाया जाता है। कह नहीं सकते कि यह रिवाज भारत ने चीन से सीखा या चीन ने भारत ने?

सात सौ साल पहले चीन से भारत में दो महान यात्री ह्वेनत्सांग और फाहयूयान आए थे। कहीं उन्होंने ही तो चीन के सम्राट को भारत में दुल्हनों को लाल रंग के जोड़े में विदा करने की शानदार परम्परा के बारे में नहीं बताया हो। इसके बाद वहां भी दुल्हनों का परिधान लाल हो गया हो। इस पर आगे और शोध की जरूरत है।

अपन फिर से बोगनविलिया पर लौटते हैं। कोटा में शांति धारीवाल ने मल्टीपरपज स्कूल से जमीन लेकर क्रासरोड (लिंक रोड) ही नहीं बनाया बल्कि वहां उपवन में बड़ी संख्या में पेड़ भी लगाए हैं जिनमें से बोगनविलिया की सुर्ख लताएं जमीन छूने को बेताब है। मेरा बस चले तो इस लिंक रोड को मैं बोगनविलिया स्ट्रीट का नाम दे दूं।

अब वक्त आ गया है कि खूबसूरत कोटा शहर को और खूबसूरत बनाया जाए। इसे सजाने के लिए स्टेडियमों, अस्पतालों, श्मशानों, यूनिवर्सिटियों, काॅलेजों, स्कूलों , पार्कों, उद्यानों की सूनी पड़ी बाऊंड्रीवालों को बोगनविलिया से सजाया जाए। ताकि चटक रंग का चमत्कार दुनिया भी देखें!

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यहां मैं राधास्वामी सत्संग वालों की तारीफ करना नहीं भूलूंगा, जिन्होंने सारे देश में अपने सत्संग स्थलों की एक जैसी बाऊंड्रीवाल बनाई और उसे बोगनविलिया से सजाया। फिर वह जयपुर का सत्संग स्थल हो या कोटा का।
कोटा विकास प्राधिकरण का उद्यान विभाग क्यों नहीं बोगनविलिया के रोपण को अपनी प्रथमिकता सूची में शामिल करता?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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